कोयले की धरती पर सिसक रहे खेत-खलिहान
सिंचाई साधनों के कमी के कारण फसल एवं सब्जियों के उत्पादन में यहां के किसानों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
बलवंत कुमार, धनबाद: वैसे तो धनबाद देश की कोयला राजधानी से विख्यात है। इसके बावजूद भी यहां की एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर करती है। यही कारण है कि धनबाद कोयला क्षेत्र होने के बावजूद भी यहां कृषि, सिंचाई, मृदा संरक्षण, भूमि संरक्षण जैसे सरकारी विभाग कार्यरत हैं। यहां खेती को वैज्ञानिक गुर सिखाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र भी संचालित है। इतने विभागों के होने के बावजूद भी सिंचाई साधनों के कमी के कारण फसल एवं सब्जियों के उत्पादन में यहां के किसानों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। एक आंकड़े के मुताबिक धनबाद के किसानों को केवल दस फीसद ही सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध है। धनबाद जिले की कृषि को लेकर सरकार भी मानती है कि अपर्याप्त सिंचाई, छोटे खेत, प्रकृति पर निर्भरता, कम निवेश और कम उत्पादकता से यह क्षेत्र जूझ रहा है। अनियमित बारिश के कारण भगवान भरोसे खेती होती है। आजादी के बाद से कृषि को सुधारने के लिए अब तक अरबों रुपये खर्च किए गए, लेकिन इसके परिणाम आज भी सार्थक नहीं है। इसका मुख्य कारण विभागीय कार्य की केवल खानापूर्ति है। जिसका उदाहरण ग्रामीण क्षेत्रों में बने चेक डैम हैं। चेकडैम: जिले के ग्रामीणों क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली सभी जोरिया पर चेक डैम का निर्माण कार्य किया गया है। इसके बाद से विभाग इन चेक डैम की रखवाली नहीं करती। नतीजतन कोई भी चेक डैम कारगर नहीं है। इन चेक डैम के फाटक नहीं है, जहां चेक डैम बनाया गया है वहां पानी डैम के बाहर से बह जाता है। ऐसा लगता है मानो केवल विभागीय काम पूरा करने के लिए चेक डैम का निर्माण कार्य पूरा कर दिया गया। उदाहरण के तौर पर बलियापुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के ठीक सामने एक चेक डैम का निर्माण हुआ है। इस चेक डैम का फाटक नदारद है। ऐसे में इसकी कोई उपयोगिता सिद्ध नहीं होती। ड्रिप सिंचाई: कम पानी में सिंचाई का साधन उपलब्ध कराने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली है। कृषि विभाग का दावा है कि 50 हेक्टेयर खेती इस व्यवस्था के तहत सिंचित हो रही है। वहीं दूसरी ओर कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से 467 किसानों को ड्रिप सिंचाई के उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं और इससे 528 एकड़ भूमि की सिंचाई की जा रही है। ऐसे में धनबाद में कृषि भूमि की जो स्थिति है उसमें सिंचाई की यह व्यवस्था नाकाफी है। दम लगा रहे किसान: सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं रहने के बावजूद भी धनबाद में सब्जियों एवं फसलों की बुआई तथा उत्पादन हो रहा है। यह कार्य किसान अपने दम पर कर रहे हैं। जहां भी पानी की उपलब्धता है किसान उसका उपयोग कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि तोपचांची, टुंडी, बाघमारा, गोविंदपुर आदि प्रखंडों के किसान सब्जियों की खेती कर रहे हैं। सिंचाई की स्मार्ट तकनीक से जगी उम्मीद : ड्रिप और लिफ्ट सिंचाई प्रणाली से आगे चलकर अब वाट प्रणाली को धनबाद में लागू किया जा रहा है। वाटर ऑब्जरमेंट ट्रेंच यानी वाट प्रणाली एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से वर्षा जल संचयन एवं इसका भरपूर उपयोग किसान अपने कृषि कार्य के लिए कर सकते हैं। इसके लिए एक मीटर की गहराई और इससे थोड़ी कम चौड़ाई का ट्रेंच खेत की ढलान वाले छोर पर बनाया जाता है। ट्रेंच के बाद एक मेढ़ दी जाती है, ताकि ढल कर आने वाले वर्षा के पानी को यहां रोका जा सके। यह ट्रेंच प्रत्येक आधा मीटर की दूरी पर बनाया जाता है। प्रत्येक एक हेक्टेयर में 250 मीटर ट्रेंच काटी जानी है। पूरे जिले में पहले चरण में यह कार्य 500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किया जाना है। वर्षा के दौरान जो जल इन छोटे-छोट गढ्ढों में जमा होगा, उससे भूगर्भीय जल रिचार्ज होने के साथ ही इसमें उसका ठहराव भी होगा। इसी पानी का उपयोग या तो खेतों में सीधे तौर पर कर सकते हैं या इनकी मेढ़ों पर सब्जियों के उत्पादन के लिए। यह दोनों तरह से फायदेमंद है। अब तक जिले के पहाड़पुर, रामपुर, जोगी टोपा, जामबाद, धरमपुर, कालाटांड, विजयपुर और अंगुलाकट्टा में यह प्रणाली बनायी गई है। सिंचाई के लिए खेत के कोने में बनाए गढ्डे: सिंचाई के अन्य स्मार्ट तरीकों के बाद कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक आदर्श कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि किसानों को सिंचाई को लेकर अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। केवल चेक डैम अथवा वर्षा पर निर्भरता समाप्त करनी होगी। झारखंड के अधिकांश जोरिया बरसाती हैं। ऐसे में किसानों को अपने खेत के कोने में 20 बाई बीस फीट का गढ्ढा खोदना होगा। इसमें वर्षा का पानी का संचयन किया जा सके। जलवायु परिवर्तन का खेती पर पड़ रहा असर : झारखंड राज्य खराब सिंचाई प्रणाली से जूझ रहा है। जलवायु परिवर्तन और परेशानी बढ़ा रहा है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर झारखंड के अलावा अन्य राज्यों पर भी देखा जा रहा है। केंद्र सरकार ने माना है कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसा घटक है जो विशेष रूप से अधिक संवेदनशील वर्षा सिंचित क्षेत्रों में कृषि को प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पूरे विश्व पर है, लेकिन जो देश या राज्य सर्वाधिक कृषि और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं वे अधिक संवेदनशील हैं। यह हो रहा असर : पैदावार में कमी होने का मुख्य कारण फसल उत्पादन अवधि का कम होना, पुन: उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव और जल उपलब्धता में कमी है। झारखंड के गांव ऐसी ही स्थिति से जूझ रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र बलियापुर के वैज्ञानिक आदर्श श्रीवास्तव भी झारखंड की इस खराब सिंचाई प्रणाली से वाकिफ हैं। उनकी मानें तो जमीनी संरचना झारखंड की अलग तरह की है। ऐसे में यहां सुव्यवस्थित सिंचाई प्रणाली का होना संभव नहीं। इसके बाद जलवायु परिवर्तन के कारण यहां असमय वर्षा हो रही है। जितना वर्षा जल चाहिए उससे कम बारिश का होना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दिखाता है। राज्य में 2015 से सूखा की स्थिति देखने को मिली है। रबि और खरीफ फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा है। यह भी है उपाय : बदलते जलवायु को देखते हुए किसानों को भी खेती के तौर-तरीकों में बदलाव करने की सलाह लगातार कृषि विज्ञान केंद्र दे रहा है। वैज्ञानिक आदर्श कुमार श्रीवास्तव के अनुसार किसानों को कम पानी में खेती करने के गुर सिखाये जा रहे हैं। इसके अलावा ग्रीन हाउस, पॉली हाउस, मैट हाउस का उपयोग करने की भी सलाह दी गई है। बदलते मौसम के साथ किसानों को भी बदलने की आवश्यकता है। अम्लीय मिट्टी: कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार धनबाद जिले के विभिन्न प्रखंडों की मिट्टी की लगातार जांच की जा रही है। सभी जगहों पर मिट्टी में अम्लीय गुण पाए गए हैं। इस कारण भी यहां कृषि उत्पादन में कमी होना एक बड़ा कारण है। जोरिया का पानी बहाव जांचने की आवश्यकता: कृषि विज्ञान केंद्र बलियापुर के वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार ने बताया कि जोरिया अथवा छोटी नदियों पर चेक डैम बनाने से पहले कुछ तथ्यों को जांचना आवश्यक है। झारखंड की अधिकांश नदी और जोरिया बरसाती हैं। बरसात के दिनों में इनमें पानी रहता है और इसके बाद पानी की कमी देखी जाती है। ऐसे में जरुरी है कि कोई भी चेक डैम बनाने से पहले उस नदी अथवा जोरिया में पानी बहाव की स्थिति का आंकलन किया जाए। वैज्ञानिक उपायों पर किसानों का ध्यान नहीं: कृषि विज्ञान केंद्र प्रति वर्ष करीब 3500 किसानों को उन्नत खेती का प्रशिक्षण देती है। प्रशिक्षण के दौरान जो उपाए बताए जाते हैं उन पर किसान ध्यान नहीं देते और पारंपरिक तरीके से ही खेती करते हैं। इस कारण भी कृषि का उत्पादन नहीं बढ़ पाता है। एग्रीकल्चर इम्पिलीमेंट ब्यूरो की स्थापना जरूरी: डॉ. आदर्श कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि कृषि को लेकर जो भी प्रयास हो रहे हैं, उसे सार्थक करने के लिए जरुरी है कि एक ऐसी एजेंसी की स्थापना की जाए जो इन कार्यो की प्रगति और कार्यो पर निगरानी करे। यदि चेकडैम बने हैं तो यह कितने कारगर हैं। किसानों को जो उपकरण दिया गया है उसकी उपयोगिता सिद्ध हो रही या नहीं, जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है उसके अनुसार कार्य हो रहा या नहीं। इसके लिए एग्रीकल्चर इंप्लीमेंट ब्यूरो का होना जरूरी है। धनबाद में कृषि भूमि : - कृषि भूमि : 69323.24 हेक्टेयर - सिंचित भूमि : 18390 हेक्टेयर - बंजर भूमि : 11377.92 हेक्टेयर धनबाद की मुख्य फसलें : मक्का, धान और गेहूं दलहन खेती: 11500 हेक्टेयर (सामान्य) तिलहन खेती: 17000 हेक्टेयर (सामान्य) खरीफ खेती: 55540 हेक्टेयर रबी खेती: 21315 हेक्टेयर कृषि विभाग की योजनाएं : विशेष फसल योजना: 350 हेक्टेयर में मूंगफली की खेती परती भूमि विकास योजना: 4700 हेक्टयर परती भूमि पर खेती। प्रत्येक हेक्टेयर के लिए सरकार की ओर से किसान को 2400 रुपये दिया जाता है। किसान सिंगल विंडो सिस्टम: गोविंदपुर, बलियापुर और तोपचांची में संचालित। धनबाद, टुंडी, निरसा और बाघमारा में इस साल शुरु करने की योजना। बीज विनिमय: आत्मा के माध्यम से संचालित। डीसीआरएफ: धान कटाई के बाद खेती की नमी को देखते हुए 1051 हेक्टेयर में दलहनी फसल बुआई। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: 50 हेक्टेयर में ड्रिप सिंचाई प्रणाली। बीजीआरआइ: 50 फीसद अनुदान पर कृषि यंत्र देना। इसमें रोटावेटर, पंप सेट, स्प्रेयर, पैडी थ्रेसर आदि।