आग लगी तो सुरक्षित नहीं कांगड़ा शहर

कांगड़ा शहर की तंग गलियों में अगर कोई अग्निकांड जाए तो आग पर कैसे काबू पाया जाए।

By Edited By: Publish:Tue, 07 May 2019 08:39 PM (IST) Updated:Wed, 08 May 2019 09:57 AM (IST)
आग लगी तो सुरक्षित नहीं कांगड़ा शहर
आग लगी तो सुरक्षित नहीं कांगड़ा शहर
कांगड़ा, बिमल बस्सी। धार्मिक नगरी कांगड़ा में अगर कोई अग्निकांड हो जाए तो आग पर कैसे काबू पाया जाए, यही अपने आप में बड़ा सवाल है। शहर की तंग गलियों के कारण दमकल विभाग की गाड़ियों का घटनास्थल पर पहुंच पाना संभव ही नहीं है। मुख्य बाजार में तो अग्निशमन विभाग की गाड़ी पहुंच सकती है, लेकिन आग पर काबू पाने के लिए तंग गलियां रुकावट बन जाती हैं।

यूं तो शहर के विभिन्न हिस्सों में 16 फायर हाइड्रेंटस स्थापित हैं लेकिन ये भी नाकाफी हैं। साथ ही बेतरतीब पार्किंग व्यवस्था भी अग्निशमन विभाग की कार्रवाई में रोड़ा अटका सकती है। हालांकि समय-समय पर प्रशासन एवं पुलिस की ओर से बेतरतीब खड़े वाहनों पर कार्रवाई की जाती रही है लेकिन यह भी संतोषजनक नहीं है। कांगड़ा में बीते समय हुए अग्निकांडों से हुए नुकसान का विचार आते ही शहरवासियों की रूह कांप उठती है। गर्मियों में फायर सीजन के कारण यह ¨चता और भी बढ़ जाती है।

कांगड़ा में हुए अग्निकांड 5 मई, 2015 को मुख्य बाजार में कृष्णा ब्रदर्स के स्टेशनरी गोदाम में आग लगी थी। 18 अप्रैल, 2018 को राजपूत सभा के सामने रुद्रा फिटनेस जिम में आग लगी थी। 7 नवंबर, 2018 को बीरता स्थित होंडा एजेंसी में आग लगने से 75 स्कूटियां जल गई थीं। 21 जनवरी, 2019 को राजपूत सभा के सामने गर्ग मॉडवेयर रेडिमेड के शोरूम में आग लगने से भारी नुकसान हुआ था। 1977 में मुख्य बाजार में हुए भीषण अग्निकांड में 15 से अधिक दुकानें तथा ओहरी परिवार के समस्त मकान जल गए थे। 1997 में मंदिर बाजार के नेहरू चौक में छह से अधिक दुकानें आग की चपेट में आई थीं और लाखों का नुकसान हुआ था। 

अग्निशमन कर्मियों व वाहनों की व्यवस्था अग्निशमन उपकेंद्र कांगड़ा में एक फायर ऑफिसर सहित एक फायरमैन, एक मुंशी, एक ड्राइवर तथा दो फील्ड कर्मचारी हैं। आपातकाल में दमकल विभाग को गृहरक्षकों की सेवाएं लेनी पड़ती हैं। वर्तमान में दमकल विभाग के पास दो बड़ी गाड़ियां तथा 300 लीटर पानी क्षमता वाली एक जीप है। बड़ी गाड़ियों में 9000 लीटर तथा 3500 लीटर पानी की क्षमता है। किराये के भवन में चल रहा केंद्र अपना नवनिर्मित भवन होने के बावजूद वर्तमान में केंद्र किराये के भवन में चल रहा है। दमकल विभाग का उपकेंद्र औद्योगिक क्षेत्र के नजदीक किराये के भवन में चल रहा है और यहां गाड़ियां खड़ी करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा बाईपास पर दो करोड़ से अधिक की लागत से तैयार भवन सफेद हाथी साबित हो रहा है तथा उद्घाटन के लिए तरस रहा है।

बाईपास स्थित दमकल विभाग का भवन बनकर तैयार हो चुका है। कुछ कार्य अधूरा रहने से भवन विभाग को नहीं सौंपा गया है। इस कारण किराये के भवन में गुजारा करना पड़ रहा है। -मनीराम, फायर ऑफिसर उपकेंद्र कांगड़ा।

पिछले डेढ़ दशक में दुकान में तीन मर्तबा आग लगने से भारी नुकसान हुआ। आग के बारे में सोचकर ही डर लगता है। दमकल विभाग को नया भवन मिल जाए और उनकी बिग्रेड में इजाफा हो जाए तो विभाग के कर्मचारी आग की घटनाओं से निपटने में समक्ष हो जाएंगे। -अजय वालिया

1997 में दुकान जल गई थी और यह भयावह मंजर अब भी आंखों के सामने कौंधता है। विचार से भी रूह कांप उठती है। विभाग को चाहिए कि तंग गलियों में जहां वाहन नहीं पहुंच सकता है वहां फायर हाइड्रेंट्स स्थापित किए जाएं ताकि अग्निकांडों पर अंकुश लगाया जा सके। -संजय कालरा

मुख्य बाजार तथा पुलिस थाना भवन में स्थित कुओं को दमकल विभाग के प्रयोग के लिए फायर हाइड्रेंट्स के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे आग जैसी खतरनाक परिस्थितियों में पानी की कमी महसूस न हो और लोगों का नुकसान भी कम हो। -सुमन शर्मा

तंग गलियों में आग लगने पर भारी नुकसान की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है। संबंधित विभाग को चाहिए कि तंग गलियों में भी फायर हाइड्रेंट्स स्थापित करने का प्रयास करें। -विनोद शर्मा, मनोनीत पार्षद कांगड़ा। भवन का कार्य पूर्ण हो चुका है। लोकसभा चुनाव के उपरांत भवन अग्निशमन विभाग को सौंप दिया जाएगा। -संजीव महाजन, अधिशाषी अभियंता लोनिवि कांगड़ा

फायर सीजन में अग्निकांडों से कम से कम नुकसान हो, इसके लिए अग्निशमन उप केंद्रों व फायर चौकी प्रभारियों को निर्देश दिए हैं कि वे तुरंत कार्रवाई अमल में लाएं। -एसके चौधरी, अधिकारी मुख्य अग्निशमन केंद्र धर्मशाला

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