Weekly News Roundup Dhanbad: तो ई साहब ठेकेदार के हैं... पढ़िए नगर निगम की अंदरूनी कहानी

ब्रेड आज घर-घर की जरूरत है। एक माह पहले तक 200 ग्राम का ब्रेड 10 रुपये में मिला करता था। 400 ग्राम ब्रेड की कीमत थी 24 रुपये। इसकी मांग बढ़ी तो दाम भी बढ़ा दिए।

By MritunjayEdited By: Publish:Tue, 25 Feb 2020 02:16 PM (IST) Updated:Tue, 25 Feb 2020 02:16 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: तो ई साहब ठेकेदार के हैं... पढ़िए नगर निगम की अंदरूनी कहानी
Weekly News Roundup Dhanbad: तो ई साहब ठेकेदार के हैं... पढ़िए नगर निगम की अंदरूनी कहानी

धनबाद [ आशीष सिंह ]। नगर निगम के दो कार्यालय हैं। बैंक मोड़ में पुराना और लुबी सर्कुलर रोड में नया। वैसे तो पुराने में काम बंद है मगर यहां कर्मी अब भी काम कर रहे हैं। इन्हीं में एक महिलाकर्मी हैं। उनकी बेटी की शादी अगले माह है। तनख्वाह कम है। शादी के लिए एक लाख रुपये लोन का आवेदन कर दिया। फाइल तीन माह से एक से दूसरे टेबल चक्कर काट रही है। परेशान महिला एक दिन पहुंच गईं नगर आयुक्त की गोपनीय शाखा। वहां कुर्सी पर सुशोभित कर्मी से पूछ लिया- कब मिलेगा लोन। भाई साहब ने हाकिम के पास जाने को कह दिया। महिला ज्यादा पढ़ी-लिखी थी नहीं। बड़े हाकिम के चैंबर की ओर इशारा करते हुए बोलीं- इनके पास जाएं तो। जवाब मिला, इनका दूसरा काम है। इसपर वह तपाक से बोल पड़ीं- तो क्या ई साहब ठीकेदार (सिर्फ बड़े लोगों के लिए) के हैं।

सूखकर कम हो गया वेट

ब्रेड आज घर-घर की जरूरत है। एक माह पहले तक 200 ग्राम का ब्रेड 10 रुपये में मिला करता था। 400 ग्राम बे्रड की कीमत थी 24 रुपये। इसकी मांग बढ़ी तो दाम भी बढ़ा दिए। दस वाला ब्रेड 15 का हो गया। 24 वाला भी 30 रुपये में मिलने लगा। लोगों को लगा महंगाई है, इसलिए दाम बढ़ा होगा। लेकिन, ये क्या। ब्रेड निर्माताओं ने तो दोनों तरफ की जेब काटने की तैयारी कर ली है। एक तरफ दाम बढ़ाया तो दूसरी तरफ इसका वेट यानी वजन भी कम कर दिया। 200 ग्राम का ब्रेड 186 ग्राम और 400 ग्राम का ब्रेड 386 ग्राम का हो गया। कारण पूछने पर जवाब मिलता है- ब्रेड सूख गया होगा। इसीलिए वजन कम दिख रहा है। क्वालिटी ब्रांड का यह ब्रेड वासेपुर के एक व्यापारी का है और ये साहब पूर्व मंत्री की नाम राशि हैं।

14 करोड़ का डीपीआर, बेकार

झरिया का चर्चित राजा तालाब। एक समय था जब हालात बुलंद थे। राज घराने के लोग यहां स्नान किया करते थे। वो समय तो गया। अब स्थानीय लोग इसका उपयोग करते हैं। छठ में काफी भीड़ होती है मगर आज यह अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। अतिक्रमण है तो गंदगी भी कम नहीं। थोड़ा हो-हंगामा हुआ तो योजना बनी साफ-सफाई की। 2013 में साढ़े तीन करोड़ रुपये मिले। 48 लाख रुपये खर्च कर तालाब की मिट्टी निकाली गई। बस, हो गया। शेष तीन करोड़ रुपये आज तक निगम के खाते में है। ब्याज बढ़ रहा है, साथ-साथ तालाब की बदहाली भी। निगम तक आवाज पहुंची तो आननफानन सौंदर्यीकरण की योजना बन गई। 14 करोड़ का डीपीआर भी बना। फिर अचानक उसकी दिलचस्पी खत्म हो गई। क्यों? कारण देखिए, झरिया को तो एक दिन उजडऩा ही है। खर्च क्यों किया जाए। अब क्या हो?

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