जड़ें तलाशने आए मॉरीशस के रामप्रसन्न बोले, मॉरीशस में हमनी के बांचल बानी भोजपुरी के खुरचन

रामप्रसन्न बताते हैं कि वह अपने पूर्वज की पांचवीं पीढ़ी हैं। उनके जो पूर्वज 1865 में मॉरीशस गए थे, उन्होंने अपना नाम राम परोसन, ग्राम फतेहपुर, जिला गोंडा लखनऊ लिखाया था।

By Edited By: Publish:Wed, 03 Oct 2018 01:00 AM (IST) Updated:Wed, 03 Oct 2018 01:45 PM (IST)
जड़ें तलाशने आए मॉरीशस के रामप्रसन्न बोले, मॉरीशस में हमनी के बांचल बानी भोजपुरी के खुरचन
जड़ें तलाशने आए मॉरीशस के रामप्रसन्न बोले, मॉरीशस में हमनी के बांचल बानी भोजपुरी के खुरचन

जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। मॉरीशस आज भले ही दुनिया के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में शुमार हो, कभी यह कालापानी से कम नहीं था। आज से 153 वर्ष पूर्व भारत में अकाल पड़ा था, जिससे भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई थी। इस विकट हालत का फायदा अंग्रेजों ने उठाया और उन्होंने कलकत्ता बंदरगाह से जहाज में भर-भरकर बिहार-यूपी के खेतिहर मजदूरों को उत्तरी अमेरिका के एक टापू पर भेज दिया, जिसके चारों ओर समुद्र है। उस टापू पर फ्रांस का कब्जा था, जहां सिर्फ गन्ने की खेती होती थी। तब से हम वहीं पल-बढ़ रहे हैं। ये बातें मॉरीशस से आए अशोक कुमार रामप्रसन्न ने कहीं।

जड़ें तलाशने करीब एक माह पूर्व भारत आए रामप्रसन्न

जमशेदपुर आए रामप्रसन्न बताते हैं कि वह अपने पूर्वज की पांचवीं पीढ़ी हैं। उनके जो पूर्वज 1865 में मॉरीशस गए थे, उन्होंने अपना नाम राम परोसन, ग्राम फतेहपुर, जिला गोंडा लखनऊ लिखाया था। अपनी जड़ें तलाशने करीब एक माह पूर्व भारत आए रामप्रसन्न बताते हैं कि उन्हें अपना पैतृक स्थान नहीं मिला। उनके पास इसके अलावा कोई सूत्र नहीं है, जिससे पता चल सके कि उनका घर कहां था। बहरहाल उन्हें भारत आकर यहां भोजपुरी समाज के साथ मिलने-जुलने और बात करके ऐसा महसूस हो रहा है कि उन्हें वह खजाना मिल गया, जिसकी तलाश कर रहे थे। उनके पूर्वज रामायण, हनुमान चालीसा और तुलसी की माला लेकर मॉरीशस गए थे। गिरमिटिया मजदूरों की इस पीढ़ी ने इन तीनों के साथ भोजपुरी भाषा-संस्कृति को ना केवल बचाए रखा, बल्कि समृद्ध भी किया। भोजपुरी में कहा कि 'मॉरीशस में त हमनी के भोजपुरी के खुरचन बांचल बानी'। वहां मुख्य रूप से फ्रांसीसी अपभ्रंश क्रेयोल और चीनी के अलावा भोजपुरी बोली जाती है। रामप्रसन्न के साथ भारत भ्रमण पर हीरालाल लीलाधर भी आए हैं, दोनों वहां हिंदी के शिक्षक थे। सेवानिवृत्त होने के बाद साहित्य सेवा में जुटे हैं। हीरालाल को भारतीय मूल के बारे में कुछ पता नहीं है।

तुलसी भवन में हुआ सम्मान

मॉरीशस से आए इन दो साहित्यकारों का सम्मान सोमवार को बिष्टुपुर स्थित तुलसी भवन में हुआ। जमशेदपुर भोजपुरी साहित्य परिषद के बैनर तले हुए कार्यक्रम में दोनों ने कविताएं भी सुनाई। परिषद के प्रधान सचिव डॉ. अजय कुमार ओझा ने बताया कि ये रांची में आयोजित लोकमंथन कार्यक्रम में भाग लेने के बाद जमशेदपुर आए हैं। यहां से छपरा जाएंगे, जहां भोजपुरी महोत्सव में शामिल होंगे। इनके साथ तुलसी भवन में जिन भोजपुरी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया, उनमें जनार्दन सिंह (देवरिया), विश्वनाथ शर्मा (छपरा), रत्‍‌नेश ओझा राही (बक्सर), कमल कुमार सिंह (आरा) व बृजमोहन प्रसाद अनाड़ी (बलिया) शामिल थे।

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