जीवात्मा और परमात्मा का दिव्य मिलन ही रासलीला है

रांची : सत्संग भवन में श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर, राची के तत्वावधान में चल रही हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Jun 2018 06:54 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jun 2018 06:54 AM (IST)
जीवात्मा और परमात्मा का दिव्य मिलन ही रासलीला है
जीवात्मा और परमात्मा का दिव्य मिलन ही रासलीला है

रांची : सत्संग भवन में श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर, राची के तत्वावधान में चल रही भागवत कथा के छठवें दिन सैकड़ों भक्तों ने कथा का आनंद लिया। व्यासपीठ पर विराजमान स्वामी अनिरुद्धाचार्यजी ने कई कथा प्रसंगों को सुनाया। नंद बाबा को वरुण लोक से वापस लाने की कथा, रासलीला और कृष्णअवतार का तुलानात्मक विश्लेषण और रुक्मिणी विवाह की कथा विस्तार से सुनाई। रासलीला की तात्विक व्याख्या करते हुए कहा कि जीवात्मा और परमात्मा का दिव्य मिलन रासलीला है। भगवान कृष्ण स्वयं रस है और जो जीवात्मा सभी दस इंद्रियों से उस रस का पान करे, वे गोपियां है। गोपियां कौनहै? महाराज ने इसकी आगे व्याख्या की। बताया, सतयुग में जब समुंद्र मंथन हुआ, उस समय भगवान के कच्छप रूप में देखकर सिद्ध मछलियों ने अभिलाषा की थी कि किसी भी जन्म में वे प्रभु को प्राप्त करें। वे सभी मत्स्य कन्याएं गोपिया बनकर आई..त्रेता युग में जब प्रभुराम वन में गए तो दंडकारण्य के सिद्ध साधु-संतों ने भगवान राम के लावण्य और रूप सौंदर्य को देख कर याचना की थी-आप मेरे प्रियतम बनें। वे सभी साधु-संत गोपिया बनकर आए। रासलीला के समय गोपियों को अभिमान हो गया। गोपियों ने सोचा कि हम भी राधारानी से कम नहीं है, श्रीकृष्ण हमारे साथ भी उसी तरह रास रचा रहे हें, जैसे राधारानी के साथ। भगवान को किसी भी तरह का अभिमान पसंद नहीं है, विशेषकर भक्तों का अभिमान बिल्कुल ही पसंद नहीं है। श्रीकृष्ण रासलीला के बीच से ही अंतध्र्यान हो गए। अपने बीच श्रीकृष्ण को न पाकर गोपियां बेचैन हो गर्इं। कई-कई तरह से विलाप करने लगीं, अपने अभिमान के लिए क्षमा मांगने लगी। श्रीकृष्ण दया के सागर हैं, करुणा के बादल हैं, ममता की मूर्ति हैं। गोपियों का विलाप सुनकर दयासागर प्रगट हो गए और रासलीला का सारा वातावरण दिव्य हो गया। श्रीकृष्ण की रासलीला की आलोचना करने वाले और सिनेमा या दूरदर्शन के माध्यम से रासलीला के बारे में दुष्प्रचार करने वालों पर कटाक्ष करते हुए महाराज ने कहा कि जगत नियंता भगवान की किसी भी लीला पर संशय करना उचित नहीं है। रासलीला के समय श्रीकृष्ण की उम्र केवल आठ वर्ष थी और इतनी कम उम्र में काम वासना नहीं हो सकती है। रासलीला का एकमात्र उद्देश्य सतयुग और त्रेतायुग सहित युगों -युगों से भगवान के प्रति समर्पित जीवात्मा को मनोवाछित आनन्द प्रदान करके उनका उद्धार करना था।

महाराज ने रुक्मिणी विवाह प्रसंग भी सुनाया। कहा, वह कोई और नहीं, स्वयं जगत्जननी महालक्ष्मी हैं। विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में कमल के फूल पर अवतरित हुई रुक्मिणीजी। कथा को विस्तार दिया। प्रसंगानुसार झांकियां भी थीं। श्रोता गदगद थे।

कथा शुरू होने के पहले मुख्य यजमान अशोक कुमार राजदेवी राजगाड़िया और दैनिक यजमान शेखर-निशि गुप्ता ने श्रीमद् भागवत महापुराण के साथ व्यास-पीठ कर विराजमान श्रीस्वामी अनिरुद्धाचार्यजी का पूजन किया। माला पहनाई और आरती उतारी। इस अवसर पर रामअवतार नारसरिया, गोपाल लाल चौधरी, अनूप अग्रवाल, सुशील लोहिया, नारायण जालान, अश्रि्वनि राजगड़िया, अरविन्द राजगड़िया, उदय राठौर, बिनय धरनीधरका, रमेश धरनीधरका, रंजन सिंह, एन.रामास्वामी और श्रीनिवास सेवा समिति के सदस्य घनश्यामदास शर्मा, गौरी शकर साबु मुरारी मंगल, प्रदीप नारसरिया, रामवृक्ष साहु सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे।

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