पुत्रीवती भव

जिस देश में पुत्रवती भव का आशीर्वाद दिया जाता रहा है और जिसमें पुत्रियों को दूसरे दर्जे पर रखा जाता है, उस देश में अब पुत्रियां ही आगे बढ़कर देश और परिवार का नाम रोशन कर रही हैं।

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 01 Oct 2016 10:27 AM (IST) Updated:Sat, 01 Oct 2016 10:49 AM (IST)
पुत्रीवती भव

मातृशक्ति हैं मां दुर्गे। दुष्टों का नाश करने वाली हैं। बेटियों की शक्ति और हिम्मत का प्रतीक है देवी का स्वरूप। जिस देश में पुत्रवती भव का आशीर्वाद दिया जाता रहा है और जिसमें पुत्रियों को दूसरे दर्जे पर रखा जाता है, उस देश में अब पुत्रियां ही आगे बढ़कर देश और परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। बिना किसी पृष्ठभूमि के अपने भीतर की शक्ति को पहचानते हुए रास्ते में आने वाली असुर रूपी हर रुकावट का सर्वनाश करके जीत की राह पर लगातार आगे बढ़ रही हैं। इन स्वयंशक्ति महिलाओं ने गर्व कराते हुए साबित कर दिया है कि आज का आशीर्वाद पुत्रवती भव की बजाय होना चाहिए पुत्रीवती भव...

मैं जब दिल्ली आई थी तो बिल्कुल खाली हाथ थी। मेरे भाई के जन्म के सात दिन बाद ही मेरी मां की मृत्यु हो गई थी। तब मैं कक्षा चार में थी। हम भाई-बहनों को पापा ने अलग-अलग रिश्तेदारों के पास भेज दिया। मुझे अपनी बुआ के घर सिलीगुड़ी भेजा गया। वहां मुझे प्यार मिल रहा था, लेकिन मुझे लगता कि मैं उन पर बोझ हूं। मैं अकेली पेन और कागज लेकर घूमती और लिखती कि मेरी जिंदगी इतनी अकेली क्यों है? खुद को खत्म कर लेना कुछ सेकंड का काम था, लेकिन मैंने जिंदगी को एक मौका देने का फैसला किया। जब अपनी कहानी बताती हैं एंटरप्रेन्योर वर्तिका द्विवेदी तो उनकी आवाज दिल को गहरे तक छू जाती है। कहीं कोई सपोर्ट नहीं, लेकिन कुछ कर दिखाने, जिंदगी को खुद के हिसाब से जीने का फैसला किया वर्तिका ने। अपने भीतर की शक्ति को समेटा और निकल पड़ीं मंजिल की ओर।

थी चुनौतियों की फेहरिस्त

अब वर्तिका के सामने तीन लक्ष्य थे। पहला, अपने भाई-बहनों को सहारा देना। दूसरा, खराब से अच्छी छात्रा बनना और तीसरा, बिजनेस करने के अपने सपने के पीछे दौडऩा, जबकि उनके पास पैसे बिल्कुल भी नहीं थे। कहती हैं वर्तिका, जब मैंने दसवीं की परीक्षा दी तो तय कर लिया कि मुझे बाहर जाना होगा और अपने मन का करना होगा। मैंने बुआ के गैरेज में पढ़ाई की। दसवीं में तीसरे नंबर पर आई। मेरे पापा ने मेरी बहन को भी एक रिश्तेदार के यहां सिलीगुड़ी भेजा तो हमने मिलकर चार जगहों में से दिल्ली आना तय किया। कक्षा दस के बाद हम दिल्ली आ गए। वर्तिका के सामने अब चुनौतियों की फेहरिस्त थी। कहां जाएं? क्या करें? बताती हैं, एक संबंधी के संस्थान में मैंने कंप्यूटर और एनिमेशन सीखा। मैं आश्रम चौक पर बस स्टॉप पर ब्रेड पकौड़ा खा रही थी, उसके कागज में ही मैंने रहने की जगह ढूंढ़ी। मेरे पास खाने भर के पैसे थे। किसी तरह से एक विज्ञापन एजेंसी के लिए काम करना शुरू किया, जो काफी पसंद किया गया। फिर मैंने अपना काम शुरू किया और आज मैं इंटीरियर और आर्किटेक्ट के क्षेत्र में एक सफल एंटरप्रेन्योर हूं।

खड़ा होना है खुद के दम पर

महिलाएं अगर कुछ भी अलग करना चाहेंगी तो उन्हें खुद के दम पर ही खड़ा होना होगा। मुझे अपनी जिंदगी में जो भी चुनौती महसूस हुई, उसे मैंने करके दिखाया। अगर कोई मुझे कह दे कि मैं ऐसा नहीं कर सकती तो मैं उसे करके ही दिखाऊंगी। कोई कह दे कि यह असंभव है तो वह मेरे लिए प्रेरणा बन जाता है और उसे मैं संभव करके ही मानती हूं। आर्किटेक्ट व इंटीरियर डिजाइनर कृपा जुबिन को लगता है कि चुनौतियां कहां नहीं हैं। खुद के दम पर खड़ा होना होता है महिलाओं को। वह कहती हैं, आर्किटेक्ट होने के लिए क्वालिफाइड होना, तकनीकी रूप से मजबूत होना जरूरी है।

समंदर पार से आई

फिल्म अभिनेत्री और जानी-मानी क्रिकेट एंकर पल्लवी शारदा का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है। माता-पिता प्रोफेसर हैं, लेकिन उन्हें पता था कि उन्हें एक्टर बनना है। दूसरे देश ऑस्ट्रेलिया से भारत में आकर अपने दम पर संघर्ष करना और अपने सपनों को हकीकत में बदल देना स्वयं-शक्ति का ही तो परिणाम है। पल्लवी कहती हैं, मुझे बचपन से पता था कि मुझे एक दिन एक्टर बनना है और मुंबई जाना है। अकेली रही मुंबई में। मेरे लिए बहुत मुश्किल रहा यह सब। अकेलापन ही मेरा संघर्ष रहा। मम्मी-पापा प्रोफेसर हैं। उनको तो पता भी नहीं था कि मैं भारत क्या करने जा रही हूं। वे समझते थे कि मैं जेएनयू में मास्टर्स कर रही हूं। अगर मैं उनको यह बताती कि मैं इतनी कम उम्र में अकेले रहूंगी मुंबई में तो वे परेशान हो जाते इसलिए बहुत तरकीब से मुझे अपने पैशन को फॉलो करना पड़ा। उनको पता है कि दिल और दिमाग से मैं जो भी चीज करूंगी, उसमें सफलता हासिल करूंगी। बड़ी फिल्म करना और बड़े स्टार के साथ काम करना वे बड़ी बात समझते हैं। हालांकि अब उन्हें कोई फिक्र नहीं है। वे कहते हैं काम करो।

जिद ज्योति की

हरियाणा की कबड्डी खिलाड़ी ज्योति कहती हैं, एक बार अपने गांव में छोटे-से टूर्नामेंट में लड़कियों को कबड्डी खेलते देखा तो मैंने भी घर पर कहा कि मुझे भी कबड्डी खेलनी है। इस पर घरवालों ने कहा ये शहर की लड़कियां हैं। गांव की लड़कियां ऐसे नहीं खेलतीं, पर मैंने कहा कि मुझे तो खेलना है। हम दो-तीन लड़कियों ने खुद ही खेलना शुरू कर दिया। फिर हमारे गांव के लड़कों की टीम के कोच ने कहा कि मैं तुम्हें सिखाऊंगा। शुरू में हम कम थे, लेकिन बाद में बीस के करीब लड़कियां हो गईं। घर वाले मना करते तो बहुत रोती। फिर कोच आकर घर वालों को मनाते-समझाते और मैं खेलने जाती। जब धीरे-धीरे हम मेडल जीतने लगे और मेरी जॉब लग गई तो घर वाले खूब खुश हैं। मैं घर पर पैसे देती हूं तो बहुत अच्छा लगता है। अब गांव की बहुत सी लड़कियों ने खेलना शुरू कर दिया है। ज्योति ने अपनी जिद पर अपना मुकाम हासिल किया। आज वे प्रो-कबड्डी टूर्नामेंट के साथ कई सीनियर नेशनल टूर्नामेंट खेल चुकी हैं और इंडिया कैम्प भी किया है।

अभावों के बावजूद कर दिखाया

मैरीकॉम, बॉक्सर

लाइफ में चैलेंज जरूर रखना चाहिए। इसे पूरा करने के लिए संघर्ष और कड़ी मेहनत करना जरूरी है। मैं मणिपुर के एक छोटे से गांव कंगाथी में एक भूमिहीन परिवार में पैदा हुई। एक बार स्कूल की एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए इंफाल गई और वहां मणिपुर के चैंपियन बॉक्सर डिंको सिंह का नाम सुना तो बॉक्सिंग को ही सपना बना बैठी। कोच से अपने दिल की बात बताई। एक साल कोचिंग ली और अगले साल ही बॉक्सिंग की नेशनल चैंपियन बन गई। बड़े शहर में घबराई जरूर, लेकिन लक्ष्य से पीछे नहीं हटी। इतने अभावों के बाद जब मैं कर सकी हूं तो कोई भी कर सकता है।

साथ नहीं था कोई

प्रियंका चोपड़ा, अभिनेत्री

जब मैं इंडस्ट्री में आई तो मुझे सही दिशा दिखाने वाला कोई नहीं था। मिस वल्र्ड जीतने के बाद भी काफी मेहनत करनी पड़ी। आज मुझे खुद के संघर्ष पर गर्व है।

अनुभव से सीखा

अनुष्का शर्मा, अभिनेत्री

दुनिया में चीजें बदल रही हैं। मैंने अपने दम पर पहचान बनाई है और इस पर मुझे गर्व है। फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं हूं। फिल्मों को लेकर जो भी नॉलेज है उसे अनुभव से सीखा है।

रियाद से आई मुंबई

अंजुम फकीह, मॉडल व अभिनेत्री

मैं सऊदी अरब से हूं। पिछले कई साल से भारत में मॉडलिंग कर रही हूं। टीवी में भी ब्रेक मिला। मैंने भारत, दुबई, श्रीलंका, इटली जैसे कई देशों में मॉडलिंग की है। 2011 में सुपरमॉडल की प्रतियोगिता में भाग लेने रियाद से दिल्ली आई थी। टॉप थ्री में रही। मॉडलिंग, एक्टिंग के लिए घर छोड़ा तो जाना खुद के पैरों पर खड़ा होना सरल नहीं है। मुंबई आकर मैंने बहुत कुछ सीखा। जब आप खुद से सीखते हैं तो कहीं न कहीं अपने आप से भी रूबरू होते हैं।

काम तलाशने की कोशिश करते-करते मैंने खुद को ढूंढऩे की कोशिश भी की है, लेकिन यह सब मुझे अच्छा लगता है। इससे पॉजिटिविटी मिलती है। जितना अच्छा आप सोचते हैं, उतना ही अच्छा होता है।

यशा माथुर

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