पावड़ा पहाड़ में सेंदरा करने निकले आदिवासी

By Edited By: Publish:Sat, 19 Apr 2014 01:01 AM (IST) Updated:Sat, 19 Apr 2014 01:01 AM (IST)
पावड़ा पहाड़ में सेंदरा करने निकले आदिवासी

जागरण संवाददात, जमशेदपुर : आदिवासी समुदाय में सेंदरा पर्व की तैयारी शुरू हो गई है। दोलमा बुरु सेंदरा समिति ने इसके लिए पारंपरिक औपचारिकताएं शुरू कर दी है तो वहीं घाटशिला अनुमंडल के गुड़ाबांधा प्रखंड व आस-पास के ग्रामीण परंपरा के अनुरूप शुक्रवार को शिकार मेला के लिए रवाना हुए। रेडुबा, भालकी, गुड़ाबांधा, कनियालुका, माछभंडार, हाथियाखेदा, महुलीशोल आदि के ग्रामीण हिरण, जंगली सुअर आदि जानवरों का शिकार कर शनिवार को वापस लौटने पर जश्न मनाएंगे। इधर दलमा जंगल में भी इस बार ज्यादा से ज्यादा लोगों के जुटान के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी की जा रही है। तारीख को लेकर गिरा साकम (संदेश पत्र) तुपुडांग में हुए भोक्ता मेले में ही समुदाय के बीच वितरित किया जा चुका है। वन विभाग की तैयारियों को देखते हुए फिलहाल अंदर ही अंदर सेंदरा की तैयारी चल रही है।

बताते चलें कि कोल्हान के आदिवासी मई महीने में हर साल व्यापक स्तर पर सेंदरा पर्व मनाते आए हैं। इसके लिए दलमा जंगल की तलहटी पर स्थित गिपितिज टांडी (ठहराव स्थल) पर कोल्हान भर के आदिवासी पारंपरिक हथियारों से लैश होकर जुटते हैं। रात भर पारंपरिक पूजा अर्चना करने के बाद तड़के जंगल पर चढ़ाई कर समुदाय के लोग वन्य जीवों का सेंदरा करते हैं।

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सेंदरा को लेकर आदिवासी मान्यता

सेंदरा का शाब्दिक अर्थ शिकार होता है। इस पर्व के मौके पर आदिवासी समुदाय के लोग जंगल में जानवरों का शिकार करते हैं। आदिवासियों की मान्यता है कि सेंदरा करने के बहाने जब आदिवासी समुदाय के लोग जंगल की चढ़ाई करते हैं तो जानवरों को खदेड़ने के लिए नगाड़े व ढोल बजाए जाते हैं। इससे घबराकर जानवर जंगल के किसी एक छोर की ओर डर के मारे भागते हैं। इससे लाभ यह होता है कि इतने बड़े जंगल में जहां वर्ष भर नर व मादा जानवर एक दूसरे से न मिल पाने के कारण प्रजनन नहीं कर पाते उन जानवरों को खदेड़कर जंगल के एक छोर में जमा कर दिया जाता है, जिससे उन्हें मिलन करने का मौका मिलता है।

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