देश में अब सस्ती होगी ब्रॉडबैंड सुविधा
देश के लोगों को अब कम लागत पर ब्रॉडबैंड सुविधा मिलेगी। ग्रामीण क्षेत्रों और सार्वजनिक स्थानों पर वाई-फाई सुविधा पहले से ज्यादा असरदार होगी। स्पेक्ट्रम के खाली चैनलों का सौ फीसद इस्तेमाल होगा। इससे मोबाइल व इंटरनेट नेटवर्क में सुधार होगा। मोबाइल उपभोक्ताओं को इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं, जैसे संदेश सुनने को नहीं मिलेंगे और न ही इंटरनेट की गति कम होने पर सिर पर हाथ रखकर बैठना पड़ेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के स्कूल ऑफ कंप्यू¨टग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनिय¨रग के एसोसिएट प्रो. राहुल श्रेष्ठा व उनकी टीम ने इंटेलिजेंट टेक्नोलॉजी कॉग्निटिव रेडियो (सीआर) विकसित किया है। कॉग्निटिव रेडियो से स्पैक्ट्र
जागरण संवाददाता, मंडी : देश में लोगों को अब सस्ती ब्रॉडबैंड सुविधा मिलेगी। ग्रामीण क्षेत्रों व सार्वजनिक स्थानों पर वाई-फाई सुविधा ज्यादा असरदार होगी। स्पेक्ट्रम के खाली चैनलों का 100 फीसद इस्तेमाल होगा। इससे मोबाइल व इंटरनेट नेटवर्क में सुधार होगा। मोबाइल उपभोक्ताओं को इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं, जैसे संदेश सुनने को नहीं मिलेंगे और न ही इंटरनेट की गति कम होने पर सिर पर हाथ रखकर बैठना पड़ेगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के स्कूल ऑफ कंप्यू¨टग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनिय¨रग के एसोसिएट प्रो. राहुल श्रेष्ठा व उनकी टीम ने इंटेलीजेंट टेक्नोलॉजी कॉग्निटिव रेडियो (सीआर) विकसित किया है। कॉग्निटिव रेडियो से स्पेक्ट्रम की कमी भी दूर होगी। मोबाइल व इंटरनेट नेटवर्क उपलब्ध करवाने वाली कंपनियों को महंगी दरों पर स्पेक्ट्रम नहीं खरीदने पड़ेंगे। वर्तमान में वायरलेस संचार के लिए रेडियोफ्रीक्वेंसी (आरएफ) का उपयोग होता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का हिस्सा है। लेकिन वायरलेस संचार का उपयोग बढ़ने से आरएफ स्पेक्ट्रम में उपलब्ध चैनलों में कमी आई है। इससे बाधा रहित संचार संभव नहीं हो पा रहा है।
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तकनीक ईजाद करने में इनका भी रहा सहयोग
इस तकनीक को विकिसत करने में संस्थान के रिसर्च स्कॉलर रोहित चौरसिया, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी, हैदराबाद के महेश मूर्ति ने सहयोग दिया है। इन्होंने सीआर डिवाइसेज की हार्डवेयर क्षमता बढ़ाने की विशेष पद्धतियों का विकास किया है।
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क्या है रेडियोवेव?
रेडियोवेव इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का वह हिस्सा होता है जो इंद्रधनुष के लाल सिरे जैसा होता है। सालों से इसका उपयोग सूचना संचार के लिए किया जा रहा है। इस रेडियो फ्रीक्वेंसी क्षेत्र के अंदर संचार के उद्देश्य से पूरी दुनिया में एक फिक्स्ड बैंड तय किया गया है। देश में राष्ट्रीय फ्रीक्वेंसी आवंटन योजना की जिम्मेदारी संचार एवं सूचना तकनीकी मंत्रालय के एक प्रभाग राष्ट्रीय रेडियो नियामक प्राधिकरण देखता है। जो संचार के उद्देश्यों से रेडियोफ्रीक्वेंसी का आवंटन करता है।
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कुछ चैनलों का नहीं होता था उपयोग
फ्रीक्वेंसी के आवंटित बैंड के अंदर कुछ खाली चैनल उपलब्ध होते हैं जो उपयोग में नहीं रहते हैं। लेकिन तेजी से बढ़ते वायरलेस संचार के दौर में लाइसेंस युक्त स्पेक्ट्रम के पूरे हिस्से का उपयोग नहीं होना संचार में एक रुकावट पैदा करता है।
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क्या है कॉग्निटिव रेडियो
कॉग्निटिव रेडियो शब्द का इस्तेमाल 1999 में जोई मिटोला ने किया था। इसकी मदद से सूचना के ट्रांसमीटर व रिसीवर को व्हाइट चैनल का पता चल जाता है, जिनके ऊपर संचार किया जा सकता है। इस तरह पहले से व्यस्त चैनलों पर जाने से बचा जा सकता है।
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कॉग्निेटिव रेडियो का पहला कदम व्हाइट चैनलों की पहचान करना है। आरएफ वेव्स में व्हाइट चैनलों की पहचान के लिए पूरी दुनिया में विभिन्न पद्धतियों का विकास किया जा रहा है। ये पद्धतियां सेंसर डिवाइस के साथ तालमेल से काम करती हैं। इस शोध से देश में सीआर तकनीक स्थापित करने में तेजी आएगी।
-डॉ. राहुल श्रेष्ठा, एसोसिएट प्रोफेसर आइआइटी मंडी।