झारखंड हाई कोर्ट की कठोर ट‍िप्‍पणी- क्यों नहीं जेएसएससी की सारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाए

JSSC Recruitment आज जेएसएससी की नई नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। सरकार ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। इसलिए अब अदालत ने सरकार को अंतिम मौका देते हुए आठ फरवरी की तिथि निर्धारित की है।

By Sanjay KumarEdited By: Publish:Thu, 27 Jan 2022 12:49 PM (IST) Updated:Thu, 27 Jan 2022 12:54 PM (IST)
झारखंड हाई कोर्ट की कठोर ट‍िप्‍पणी- क्यों नहीं जेएसएससी की सारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाए
Jharkhand News : आज जेएसएससी की नई नियुक्ति नियमावली पर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार की ओर से अब तक जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई। प्रार्थी की ओर से कहा गया कि सरकार जवाब दाखिल करने की बजाय नई नियमावली के तहत विज्ञापन जारी कर रही है। इसपर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कहा कि क्यों नहीं सारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाए। सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम मौका देने का आग्रह किया गया, जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई आठ फरवरी को निर्धारित की है।

संशोधित नियमावली असंवैधानिक प्रतीत हो रही : कोर्ट

सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह संशोधित नियमावली असंवैधानिक प्रतीत हो रही है। नियमावली को देख प्रतीत होता है कि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को झारखंड से बाहर जाकर पढ़ाई करने नहीं देना चाहती है। इन्हें यहीं पर रोक कर रखना चाहती है, जबकि आरक्षित वर्ग के छात्रों को इसी छूट दी गई है। इस तरह के प्रविधान को वैध नहीं माना जा सकता। वहीं, राज्य सरकार की ओर से इस नियमावली को बनाने के पीछे की मंशा समझ में नहीं आ रही है।

राज्‍य सरकार ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया

सुनवाई के दौरान प्रार्थी की अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने अदालत को बताया कि एक दिसंबर 2021 को अदालत ने निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस मामले में मूल संचिका सहित अपना जवाब दाखिल कर दें। मामले में सरकार ने मूल संचिका दाखिल कर दी, लेकिन अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इस बीच जेएसएससी की ओर से नियुक्ति के लिए चार विज्ञापन जारी कर दिया गया है। इसकी वजह से प्रार्थी सहित अन्य लोग इन नियुक्तियों में आवेदन नहीं कर पा रहे है।

राज्‍य में न‍ियुक्‍त‍ियों को लेकर अफरातफरी का आलम

इसपर अदालत ने कहा कि राज्य में नियुक्ति को लेकर अफरातफरी मची हुई है। कभी नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया जा रहा है, तो कभी नई नियमावली के नाम पर विज्ञापन को रद करने का खेल चल रहा है। जब राज्य में नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकाला जा रहा है। ऐसे में अगर इस मामले में जवाब देने में देरी की जाएगी, तो अन्य नियुक्तियां भी इससे प्रभावित होंगी।

रमेश हांसदा और कुशल कुमार ने कोर्ट में दाख‍िल की याच‍िका

बता दें कि प्रार्थी रमेश हांसदा और कुशल कुमार ने संशोधित नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू की योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्य शर्त रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया है।

राज्‍य से ही दसवीं और प्‍लस टू पास करने की बाध्‍यता गलत

नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। नई नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।

उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखना गलत

याचिका में यह भी कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है। भाषा एवं धर्म के आधार पर राज्य के नागरिकों को बांटने एवं प्रलोभन दिया गया है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग ही मदरसे में करते हैं। ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी अधिकांश अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रविधानों को निरस्त किया जाए।

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