योगगुरु की तपोभूमि में शुरू हुआ महायज्ञ

मोहनपुर (देवघर) : विश्व योगगुरु ब्रह्मालीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की तपोभूमि रिखिया पीठ में

By Edited By: Publish:Mon, 24 Nov 2014 01:02 AM (IST) Updated:Mon, 24 Nov 2014 01:02 AM (IST)
योगगुरु की तपोभूमि में शुरू हुआ महायज्ञ

मोहनपुर (देवघर) : विश्व योगगुरु ब्रह्मालीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की तपोभूमि रिखिया पीठ में रविवार से पांच दिवसीय सीता कल्याणम् सह शतचंडी महायज्ञ शुरू हुआ। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती एवं स्वामी सत्यसंगानंद ने परमगुरु एवं माता भगवती के आह्वान के साथ ध्वजारोहण कर कार्यक्रम की शुरुआत की। बिहार योग विद्यालय के प्रथम सचिव केके गोयनका के पौत्र सप्तऋषि गोयनका ने अग्नि प्रज्जवलित की।

स्वामी निरंजनानंद एवं स्वामी सत्यसंगानंद ने गुरु पूजन कर शतचंडी एवं भगवान श्रीराम की प्रतिमा स्थापित की। कन्याओं ने मनमोहन नृत्य की प्रस्तुति की। देश-विदेश से आए अनुयायी चंडी देवी नमस्तुते, दुर्गा देवी नमस्तुते आदि कीर्तन पर देर तक झूमते रहे। हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती, सहस्रार्चन पाठ से आसपास का माहौल भक्तिमय बना रहा।

इस अवसर पर माधोपुर, लोढि़या, पहरीडीह, रुद्रपुर, अमरवा, नवाडीह गांव के हजारों लोगों के बीच घरेलू उपयोग की वस्तुएं प्रसाद के रूप में वितरित की गई। बिहजोरी निवासी मुंशी यादव, विजय यादव व नया चितकाठ निवासी अशोक पंडित को ठेला, रुद्रपुर के विपिन रमानी, लोढि़या के रंजू तुरी, नया चितकाठ के भुटका मंडल को रिक्शा दी गई। वहीं अगिया निवासी महंगी महतो को गाय दी गयी।

रिखिया पीठ में नए अध्याय की शुरुआत : स्वामी निरंजनानंद

यज्ञ के दौरान स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि रिखिया पीठ की रजत जयंती वर्ष है। स्वामी सत्यानंद जी 25 साल पहले यहां आए थे। उस समय पीठ अबोध अवस्था में था। रिखिया पीठ का अब एक नया अध्याय शुरू हो गया है। कोई बालक युवा होने के बाद अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तेजी से अग्रसर होता है। उसी तरह रिखिया अब अपने उद्देश्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर है। परम गुरु खुद दीपक की तरह जलकर दूसरों को अंधकार से मुक्ति देते रहे। उनके आदेश पर ही यहां धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। स्वामीजी का उद्देश्य था कि यहां के लोग ऐसे आयोजनों में भाग लेकर अपना जीवन निर्मल बनाएं। ईश्वर की विशेष अनुकंपा से ही यहां हजारों लोग आते हैं। यहां आने के पहले अपने भीतर के छल, प्रपंच को उतार दें, तभी कुछ लाभ मिल सकेगा। बताया कि काला कपड़ा पहनना सन्यासी की पहचान है। जब 1994 में परमगुरु ने यह यज्ञ शुरू किया था तो वे काले वस्त्र धारण किए हुए थे। इसलिए उनके आदेश पर काला वस्त्र धारण किया जा रहा है।

सुख, समृद्धि, शांति दिलाना मुख्य उद्देश्य : स्वामी सत्यसंगानंद

स्वामी सत्यसंगानंद ने कहा कि यह यज्ञ ऐतिहासिक, पौराणिक, दैविक, तांत्रिक व आधुनिकता का अनूठा संगम है। परमहंसजी का सपना था कि यहां रहकर दूसरों का उत्थान करें। वे हमेशा दूसरों के लिए चिंतित रहते थे। जो दूसरों के बारे में चिंता करे उसे ईश्वर की प्राप्ति होती है। वे सभी की मदद के साथ ही उनलोगों को एक-दूसरे से जोड़ते थे। एकता ही शांति का दूसरा रूप है। रिखिया पीठ में सेवा, प्रेम, दान का आत्मभाव उत्पन्न होता है। रिखिया पीठ में आयोजित यज्ञ एक आंदोलन भी है। इसका मूल मकसद लोगों को सुख, समृद्धि, शांति दिलाना है।

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