Aushman bharat yojana : आयुष्मान से बची रीना की जान, बिकने से बच गई जमीन

आयुष्मान भारत योजना ने 19 साल की रीना को जिंदगी का नया वरदान दे दिया। अब उसे पेट में 13 किलो का ट्यूमर लेकर तकलीफ नहीं झेलनी होगी और न किसे ताने सुनने होंगे।

By Edited By: Publish:Sun, 28 Apr 2019 07:00 AM (IST) Updated:Sun, 28 Apr 2019 11:30 AM (IST)
Aushman bharat yojana : आयुष्मान से बची रीना की जान, बिकने से बच गई जमीन
Aushman bharat yojana : आयुष्मान से बची रीना की जान, बिकने से बच गई जमीन

जमशेदपुर,अमित तिवारी।  आयुष्मान भारत योजना ने 19 साल की रीना की जिंदगी को नया वरदान दे दिया। अब उसे पेट में 13 किलो का ट्यूमर लेकर तकलीफ नहीं झेलनी होगी और न किसे ताने सुनने होंगे। आर्थिक तंगी के कारण वह पहले ट्यूमर से हार मान बैठी थी।

आदित्यपुर बस्ती निवासी राम सहाय सामद (रीना के पिता) के पास उसका इलाज कराने के पैसे नहीं थे। जमीन बेचने की तैयारी थी। तभी इस योजना की जानकारी मिली, जो उम्मीद की किरण बनी। योजना के तहत ब्रह्मानंद नारायणा अस्पताल में रीना की सर्जरी हुई। अब वह स्वस्थ है। उसका ट्यूमर इतना बड़ा हो चुका था कि उसने कैंसर का रूप ले लिया। अब मरीज को नियमित जांच करानी होगी। रीना टाटा कॉलेज में इंटर की छात्रा है। कहती है कि वह आगे अब पढ़ेगी भी और कुछ ऐसा करेगी जिससे दूसरे मरीजों को इस तरह का ताना नहीं झेलना पड़े।

..और भर आई रीना की आंखें

दैनिक जागरण से अपनी पीड़ा बताते हुए रीना की आंखें भर आई। बोली- ऐसी परिस्थिति आ गई थी कि कॉलेज छोड़ना पड़ा। इंटर की परीक्षा भी नहीं दे सकी। ताना सुनना पड़ता था, वह अलग। भगवान ना करे, ऐसी बीमारी को हो। रीना के पिता राम सहाय सामद किसान हैं। उन्होंने अस्पतालों का कई चक्कर लगाया, लेकिन हर जगह पैसा बाधक बना।

सरायकेला के एक चिकित्सक ने जगायी उम्मीद

रीना के पिता के मुताबिक सरायकेला के डॉ. अजय कुमार मंडल के पास जब वे दिखाने पहुंचे तब उन्होंने अल्ट्रासाउंड कर पेट में ट्यूटर होने की पुष्टि की। इसके बाद वह इलाज के लिए टीएमएच अस्पताल पहुंचे तो यहां पर 60-70 हजार रुपये खर्च बताया गया जो देने में वह असमर्थ थे। दोबारा डॉ. मंडल के पास जाने पर उन्होंने आयुष्मान भारत योजना की उम्मीद जगाई। इसके बाद वे गोल्डन गार्ड लिए और ब्रह्मानंद अस्पताल पहुंचे।

टीम ने किया ऑपरेशन

मरीज को जिस हालात में लाया गया, उसकी स्थिति गंभीर थी। इसे देखते हुए चिकित्सकों की एक टीम गठित की गई और ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन करीब दो घंटे चला। अगर इलाज में और देरी होती तो मरीज की जान तक जा सकती थी।

- डॉ. आशीष कुमार, कैंसर रोग विशेषज्ञ, ब्रह्मानंद अस्पताल।

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