पहिए चार हौंसले अपार

चार पहिए और हजारों किलोमीटर का सफर, ऊबड़-खाबड़ रास्ते और खुद की जमीन तलाश लेने का हुनर। बर्फ, पहाड़, नदी-नाले, शार्प टर्न और मीलों दूर तक की रेत, कुछ नहीं रोक सकता है इन्हें अपने मिशन में कामयाब होने से। बस घुमानी है चाबी, देनी है रेस और उड़ जाना

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 16 Jan 2016 11:04 AM (IST) Updated:Sat, 16 Jan 2016 11:09 AM (IST)
पहिए चार हौंसले अपार

चार पहिए और हजारों किलोमीटर का सफर, ऊबड़-खाबड़ रास्ते और खुद की जमीन तलाश लेने का हुनर। बर्फ, पहाड़, नदी-नाले, शार्प टर्न और मीलों दूर तक की रेत, कुछ नहीं रोक सकता है इन्हें अपने मिशन में कामयाब होने से। बस घुमानी है चाबी, देनी है रेस और उड़ जाना है हवा से बातें करने के लिए। कार रेसिंग का यह पैशन ही तो इन्हें देता है डर को जीतने का हौसला और हुनर...

सारिका को डराती नहीं दीवार से कार की सीधी टक्कर, वनिता ने सीख लिया है पहाड़ और खाई के बीच की पतली सड़कों पर फर्राटे से कार दौड़ाने का गुर, बानी के सामने मात खा जाते हैं पुरुष ड्राइवर्स भी, पारुल को कार ड्राइव करने का एक्साइटमेंट इतना होता है कि डर आसपास भी नहीं फटकता और मीनाक्षी तो अपनी जैसी लड़कियों के लिए मिसाल कायम करने का सोचती हैं। इन महिला कार रैली ड्राइवर्स की हिम्मत की जितनी तारीफ की जाए कम है। ये जानती हैं कि खतरनाक है यह खेल। जिंदगी लगी होती है दांव पर, लेकिन पैशन ऐसा कि हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहती हैं। घर-परिवार, काम और पैशन, हर फ्रंट पर इन्हें जीत हासिल है।

सीधी टक्कर

'एक बार फॉर्मूला वन ट्रैक पर मेरी कार 190 की स्पीड में सीधे दीवार से टकरा गई। मेरे ब्रेक फेल हो गए थे। एयर बैग्स खुल गए थे। चोटें लगी थीं, लेकिन मैं यह कभी नहीं सोचती कि एक्सीडेंट हो गया तो अब मैं नहीं जाऊंगी। ब्रेक फेल हो गए तो मैं क्या कर सकती हूं। प्रैक्टिस के दौरान फॉर्मूला वन ट्रैक पर हम चौदह बार चक्कर लगाते हैं। दसवें चक्कर में मेरे ब्रेक फेल हो गए। इतना इंपैक्ट था कार का कि मैंने तीन सेफ्टी बैरियर्स तोड़े। गाड़ी टर्न नहीं हुई और सीधी दीवार में चली गई।Ó डर को दूर से भगाती कार रेसर सारिका सहरावत पिछले तेरह साल से कार रैलीज में जा रही हैं। एक बार गाड़ी के जल जाने पर भी वह बाल-बाल बचीं, लेकिन उनका पैशन अपनी जगह से जरा भी नहीं हिला। वह कहती हैं, 'जब मेरी गाड़ी जली थी और मैं बाल-बाल बची थी तो घरवालों ने बोला कि तुम अब यह छोड़ दो, लेकिन मैंने कहा मैं अपने पैशन को फॉलो कर रही हूं। इसे नहीं छोड़ सकती। जब तक मैं फिजीकली, फाइनेंशियली और मेंटली कैपेबल हूं तब तक करूंगी।Ó

हार्ड हैं हम, हार्ड है वर्क

हिमालयन, डेजर्ट स्टॉर्म और इंडियन रैली में विनर रह चुकी बानी यादव कहती हैं, 'हम पुरुषों के बराबर हार्डवर्क कर सकते हैं। पुरुषों के साथ ओवरऑल कैटेगरी में भी मेरी रैंकिंग चलती है।Ó कार रेसिंग का पैशन बचपन से रहा है बानी को। इसी तरह से उबड़-खाबड़ रास्तों पर कार चलाने का जज्बा रखती हैं चंडीगढ़ की वनिता कंग। उन्होंने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर अपने पैशन को प्रोफेशन बना लिया है। वह कहती हैं, 'ड्राइव के शौकीन परिवारों को अपने साथ एक्सपेडीशन पर लेकर जाती हूं मैं। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो लेह-लद्दाख या स्पीति जैसी जगहों पर अकेले जाने में डरते हैं। स्नो-ड्राइव पर भी ले जाती हूं। उन्हें बताती हूं कि बर्फ पर गाड़ी कैसे चलानी है। कार रैली मेरा पैशन है और 'गोबाउंडलेसÓ मेरा स्टार्टअप।Ó

मैनेजमेंट और चैरिटी

'मैं पहले यूएस में थी। वहां भी ऑफ रोडिंग करती थी। यहां सेटल होने के बाद मैंने कार रैलीज में जाना शुरू कर दिया। हाल ही में हिमालयन कार रैली में गई थी। बच्चों व ऑफिस के बीच रैली के लिए टाइम निकालना एक चुनौती है।Ó कहती हैं यूएस बेस्ड कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर काम कर रहीं पारुल एरेन। वह अपने पैशन, काम और बच्चों को सही से मैनेज करती हैं। गुजरात की मीनाक्षी को अनुरूप माहौल नहीं मिला फिर भी क्रेज बरकरार है। वह कहती हैं, 'मैं दसवीं पास हूं। आगे पढ़ नहीं पाई और इंग्लिश भी कम आती है, लेकिन दुनिया में कहीं भी जा सकती हूं। मैं रैली करती हूं तो मेरे पापा मेरे अगेंस्ट रहते हैं। मेरे घर में कोई ऑल द बेस्ट या बधाई नहीं बोलता, लेकिन मैं अपनी जिद में करती हूं। यह मेरा टैलेंट है तो मैं इसे क्यों मारूं। हां, पति सपोर्ट करते हैं। मना नहीं करते। वह कहते हैं कि अच्छा लगता है तो करो। जब मैं जीतती हूं तो ऐसा लगता है कि गुजरात को एक लेवल तक लेकर जा रही हूं।Ó मीनाक्षी एक सरकारी एनजीओ 'गाांधीघर कछौलीÓ की बच्चियों के लिए कुछ करना चाहती है। वह अपना पैसा, वक्त और अपनी सोच उन्हें दे रही हैं जिन्हें इसकी जरूरत है। उन्हें बेसहारा लड़कियों का सहारा बनना है।

पैशन, फैमिली साथ-साथ

एडवेंचर का शौक रखने वाली और चार पहियों पर हजारों मील का सफर तय करने का पैशन रखने वाली ये महिलाएं अपने परिवार को भी साथ लेकर चली हैं। सारिका सहरावत अपने पति व ग्रुप के साथ फॉर्मूला वन ट्रैक पर जाती हैं और कार रैली की प्रैक्टिस करती हैं। दोनों के शौक एक से हैं। बानी यादव कहती हैं, 'हस्बैंड बहुत सपोर्टिव हैं। उनके मोटिवेशन से ही मैंने यह स्पोर्ट शुरू किया। वह जानते हैं कि मुझे ड्राइविंग का कितना पैशन है। अब तो बच्चे भी रैलीज में हैं। मेरे दोनों बेटे और हस्बेंड भी ट्रैक इवेंट करते हैं। पूरी फैमिली मोटर स्पोट्र्स में है।Ó वनिता कंग को लगता है कि शादी के पहले का पैशन उनकी शादी के बाद और मजबूत हुआ है। पति कॉरपोरेट में हैं, लेकिन काफी सपोर्टिव हैं। कई बार वह बीस-बाइस लोगों के साथ अकेली ट्रैवल करती हैं। उनका चौदह साल का बेटा है। जब उसकी छुट्टियां होती है तो वे उसे अपने साथ ले जाती हैं। उनके बेटे को लगता है कि जो चीज लड़के नहीं कर पाएंगे वह मम्मी कर लेंगी। उसे गर्व महसूस होता है कि मेरी मॉम कुछ अलग कर रही हैं। पारुल एरेन की दो बेटियां हैं। एक बारह साल की और एक तेरह साल की।

बदल दूंगी माइंडसेट

मीनाक्षी पुरोहित, कार रेसर

मैं गुजरात की पहली कार रैली ड्राइवर और इंडिया की सबसे छोटी ड्राइवर हूं, जो ऑफ रोड इवेंंट्स में जाती है। मैं पूरे देश में अकेले ही जाती हूं। मुझे वो चीजें करने में अच्छी लगती है जिससे लोगों की मानसिकता बदलती है कि लड़की है क्या कर पाएगी? मेरे रैली में जाने से लड़कियों को इंस्पिरेशन मिलती है कि हम भी कर सकते हैं। आज की लड़की को झांसी की रानी की तरह जीना चाहिए। हिम्मत से वही करना चाहिए, जो उनको ठीक लगता है। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि गुजरात की लड़कियों को सिर्फ गरबा खेलना आता है। मैं इस सोच को बदलने की कोशिश कर रही हूं। मैं गुजरात में कार रैली का एक बड़ा इवेंट कराना चाहती हूं।

जब जान बची मुश्किल से

सारिका सहरावत वोहरा, कार रेसर

मैं डेजर्ट कार रैली में गई थी तो मेरी पूरी कार जल गई। रेत के टीलों पर बड़ी झाडिय़ों में मेरी कार फंस गई। कार नीचे इतनी गर्म हो गई कि उसने आग पकड़ ली। हम बहुत मुश्किल से निकल पाए। हमारी सिक्स प्वाइंटर सीट बेल्ट होती है, जो छह जगह से बंधी होती है। झाडिय़ां इतनी ऊंची थीं कि मैं कार निकाल नहीं पाई। पहले भी एक्सीडेंट हुए हैं। टांके भी लगते रहते हैं, लेकिन उन पर कभी गौर नहीं किया। डेजर्ट रैली को हम सेफ मानते हैं, क्योंकि कार पलटने पर भी रेत के कारण ज्यादा चोट नहीं लगती। आग लगना तो अलग बात है। आग बुझाने की हर कोशिश की गई, लेकिन वह बुझ नहीं पाई। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि डर कर मैं कार रैली में जाना छोड़ दूं।

करना है तो बस करना है

वनीता कंग, कार रेसर

कई बार हम बहुत ज्यादा ऊंचाई पर गाड़ी चला रहे होते हैं। सड़कें इतनी पतली होती हैं कि केवल एक गाड़ी जा सकती है। एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी खाई होती है। जरा सी गलती खाई में ले जा सकती है। कई बार खराब मौसम भी चुनौती होता है। हिमाचल में रोहतांग से काफी आगे करीब 16000 फीट की ऊंचाई पर एक जगह सरचू आती है जहां मैं माइनस बीस डिग्री तापमान पर टेंट में रुकी हूं। ऐसे में शरीर को सही रखना भी एक चैलेंज है। एक बार रास्ते में बर्फ पडऩा शुरू हो गई थी और हमने बर्फ में ही अपना रास्ता पूरा किया। जब आप मोटर स्पोट्र्स जैसे पैशन को लेकर आगे बढ़ रहे हैं तो यह जानते हैं कि कभी भी कुछ भी हो सकता है। मेरा फंडा है कि करना है तो बस करना है।

रैली के मूड में डर फीका

पारुल एरेन, कार रेसर

मैं रैलीज में जाती हूं सिर्फ अनुभव लेने के लिए। अगर जीत जाऊं तो बहुत अच्छा, नहीं तो एक्सपीरिंयस याद रहता है। मेरे ऊपर जीतने का कोई प्रेशर नहीं रहता। पिछली हिमालयन कार रैली के छठे दिन मेरी गाड़ी का टायर निकल गया था। सौभाग्य से हम पहाड़ी पर या शार्प टर्न पर नहीं थे। जब रैली के मूड में होती हूं तब अलग ही माइंडसेट होता है। मुझे रैली खत्म करने का ज्यादा एक्साइटमेंट होता है, क्योंकि किसी भी टफ रैली में आधी से ज्यादा गाडिय़ां तो रैली पूरी ही नहीं कर पातीं। अगर ट्रॉफी मिल जाए तो सोने पर सुहागा। मेरे पास स्कार्पियो और मोडिफाइड जिप्सी है।

पैशनेट हैं ड्राइविंग के

बानी यादव, कार रेसर

पिछले साल जब दक्षिण डेयर रैली में गई थी तो एक जगह पहाड़ से नीचे उतरते हुए टर्न पर गाड़ी पलट गई। हालांकि इस तरह के हादसों के लिए हम मानसिक रूप से तैयार होते हैं। डर को दिमाग में नहीं रखते। अगर डर आ गया तो ड्राइव नहीं कर सकते। भले ही हमें एक ट्रॉफी मिले, लेकिन उस ट्राफी के लिए ही तो हम लड़े हैं। जीतने का अहसास हर चीज से ऊपर है। जब मुझे पोडियम पर मेल काउंटरपाट्र्स के साथ ट्रॉफी मिलती है तो उपलब्धि का अहसास होता है। इस बार रेड-डे-हिमालयन कार रैली खत्म होने को थी कि दुर्भाग्य से मेरी गाड़ी का रेडिएटर टूट गया। मैं रैली कंपलीट नहीं कर पाई। इतने प्रयास और तनाव के बावजूद इस तरह असफल हो जाने पर निराशा तो होती है, लेकिन निराशा को ज्यादा देर तक अपने पास रुकने नहीं देती।

यशा माथुर

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