world alzheimer day 2019: अल्जाइमर के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर भारत, युवा भी इसकी चपेट में

world alzheimer day 2019 विश्व में अल्जाइमर रोग के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है अधिकतर बुजुर्ग लोगों को ये बीमारी लग जाती है लेकिन हिमाचल में युवाओं में भी इसके लक्षण देखें जा

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 21 Sep 2019 08:58 AM (IST) Updated:Sat, 21 Sep 2019 08:58 AM (IST)
world alzheimer day 2019: अल्जाइमर के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर भारत, युवा भी इसकी चपेट में
world alzheimer day 2019: अल्जाइमर के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर भारत, युवा भी इसकी चपेट में

शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। world alzheimer day 2019 अगर कोई बार-बार भूल जाए तो लोग कहते हैं कि तुम सठिया गए हो...। यह बात बेशक मजाक में कही जाती हो लेकिन देवभूमि में यह हकीकत में सामने आ रही है। प्रदेश के अस्पतालों में आने वाले रोगियों में तीस साल की आयु के भी कई युवाओं को भूलने की बीमारी लग गई है। जबकि साठ साल की उम्र के बाद 65 फीसदी लोग सठिया रहे हैं यानी उन्हें भूलने की बीमारी लग गई है। युवाओं में भूलने की बीमारी के पीछे नशे का बढ़ता प्रचलन, जीवनशैली और तनाव बताया जा रहा है।

कभी 70 से 75 साल की आयु में होने वाली भूलने की बीमारी यानी अल्जाइमर रोग अब साठ वर्ष की आयु में देखने में आ रहा है। जो लोग दिमाग का कम इस्तेमाल करते हैं उन्हें अल्जाइमर यानि डिमेंशिया रोग होता है हालांकि यह वंशानुगत रोग भी है लेकिन दिमाग में लगने वाली चोट भी इसके प्रमुख कारणों में से एक है। अल्जाइमर रोग के मामले में विश्व में चीन पहले और भारत दूसरे स्थान पर है।

अल्जाइमर का पता चलने पर ही नियमित जांच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है। अभी तक इसका कोई स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं है। इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना और इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति शामिल है। 

रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सिर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है।  

भूलने की बीमारी के संकेत

छोटी और बड़ी बातें याद न रहना। सामान्य कामकाज में कठिनाई। समय और स्थान में असमन्वय। चीजों को गलत स्थान पर रखना। स्वभाव में बदलाव। बहुत अधिक नींद आना।

आखिर कैसे होता है अल्जाइमर रोग

जैसे-जैसे उम्र ढलती है व्यक्ति के सोचने और याद करने की क्षमता भी कमजोर होती है। यह इस बात का संकेत है कि हमारे दिमाग की कोशिकाएं मर रही हैं। दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं होती हैं। हर कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक नेटवर्क बनाती हैं और इस नेटवर्क का काम विशेष होता है। कुछ सोचती हैं, सीखती हैं और याद रखती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं। जब यह कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं तब हमें भूलने की बीमारी लग जाती है। 

जो लोग दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उन्हें भूलने का रोग नहीं होता है। वृद्धों की उपेक्षा, मानसिक तनाव, विटामिन बी की कमी और अनुवांशिकता आदि इसके प्रमुख कारण हैं। दिमाग जब सिकुड़ जाता है तो यह स्थिति पैदा होती है। बेहतर आहार और व्यायाम सहित दिमाग के ज्यादा इस्तेमाल से इस रोग सेबचा जा सकता है। 

-डॉ. सुधीर शर्मा, न्यूरोलॉजी विभाग, आइजीएमसी शिमला

भूलने की बीमारी साठ वर्ष की बाद की आयु के 65 फीसदी लोगों में देखी जा रही है। दिमाग का कम उपयोग करने, अनुवांशिकता और दिमागी चोट के कारण यह बीमारी होती है। समय-समय पर चिकित्सकों से जांच अवश्य करवाते रहना चाहिए।

-डॉ. रवि शर्मा मनोरोग विशेषज्ञ व निदेशक चिकित्सा शिक्षा

मल्टिपल डिजीज भी एक बड़ा कारण

अल्जाइमर के कई कारण होते हैं। इसमें सबसे बड़ा रिस्क ऐसे लोगों को होता है जिन्हें पहले से ही डायबिटीज, हाइपरटेंशन, थायराइड और किसी भी तरह की क्रॉनिक डिजीज हो। इसके अलावा अव्यवस्थित जीवनशैली जैसे शराब, सिगरेट, समय से खाना न खाना, तनाव, परिवार में किसी की अल्जाइमर होने की हिस्ट्री। इसके अलावा पोषण संबंधित फैक्टर जैसे विटामिन बी की कमी, अकेलापन, मानसिक रूप से किसी बीमारी से ग्रसित होना।

सोशल सपोर्ट है जरूरी

इस बीमारी की तीन स्टेज होती है। पहली स्टेज यानि एमसीआइ (माइल्ड कांग्नीटिव इम्पेयरमेंट), इसमें हल्की-फुल्की भूलने की समस्या होती है। इसमें व्यायाम, योग और कुछ दवाएं दी जाती हैं। दूसरी स्टेज यानि माइल्ड डिमेंशिया। इसमें एक्सरसाइज के साथ लोगों को क्रिएटिविटी सिखाई जाती है। तीसरी स्टेज यानि मॉडरेट डिमेंशिया जिसमें दवा के साथ, पोषण और परिवार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वहीं चौथी और सीवियर स्टेज, इसमें मरीज पूरी तरह से नर्सिंग केयर पर निर्भर हो जाता है। उसे नहलाने से लेकर, सारे कामों के लिए निर्भर होना पड़ता है।

क्रिएटिविटी और नॉन फार्मेकोलॉजी कल मैनेजमेंट जरूरी

अल्जाइमर से पीडि़त लोगों के लिए केजीएमयू के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में नॉन फॉर्मेकोलॉजिकल मैनेजमेंट सिखाया जाता है। साथ ही ऑक्यूपेशनल थेरेपी भी सिखाई जाती है। इसमें जो व्यक्ति जिस प्रोफेशन से जुड़ा है उसे वो चीजें सिखाई जाती हैं। जैसे घरेलू और गांव की महिलाओं को सब्जी काटने, गेंहू बीनने आदि काम। वहीं सबसे ज्यादा जरूरी है कि बुढ़ापे में भी दिमाग से संबंधित काम करने चाहिए। जैसे पजल गेम्स, कम्प्यूटर वर्क, बच्चों की गणित के सवालों को सुलझाने में मदद करना आदि। जितना ज्यादा मस्तिष्क एक्टिव होगा उतना सेहतमंद होगा।

इससे रहें दूर

अगर अल्जाइमर रोग हो तो तिल, सूखे टमाटर, कद्दू, मक्खन, चीज, फ्राइड फूड, जंकफूड, रेड मीट, पेस्टीज और मीठे का सेवन न करें।

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