Gandhi Jayanti: आजादी की लड़ाई में सहयोग के लिए बापू ने चादर बिछाई तो महिलाओं ने उसे जेवर से ढंक दिया

Gandhi Jayanti पूरा देश आज राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जयंती मना रहा है। वैसे तो देश की आजादी की लड़ाई में बापू के योगदान की कहानियों से इतिहास के पन्‍ने भरे पड़े हैं लेकिन ऐसे कई और भी हाथ थे जिन्‍होंने बापू के हाथों को मजबूत किया।

By Deepak Kumar PandeyEdited By: Publish:Sun, 02 Oct 2022 03:00 PM (IST) Updated:Sun, 02 Oct 2022 03:00 PM (IST)
Gandhi Jayanti: आजादी की लड़ाई में सहयोग के लिए बापू ने चादर बिछाई तो महिलाओं ने उसे जेवर से ढंक दिया
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी झारखंड के बोकारो जिले में स्थि‍त बेरमो कोयलांचल आए थे।

फैयाज आलम ‘मुन्ना’, बेरमो (बोकारो): पूरा देश आज राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जयंती मना रहा है। वैसे तो देश की आजादी की लड़ाई में बापू के योगदान की कहानियों से इतिहास के पन्‍ने भरे पड़े हैं, लेकिन ऐसे कई और भी हाथ थे, जिन्‍होंने बापू के हाथों को मजबूत किया। आजादी के उन गुमनाम दीवानों के सहयोग ने बापू को इस कदर मजबूत बनाया कि उन्‍होंने बिना तलवार, बिना ढाल देश को गुलामी की बेडि़यों से बाहर निकाला।

स्वतंत्रता संग्राम में जनभागीदारी बढ़ाने के लिए 28 अप्रैल 1934 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी झारखंड के बोकारो जिले में स्थि‍त बेरमो कोयलांचल आए थे। जरीडीह बाजार, बेरमो सीम व गोमीटांड़ में उन्‍होंने जनसभा को संबोधित किया था। तब स्वतंत्रता सेनानी होपन मांझी व उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी ने बापू की आगवानी की थी। क्षेत्र के लोग पुराने दिनों को याद कर बताते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग के लिए अधिकतर लोगों ने रुपये-पैसे देकर और महिलाओं ने अपने जेवर उतारकर बापू की बिछाई चादर पर डाले थे।

[स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण मांझी का फाइल फोटो।]

लक्ष्मण मांझी की पुत्रवधू मीना देवी ने अपने पूर्वजों से उस दौर की कहानियां सुनी हैं। उन्‍होंने बताया कि जनसभा के बाद उनके ससुर के पिता होपन मांझी ने गोमिया के करमाटांड़ स्थित अपने घर में राष्ट्रपिता को रात्रि में विश्राम कराया था। 29 अप्रैल 1934 को तड़के होपन मांझी व लक्ष्मण मांझी ने गांधीजी को बैलगाड़ी से गोमो रेलवे स्टेशन ले जाकर दिल्ली जाने वाली ट्रेन में सवार कराया था। तब दोनों पिता-पुत्र को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में डाल दिया था। आजादी के बाद वर्ष 1978 में होपन मांझी का निधन हो गया। उसके पूर्व वर्ष 1952 में लक्ष्मण मांझी को तत्कालीन बिहार सरकार ने बिहार विधानसभा परिषद का सदस्य (एमएलसी) मनोनीत किया था। उनकी मृत्यु वर्ष 1998 में करमाटांड़ स्थित आवास में 99 वर्ष की उम्र में हुई।

भाषण सुनने के लिए जुटे थे हजारों महिला-पुरुष

जब गांधीजी ने 28 अप्रैल 1934 को जरीडीह बाजार, बेरमो सीम व गोमिया स्थित गोमीटांड़ में जनसभा को संबोधित किया था, तब उनका भाषण सुनने के लिए हजारों महिला-पुरुष जुटे थे। गांधीजी ने कहा था कि स्वतंत्रता संग्राम की मशाल को सभी लोग थामें। देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति जरूर मिलेगी। गांधीजी ने अपने तन पर ओढ़ी चादर जमीन पर बिछा दी औश्र लोगों से स्वतंत्रता संग्राम के लिए आर्थिक सहयोग करने की अपील की थी। अधिकतर लोगों ने जेब से रुपये-पैसे निकालकर इस चादर पर रख दिए, वहीं महिलाओं ने अपने गहनों से चादर को ढंक दिया। देश की आजादी के लिए लोगों के दिलों में जल रही इस मशाल की आग ने बापू के आंदोलन को एक नई ऊर्जा दी थी।

[लक्ष्मण मांझी का गोमिया स्थित घर, जिसमें राष्ट्रपिता गांधी ने 28 अप्रैल 1934 की रात गुजारी थी।]

जिस घर में ठहरे थे गांधीजी, वह आज भी है मौजूद

स्वतंत्रता सेनानी होपन मांझी एवं लक्ष्मण मांझी का मिट्टी व खपरैल का वह मकान आज भी गोमिया प्रखंड के करमाटांड़ में मौजूद है, जिसमें गांधीजी 28 अप्रैल 1934 को ठहरे थे। अब वह घर काफी जर्जर हो चुका है। उस घर में रह रहे उनके स्वजनों में सबसे बुजुर्ग हैं लक्ष्मण मांझी की 77 वर्षीय विधवा पुत्रवधू मीना देवी, जिनके पति भगवान दास मांझी का निधन 2006 में हो गया। वहीं, पुत्र बाबूदास मांझी, गुणाराम मांझी, कार्तिक मांझी एवं पुत्री ढेनी देवी सपरिवार उसी घर व पास में बनाए गए इंदिरा आवास में रहते हैं। लक्ष्मण मांझी के दामाद मोहन मांझी एवं बेटी मंझली देवी के परिवार के लोग गोमिया प्रखंड की सियारी पंचायत में रहते हैं।

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