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Jharkhand Politics: यशवंत की ट्रेन पर कांग्रेस सवार, जाएगी दिल्ली या बन जाएगी लोकल; बेटे जयंत की भी चुप्पी

Jharkhand Politics 5 फरवरी 2015 का दिन। मौका हजारीबाग रेलवे स्टेशन उद्घाटन का। एक की मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा। प्रधानमंत्री कहते हैं यह ट्रेन मेरे मित्र यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) की देन है। यह उनका सपना था। कहते हैं हजारीबाग में रेल शुरू होने की जो खुशी उन्हें मिली वह सब पर भारी है।

By Vikash Singh Edited By: Sanjeev Kumar Updated: Thu, 16 May 2024 10:13 AM (IST)
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यशवंत सिन्हा की ट्रेन पर कांग्रेस सवार (जागरण)
 जागरण संवाददाता, हजारीबाग। Jharkhand Political News: 15 फरवरी 2015 का दिन। मौका हजारीबाग रेलवे स्टेशन उद्घाटन का। एक की मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा। प्रधानमंत्री कहते हैं यह ट्रेन मेरे मित्र यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) की देन है। यह उनका सपना था। कहते हैं हजारीबाग में रेल शुरू होने की जो खुशी उन्हें मिली वह सब पर भारी है।

प्रधानमंत्री के यह शब्द यह बताने लिए काफी थे कि सिन्हा का कद तब भी भाजपा में कितना बड़ा था। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में शामिल यशवंत सिन्हा के इर्द गिर्द ही हजारीबाग की राजनीति घूमती थी। 1998, 1999 और 2009 में हजारीबाग से सांसद रहे, तो राजनीति से दूर-दूर तक वास्ता नही रखने वाले अपने बेटे जयंत सिन्हा को 2014 में हजारीबाग से उतारा।

अब यशवंत सिन्हा की ट्रेन में कांग्रेस सवार

जयंत यहां 2014 व 2019 में भाजपा के टिकट पर भारी मतों से जीते। लेकिन, अब यशवंत सिन्हा (Yashwant) के इस ट्रेन में पर कांग्रेस सवार हो गई है। आइएनडीएआइ के नेता मानते हैं कि यशवंत की रणनीति और अनुभवों के बल पर पर दिल्ली तक सफर पूरा कर लेंगे। वही बेटे जयंत सिन्हा का टिकट कटने के बाद से वे रेस हैं। आइएनडीआइए के मुख्य रणनीतिकार बन गए हैं।

कांग्रेस प्रत्याशी जेपी पटेल को टिकट हासिल करने तक में उनकी भूमिका रही है। टिकट मिलने के पहले और टिकट मिलने के बाद जेपी पटेल डेमाटांड स्थित ऋषव वाटिका आवास पर जाकर उनका आशीर्वाद हासिल किया था। यह वही ऋषव वाटिका है जहां लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, वैंकया नायडू जैसे नेता पहुंचा करते थे। अब इसी वाटिका का स्वरूप बदल चुका है।

जहां से कमल खिलाने की बात होती थी वहां अब इसपर पंजा मारने की बात हो रही है। गठबंधन का मानना है कि उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अगड़े वोट बैंक को साध सकेंगे। साथ ही कांग्रेस कायस्थ समाज में जयंत सिन्हा की बेदाग छवि और टिकट कटने को मुद्दा बना रही है।

कांग्रेस के नेता मुन्ना सिंह उनके समर्थन में कहते हैं कि उनके कद का नेता यहां कोई नही है। वे हमारे अभिभावक हैं। उनके साथ होने से हम मजबूत हुए हैं। वही गठबंधन के प्रत्याशी जेपी पटेल वे देश का नेतृत्व कर चुके हैं। उनका आशीर्वाद से दिल्ली तक का सफर को पूरा करुंगा।  

जयंत का मौन पर दोनों और है चुपी, बेटे दिखे थे आइएनडीआइए के मंच पर

इस पूरे प्रकरण में वर्तमान सांसद जयंत सिन्हा बिल्कुल मौन धारण किए हैं। अब तक एक बार भी इस पर कोई टिप्पणी नही की है। टिकट कटने के बाद से भाजपा के मंच से गायब भी है। हमेशा इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय रहने वाले जयंत यहां भी मौन हैं। इनके मौन पर भी चुप्पी है। वही 13 मई को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की बरही में आयोजित सभा में जयंत के पुत्र और यशवंत सिन्हा के पौत्र आशीर सिन्हा का पहुंचना भी एक नया समीकरण गढ़ता दिखा है। हालांकि, आशीर भी अभी तक राजनीति से दूर रहे हैं।

जयंत सिन्हा के मीडिया प्रभारी ने द्वारा उनके किसी पार्टी में शामिल होने का खंडन जारी किया। लेकिन, इसपर भी जयंत की चुप्पी किसी और कहानी का बुनती दिख रही है। लोगों के बीच यह चर्चा है कि दादा के बाद पौत्र भी उसी राह पर हैं।  वही जयंत सिन्हा की मौन भाजपा भी अब तक मौन है। एक बार भी उनका सीधा हमला नही बोला गया है। 

यशवंत नही है कोई फैक्टर, राष्ट्रपति की उम्मीदवारी ने छोटा किया कद

भाजपा मानती है कि यशवंत सिन्हा यहां कोई फैक्टर नही हैं। यह भाजपा का गढ़ रहा है और चुनावी राजनीति में यशवंत सिन्हा का कद भाजपा में आकर बड़ा हुआ था।लेकिन लगातार मोदी विरोध ने उनके कद को छोटा किया है।

वहीं भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता केपी शर्मा बताते हैं 1984 में उन्होंने हजारीबाग से पहली बार जनता दल से लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें 10126 वोट आए थे। जबकि, इस चुनाव में प्रयोग करते भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार तारिक हुसैन को टिकट दिया था। तब तारिक को इनसे पांच गुना अधिक वोट मिले थे।

2004 में यशवंत सिन्हा की तूती बोलती थी फिर भी चुनाव हार गए। 

केपी शर्मा बताते हैं कि 2004 में जब इनकी तूती बोलती थी तब यह चुनाव हार गए थे। इनका राजनीति में कोई सिद्धांत नही रहा है। कभी जिले में चुनाव नही होने दिया। खुद हटे तो बेटे को टिकट दिलवाया। राज्यपाल होने के नाते द्रोपदी मुर्मू का झारखंड से भावनात्मक लगाव रहा था।

लेकिन, इन्होंने राष्ट्रपति की उम्मीदवारी नही छोड़ी। इससे यहां के लोग समझ गए कि झारखंड और हजारीबाग के लोगों से इनका लगाव नही है। वही हाल ही में प्रेस वार्ता कर लोकसभा प्रभारी शशि भूषण भगत और जिलाध्यक्ष विवेकानंद सिंह ने यशवंत सिन्हा पर जमकर हमला बोला था। बताया जिस पार्टी ने उनको सबकुछ दिया वह सिर्फ अपने हित के लिए भाजपा विरोधी हो गए। कहते हैं कि यशवंत सिन्हा के जिस ट्रेन पर कांग्रेस सवार हुई है वह लोकल है। हजारीबाग से कोई ट्रेन दिल्ली तक नही जाती है।

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