पाकुड़ के विचाराधीन बंदी की मौत

दुमका केंद्रीय जेल प्रशासन की लापरवाही की वजह से सोमवार को पाकुड़ के रहनेवाले 21 वर्षीय विचाराधीन बंदी हसन शेख की मौत हो गई। मृतक एक साल से जेल में था और सिर में दर्द की वजह से उसे 16 अप्रैल को सदर अस्पताल में कैदी को वार्ड में भर्ती कराया गया था। दस मई को डॉक्टर ने बेहतर इलाज के लिए रिम्स रेफर किया था लेकिन जेल प्रशासन बाहर नहीं ले गया। सोमवार को दंडाधिकारी की निगरानी में शव का पोस्टमार्टम कर परिजन के सुपुर्द कर दिया गया। परिजनों ने जेल प्रशासन पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 20 May 2019 04:24 PM (IST) Updated:Mon, 20 May 2019 04:24 PM (IST)
पाकुड़ के विचाराधीन बंदी की मौत
पाकुड़ के विचाराधीन बंदी की मौत

दुमका : केंद्रीय जेल प्रशासन की लापरवाही की वजह से सोमवार को पाकुड़ के रहनेवाले 21 वर्षीय विचाराधीन बंदी हसन शेख की मौत हो गई। मृतक एक साल से जेल में था और सिर में दर्द की वजह से उसे 16 अप्रैल को सदर अस्पताल में कैदी को वार्ड में भर्ती कराया गया था। दस मई को डॉक्टर ने बेहतर इलाज के लिए रिम्स रेफर किया था लेकिन जेल प्रशासन बाहर नहीं ले गया। सोमवार को दंडाधिकारी की निगरानी में शव का पोस्टमार्टम कर परिजन के सुपुर्द कर दिया गया। परिजनों ने जेल प्रशासन पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है।

बताया जाता है कि पाकुड़ जिले के महेशपुर थानान्तर्गत लहासपुर गांव का हसन किसी पत्थर खदान में करता था। पिछले साल जून माह में शिकारीपाड़ा पुलिस ने अवैध विस्फोटक के साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। जेल में आने के बाद वह पूरी तरह से ठीक था और किसी तरह की बीमारी भी नहीं थी। इसी साल अप्रैल माह में सिर में दर्द की वजह से उसे जेल के अस्पताल में भर्ती कराया गया। करीब 15 दिन तक भर्ती रहने के बाद हालत में सुधार नहीं हुआ तो 16 अप्रैल को सदर अस्पताल भेज दिया गया। यहां कैदी वार्ड में उसका इलाज चल रहा था। दस मई को हालत में सुधार नहीं होने पर डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए रिम्स रेफर कर दिया लेकिन जेल प्रशासन ने उसे बाहर ले जाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालत लगातार खराब होती रही लेकिन जेल प्रशासन बाहर भेजना जरूरी नहीं समझा। अंततोगत्वा सोमवार की सुबह उसने दम तोड़ दिया। मौत की जानकारी मिलने पर दंडाधिकारी संतोष कुमार मौके पर पहुंचे और पंचनामा तैयार कराकर अपनी ही निगरानी में शव का पोस्टमार्टम कराया। मृतक के भाई इस्लाम शेख और नाबिया बेबा का कहना था कि जेल प्रशासन की लापरवाही से हसन की मौत हुई। उसे किसी तरह की बीमारी नहीं थी। जेल में आने के बाद उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिस कारण उसे सिर में दर्द होने लगा। डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए रांची रेफर किया लेकिन जेल प्रशासन ने बाहर ले जाना ठीक नहीं समझे। अगर बेटा बाहर चला जाता तो आज शायद उसकी मौत नहीं होती। मौत के पीछे जेल प्रशासन जिम्मेदार है। हालांकि हर बार की तरह जेल प्रशासन इस मामले में बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ। कई बार काराधीक्षक के मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी