जब धनबाद-सिंदरी रेल पटरी पर उतरीं गायें, इंसानों के आंदोलन को मिली ताकत

किसी छोटे-मोटे स्टेशन पर ट्रेन की जानकारी लेने के लिए पसीना बहाना पड़े तो सह भी लेंगे पर 16 हजार करोड़ की कमाई कर देश में पहले नंबर पर रहने वाले धनबाद जैसे स्टेशन पर भी अगर भाग-दौड़ करनी पड़े तो नाराजगी तो स्वाभाविक है।

By MritunjayEdited By: Publish:Sun, 11 Jul 2021 10:21 AM (IST) Updated:Sun, 11 Jul 2021 10:21 AM (IST)
जब धनबाद-सिंदरी रेल पटरी पर उतरीं गायें, इंसानों के आंदोलन को मिली ताकत
धनबाद सिंदरी रेल लाइन ( सांकेतिक फोटो)।

तापस बनर्जी, धनबाद। अपनी मांगें मनवाने के लिए इंसानों को रेल रोकते तो कई बार देखा है, लेकिन इस बार ताकत का एहसास कराया बेजुबान गायों ने। धनबाद से सिंदरी जाने वाले रेल मार्ग पर छाताकुल्ही के लोग सबवे के लिए कई वर्षों से बस इंतजार ही कर रहे हैं। रेलवे ने अक्टूबर 2019 में इसकी आधारशिला भी रख दी, लेकिन उसके बाद से यह सबवे बस फाइल में बंद है। अब जब धैर्य जवाब देने लगा तो लोगों ने आंदोलन की राह पकड़ी है। ग्रामीणों का कहना है कि एक तो सबवे बना नहीं रहे, ऊपर से ट्रैक पर घंटों मालगाड़ी सुस्ताती रहती है। इससे कई गांवों तक पहुंचने का रास्ता ही बंद हो जाता है। इससे गुस्साई गायों ने एक दिन पटरी पर ही डेरा डाल दिया। इनके अडऩे का अंदाज देख लग रहा था मानो रेलवे से पूछ रही हों, सबवे बनाएंगे या नहीं?

रेलवे की 'मुगलकालीन सुरंग'

पैसे बचाने के चक्कर में बेतरतीब काम तो सरकारी विभागों का हक है, लेकिन 18 करोड़ रुपये खर्च कर देने के बाद भी हाल वही ढाक के तीन पात हो तो क्या कहा जा सकता है! बहरहाल, जो बना, उसे इतना बुरा भी नहीं कहा जा सकता... 21वीं सदी में 'मुगलकालीनÓ अंधेरी सुरंग बनाकर रेलवे ने मानो धरोहर खड़ी कर दी। आसनसोल रेल डिविजन ने पूरे 18 करोड़ रुपये इस सबवे पर खर्च किए। नक्काशी ऐसी कि अतीत की याद दिला दे, लेकिन साथ में सरकारी काम का मोहर भी है। इतना खर्च के बाद भी छत से बारिश की बूंदें टपक रही हैं। पानी निकासी का बंदोबस्त हुआ नहीं, इस वजह से सबवे के बीचोंबीच तालाब बन चुका है। कुल मिलाकर यह सबवे कम और वर्तमान व अतीत की दहलीज अधिक मालूम हो रही है। रेलवे भी कह रही, मुफ्त का मजा है, लेते रहिए...।

चिराग तले अंधेरा...

किसी छोटे-मोटे स्टेशन पर ट्रेन की जानकारी लेने के लिए पसीना बहाना पड़े तो सह भी लेंगे, पर 16 हजार करोड़ की कमाई कर देश में पहले नंबर पर रहने वाले धनबाद जैसे स्टेशन पर भी अगर भाग-दौड़ करनी पड़े तो नाराजगी तो स्वाभाविक है। ट्रेन की राह तक रहे सतीश कुमार वहां लगे डिस्प्ले बोर्ड की ओर उम्मीद भरी नजरों से निहारते रहे, लेकिन काफी इंतजार के बाद भी डिस्प्ले बोर्ड ने चूं तक नहीं की। न ट्रेन का पता बताया और और न ही प्लेटफार्म का। भड़के सतीश ने ट््वीट कर अपना गुस्सा निकाला। लिखा, धनबाद जैसे इतने बड़े स्टेशन की ऐसी व्यवस्था बेहद दुखदायी है। अब खुद अपनी पीठ थपथपा रही रेलवे को इसकी उम्मीद न थी, सो तुरंत खेद जताया। ट्वीट किया, उस प्लेटफार्म के अलावा बाकी सारे डिस्प्ले बोर्ड काम कर रहे हैं। धैर्य रखें, वहां भी जल्द ही समस्या दूर होगी।

रेलवे आपकी संपत्ति है...

रेलवे आपकी संपत्ति है...! लगता है रेल कर्मचारियों ने इस स्लोगन को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है। तभी तो ट्रेनों के सेकेंड एसी कोच में बेफिक्र सफर कर रहे हैं। किसी यात्री ने अगर टोक दिया तो झुंड बनाकर एसी की हवा खा रहे कर्मचारी उसकी फजीहत करने में भी वक्त नहीं लगाते। जबलपुर से हावड़ा जानेवाली शक्तिपुंज एक्सप्रेस में भी ऐसा ही हुआ है। आसमानी रंग की शर्ट पहने रेल कर्मचारियों का ग्रुप इस ट्रेन के सेकेंड एसी कोच में सवार हो गया। यात्रियों के विरोध के बाद भी इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा और उन्हें खिसका कर टिक गए। खैर, उस समय तो यात्रियों ने चुप्पी साध ली, लेकिन पूरे घटनाक्रम की शिकायत एक यात्री ने डीआरएम से कर दी। अब बात रेलवे की साख की है, सो भरोसा मिला कि न केवल कार्रवाई होगी, बल्कि इससे उन्हें अवगत भी कराएंगे।

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