जुलाई से दिसंबर के बीच यहां हर माह 50 से अधिक बच्चों की चली जाती जान Jamshedpur News

यह आंकड़ा चिंता में डालने वाला है। जुलाई से दिसंबर के बीच यहां हर माह 50 से अधिक बच्चों की जान चली जाती है। मौत की वजह भी हैरान करनेवाली है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 07 Jan 2020 12:18 PM (IST) Updated:Tue, 07 Jan 2020 12:18 PM (IST)
जुलाई से दिसंबर के बीच यहां हर माह 50 से अधिक बच्चों की चली जाती जान Jamshedpur News
जुलाई से दिसंबर के बीच यहां हर माह 50 से अधिक बच्चों की चली जाती जान Jamshedpur News

जमशेदपुर, अमित तिवारी।  332 बच्चों की मौत की खबर दैनिक जागरण में छपने ने बाद महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन सक्रिय हो गया है। अधीक्षक डॉ. संजय कुमार व उपाधीक्षक डॉ. नकुल प्रसाद चौधरी ने सोमवार को शिशु रोग विभाग के चिकित्सक व नर्सों को बुलाकर रिपोर्ट की समीक्षा की। बीते तीन-चार वर्षों में हुई मौत के आंकड़ों पर नजर दौड़ाया गया तो पाया गया कि जुलाई से दिसंबर बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।

बीते छह माह में वर्ष 2019 में 316 बच्चों की मौत हुई है। वर्ष 2018 में जुलाई और अगस्त में सबसे अधिक मौत हुई थी। इन दो महीनों में 110 बच्चों ने दम तोड़ा था। इसी तरह का आकलन वर्ष 2017 का भी है। जुलाई से दिसंबर तक के आंकड़े बताते हैं कि हर माह 50 से अधिक बच्चों की मौत हुई है। इसकी वजह अन्य कारणों के साथ-साथ इंफेक्शन और ठंड भी है। जुलाई से सिंतबर तक बरसात का मौसम होता है। उस दौरान इंफेक्शन फैलने की आशंका सबसे अधिक होती है। जिन बच्चों का वजन कम होता है वे तुरंत संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। इससे मौत की आशंका बढ़ जाती है। वहीं, अक्टूबर से दिसंबर में ठंड अधिक पड़ती है। इस मौसम में 80 से 100 किलोमीटर दूर से चलकर मरीज आते हैं। बच्चों को ठंड लगने की संभावना बढ़ जाती है। वैसे, स्पष्ट कारण गहन जांच व रिसर्च के बाद ही बताया जा सकता है। जनवरी से जून तक मौत की संख्या कम है। अधिकतर माह में 30-45 के बीच मौत हुई है।

गंदगी देख दो साल पहले टीम ने जताई थी चिंता, नहीं सुधरे हलात 

वर्ष 2018 में मौत के बाद राज्य सरकार की टीम जांच करने एमजीएम अस्पताल पहुंची थी। उस दौरान शिशु रोग विभाग में गंदगी और एनआइसीयू (न्यू बोर्न इंटेसिव केयर यूनिट) के अत्यंत संकरे प्रवेश द्वार पर आपत्ति जताई गई थी। स्वच्छता की भारी कमी बताई गई थी। दो साल बाद हालात वैसा ही है। सफाई की व्यवस्था हुई न संकरे रास्ते को ठीक किया गया।

छह वार्मर पर भर्ती 17 बच्चे, संक्रमण का खतरा अधिक

सोमवार को शिशु रोग विभाग के एनआइसीयू में मरीजों की संख्या जरूरत से काफी अधिक पाई गई। कुल छह वार्मर लगे हैं, यानी छह मरीज ही भर्ती किए जा सकते हैं। पर, स्थिति चौंकाने वाली दिखी। एक वार्मर पर दो से तीन बच्चे पाए गए। छह की जगह 17 बच्चे भर्ती थे। इससे बच्चों में संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ गई है। सभी बच्चे अलग-अलग बीमारियों से ग्रस्त होते हैैं। इसलिए उन्हें एनआइसीयू में भर्ती किए जाते हैं। मकसद होता है कि संक्रमण नहीं हो।

बच्चों की मौत का मुख्य वजह

 कम वजन के बच्चों का जन्म। 400 ग्राम तक होता है वजन। गर्भवती का सही देखरेख नहीं हो पाना। इससे जच्चा-बच्चा दोनों की मौत होती है। एनीमिया (खून की कमी) व कुपोषण। गर्भवती की नियमित रूप से जांच नहीं होना। संस्थागत प्रसव बढऩे से सही आंकड़ा सामने आ रहे हैं। निजी अस्पतालों में भर्ती बच्चे अत्यंत गंभीर स्थिति में एमजीएम रेफर कर दिए जाते हैं।

दोषियों पर कार्रवाई की मांग

बच्चों की मौत के मामले में सोमवार को झारखंड ह्यूमन राइट्स कांफ्रेंस (जेएचआरसी) की तीन सदस्यीय टीम ने अधीक्षक डॉ. संजय कुमार से मुलाकात की। इस दौरान टीम ने कहा कि बच्चों की मौत को सरकार को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। आशंका जताई की जिले के सभी निजी व सरकारी अस्पतालों की जांच की जाए तो हर माह करीब 500 से अधिक बच्चों की मौत होने की बात सामने आएगी। टीम में जगन्नाथ मोहंती के अलावे डीएन शर्मा व ऋषि गुप्ता शामिल थे।  

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