अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर कोरोना का अल्प विराम

सुल्तानगंज-देवघर कांवरिया पथ से राजीव बुधवार के दिन के 11 बजे हैं। सावन का महीना और स

By JagranEdited By: Publish:Thu, 09 Jul 2020 11:17 PM (IST) Updated:Fri, 10 Jul 2020 06:20 AM (IST)
अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर कोरोना का अल्प विराम
अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर कोरोना का अल्प विराम

सुल्तानगंज-देवघर कांवरिया पथ से राजीव : बुधवार के दिन के 11 बजे हैं। सावन का महीना और सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ घाट पर गंगा बिल्कुल शांत हैं। वैसे ही जैसे सुल्तानगंज से बैद्यनाथ के दरबार तक जाने वाला कांवरिया पथ सूना है। शिव की प्रिय गंगा की अकुलाहट भले ही असंख्य भक्तों के कांधे पर सवार होकर देवघर जाने की है, लेकिन इस राह में कोरोना ने रोड़ा अटकाया है। 200 साल से अधिक पुरानी अविरल, अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर पाबंदी भले ही मानव जीवन की सुरक्षा के लिए हो, लेकिन पाबंदी ने सुल्तानगंज से देवघर के बीच 105 किलोमीटर कांवरिया पथ पर शून्य की स्थिति की है। इस वर्ष हर चेहरे पर मायूसी है।

शांत गंगा को निहारने के क्रम में प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी का एहसास होता है। देखा कि सुल्तानगंज थाना के प्रभारी रामप्रीत कुमार दल-बल के साथ गंगा तट के किनारे बंद पड़े दुकानों का मुआयना कर रहे हैं। कुछेक कर्मकांड कराते लोगों से कहा, भीड़ न लगाएं यहां। बैद्यनाथधाम मंदिर का पट इस वर्ष कांवरियों के लिए बंद है। अजगैबीनाथ के मंदिर में भी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक है। मंदिर के महंत प्रेमानंद गिरि कहते हैं, कि सरकार का निर्णय सर्वोपरि है। तभी सुल्तानगंज के सीओ शशिकांत कुमार घाट पर पहुंच गए। बोले, सीढ़ी घाट में एक कोरोना पॉजिटिव मिला है, 500 मीटर के दायरे को कंटेंटमेंट जोन घोषित किया है। यहां न रुकें। सुल्तानगंज भागलपुर जिले में पड़ता है। यहां से निकलने के बाद असरगंज से संग्रामपुर तक मुंगेर जिले का दायरा है। इसके आगे बांका और फिर सबसे अंत में झारखंड सीमा पर देवघर। दिन के 12 बजे असरगंज से संग्रामपुर मुख्य पथ पर कोई चहल-पहल नहीं। घुंघरुओं की आवाज न बोलबम का घोष। एक भी श्रद्धालु मार्ग पर नहीं दिखा। संग्रामपुर से आगे बढ़ने पर यह उम्मीद थी कि शायद श्रद्धालु मिलें पर रामपुर, बेलहर, कटोरिया तक न सवारी गाड़ी न कांवरिया। धर्मशालाएं सूनी हैं। दिन के एक बजे लोहटनिया में साथी लाइन होटल में चाय की चुस्कियों के बीच होटल के मालिक को छेड़ा तो मायूस सुरेश यादव बोले कहा कि सबकुछ तबाह हो गया महामारी में। नहीं तो सावन में पूछिए मत, सड़क पर चलना मुश्किल हो जाता था। अबरखिया में स्व.फूलझारो देवी की स्मृति में बनाया गया सिवान धर्मशाला। यहां राजमिस्त्री काम कर रहे हैं। धर्मशाला बनवाने वाले उमेश तिवारी के साथ शैलेंद्र मिश्र, पंचानंद मिश्र, राजू पांडेय आए हैं। शैलेंद्र कहते हैं कि मेला से ज्यादा सबक जिदा बचना जरूरी है। इनारावरण पहुंचते-पहुंचते शाम के तीन बजे हैं।

सावन की आमदनी से हर महीने की तंगी होती थी दूर :

तिलैया में कांवरिया पथ से सटे सत्यनारायण जायसवाल टूटे-फूटे होटल में बैठे हैं। बोले, इस माह की आमदनी से शेष महीनों की तंगी दूर हो जाती है। कोरोना सबको ले डूबा। खाने को लाले हैं। सत्यनारायण ही नहीं 105 किमी के दायरे के हर व्यवसायी और ग्रामीणों को सावन का इंतजार रहता है। मेले का अर्थशास्त्र है अगर एक कांवरिया तीन-चार दिनों की पैदल यात्रा में औसतन 600-800 रुपये भी खर्च करता है तो एक माह में तकरीबन दो हजार करोड़ से अधिक का कारोबार तय है। गत वर्ष सावन में 30 लाख कांवरिया देवघर पहुंचे थे।

दुम्मा में पुलिस पर कांवरिया को आदर के साथ वापस लौटाने की जिम्मेदारी :

दुम्मा पहुंचे तो यहां पुलिस की जबदरस्त तैनाती है। यही बिहार और झारखंड की सीमा है। यहां से बैद्यनाथ धाम की दूरी 10 किलोमीटर है। यहां पहुंचते ही कांवरियों के चेहरे पर शीघ्र शिव दर्शन का भाव तैरने लगता है। यहां वाहनों की सघन जांच हो रही है। कोई भूला-भटका शिवभक्त यहां तक आ भी जाए तो उन्हें आदरपूर्वक लौटाने की कार्रवाई हो रही है। यहां तैनात दंडाधिकारी लक्ष्मीनारायण राउत ने कहा कि आज एक भी कांवरिया नहीं आए हैं। आगे खिजुरिया तक पैदल कांवरिया पथ जो बीते साल तक गुलजार रहता था, अब अंधेरे में लिपटा है। देवघर शहर भी सावन से इतर सामान्य दिन की तरह है। शहर में माइक से एलान की आवाज कान में सुनाई देती है- इस बार मन के घर को देवघर बनाएं। घर में ही शिव की आराधना कर सावन मनाएं..।

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