...तो इसलिए रणनीतिक है हिमालय के लिए हिमाचल, पढ़ें पूरी खबर

विषय हिमालय का है तो अंकुश की शहादत ने फिर इस तथ्य को सत्यापित किया है कि हिमाचल प्रदेश के हृदय से कई वर्ष पहले निकली हिमालयन रेजिमेंट की मांग जायज थी और है।

By Rajesh SharmaEdited By: Publish:Thu, 18 Jun 2020 05:50 PM (IST) Updated:Thu, 18 Jun 2020 05:50 PM (IST)
...तो इसलिए रणनीतिक है हिमालय के लिए हिमाचल, पढ़ें पूरी खबर
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धर्मशाला, नवनीत शर्मा। हिमाचल के सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाले जिले हमीरपुर का एक गांव है कड़ोहता। वहां बुधवार सुबह से ही अमर शहीद अंकुश के घर लोग जुट रहे थे। देश के अन्य रणबांकुरों के साथ हिमाचल का एक जवान था अंकुश ठाकुर। जाहिर है मंजर घोर उदासी का होता है लेकिन यह हिमाचल के खून में शामिल साहस है जो इस गहरे जख्म को भी भर देगा... बल्कि लाखों-करोड़ों देशवासियों के लिए प्रेरणा बन जाएगा। हिमाचल की माताएं फिर हंसी खुशी अपने जिगर के टुकड़ों को देशसेवा के लिए भेजती रहेंगी।

हिमालय पर 58 वर्षों के बाद चीन की लाल छाया को हटाने का पराक्रम करते हुए वह देश के काम आया। 21 साल की उम्र में सर्वोच्च बलिदान करना उन्हीं का काम होता है जो बेहद बहादुर हों। जिन्होंने चीन के साथ भारत का युद्ध नहीं देखा है, वे भी उस युद्ध को याद कर रहे हैं। वरिष्ठ राजनेता शांता कुमार की किताब के शीर्षक के माध्यम से कहें तो एक बार फिर 'हिमालय पर लाल छायाÓ दिख रही है। यह छाया कितनी खूनी और धूर्त है, इसका अंदाजा उस पीढ़ी को अधिक है जिसने 1962 का दौर देखा है। यह वह दौर था जब 'हिंदी चीनी भाई-भाईÓ नारे की धज्जियां उड़ी थीं। आंखें सामने का मंजर देख रही हैं लेकिन मन इसी पृष्ठ भूमि पर कैफी आजमी के लिखे फिल्म 'हकीकतÓ के उन बोलों के साथ है,

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर

जान देने की रुत रोज आती नहीं

हुस्न और इश्क दोनों को रुसवा करे

वह जवानी जो खूं में नहाती नहीं

वास्तव में जान देने की रुत में ही हमेशा जिंदा रहने के अवसर आते हैं।

विषय हिमालय का है तो अंकुश की शहादत ने फिर इस तथ्य को सत्यापित किया है कि हिमाचल प्रदेश के हृदय से कई वर्ष पहले निकली हिमाचल रेजिमेंट या हिमालयन रेजिमेंट की मांग जायज थी और है। एक बार फिर लेह रेल मार्ग का सपना अपने साकार होने की आवश्यकता को जताता है। सुखद यह है कि रोहतांग सुंरग अब बनने ही वाली है। यह सभी मौसमों की आंखों में आंखें डाल कर सेना, उसकी रसद, तमाम स्थानीय वासियों और पयर्टकों को राह दिखाएगी।

हिमाचल प्रदेश के पास शौर्य और साहस की एक सुदीर्घ और अनुकरणीय परंपरा है। यह वह परंपरा है जो जनरल जोरावर सिंह की याद दिलाती है। उसके बाद क्यों हम भंडारी राम, लाला राम की बहादुरी तक न आएं? देश जब आजाद हुआ तो पाकिस्तान ने जिन कबायलियों को श्रीनगर पर कब्जा करने भेजा था, उनके दांत देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा ने ही खट्टे किए थे। उनके बाद हिमाचल प्रदेश क्यों अमर शहीद मेजर धनसिंह थापा के प्रति कृतज्ञ न हो? उसके बाद कैप्टन विक्रम बतरा, सुधीर वालिया और कैप्टन सौरभ कालिया को कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने देश के लिए आत्मोत्सर्ग किया।

बहादुरी पुरस्कारों में शीर्ष पर चमकता हिमाचल प्रदेश जो चीन के साथ 228 किलोमीटर तक सटा हुआ है, वहां के लिए हिमालयन रेजिमेंट अब भी दूर की कौड़ी है। क्योंकि चीन के साथ झड़प ताजा है, और हमारे प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि भारत शांति चाहता है लेकिन किसी के उकसाने पर पीछे भी नहीं रहेंगे। ... ऐसे में लेह रेलमार्ग और हिमालयन रेजिमेंट के विषय बेहद सामयिक, रणनीतिक और अनिवार्य प्रतीत होते हैं। कुछ किस्से दोहराए जाने चाहिएं क्योंकि उनमें तथ्य होते हैं। और तथ्यों की खूबी यह है कि वे बदलते नहीं। जो बदलते नहीं। हिमालयन रेजिमेंट के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहमत थे लेकिन तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीज ने कहा कि अब राज्य के नाम पर रेजिमेंट नहीं हो सकती। राज्य का ही मसला है तो हिमाचल के स्थान पर क्यों हिमालयन रेजिमेंट नहीं हो सकती?

इसी आग्रह के साथ फिर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हिमालयन रेजिमेंट की बात रखी लेकिन हुआ कुछ नहीं। हाल में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार और विपक्ष ने एकजुट होकर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया था कि हिमालयन रेजिमेंट बेहद आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश पर सेना में जनसंख्या के आधार पर कोटे की जो शर्त है, वह पीछे रह जाती है और देवभूमि के शौर्य के साथ न्याय नहीं कर पाती।

इसी प्रकार कई वर्षों तक लेह रेलमार्ग सर्वेक्षणों के सहारे रहा है। चीन ने तिब्बत जैसे बर्फीले क्षेत्र में न केवल साल भर खुला रहने वाला रेलमार्ग बना लिया है अपितु रेल की आवाजाही की सूचनाएं हैं। हिमाचल प्रदेश में लेह तक रेल मार्ग बनने के अर्थ और उसके मर्म को सैन्य सरोकार ही समझ सकते हैं। कारगिल युद्ध के दौरान जब पाकिस्तान का कुविचार हमारे श्रीनगर कारगिल वाले रास्ते को बंद करने का था, मनाली और लेह वाला मार्ग ही काम आया था। यह रहस्य नहीं है कि अगर लेह तक रेलमार्ग भी बन जाता है तो भारत इस मोर्चे पर भी कितना आगे हो जाएगा।

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