सुरक्षित होली नहीं पड़े रंग में भंग

होली रंगों और खुशियों का त्योहार है, लेकिन लापरवाही से होली खेलने से आपके शरीर और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। बावजूद इसके, अगर आप कुछ सावधानियां बरतें, तो रंगों के इस पर्व की खुशियों को दोगुना कर सकते हैं। हम जानते हैं कि आप रंग में भंग

By Babita kashyapEdited By: Publish:Tue, 03 Mar 2015 02:18 PM (IST) Updated:Tue, 03 Mar 2015 02:23 PM (IST)
सुरक्षित होली नहीं पड़े रंग में भंग

होली रंगों और खुशियों का त्योहार है, लेकिन लापरवाही से होली खेलने से आपके शरीर और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। बावजूद इसके, अगर आप कुछ सावधानियां बरतें, तो रंगों के इस पर्व की खुशियों को दोगुना कर सकते हैं। हम जानते हैं कि आप रंग में भंग नहीं चाहते, तो फिर परिवार के सदस्यों, मित्रों और प्रियजनों को रंगों में छिपे कुछ खतरों से अवगत जरूर कराएं। तभी होली का पूरा लुत्फ उठा सकते हैं...

पारंपरिक तौर पर होली के त्योहार के समय खिलने वाले फूलों से रंग निकाल कर इस त्योहार का आनंद उठाया जाता था। महकने वाले इन प्राकृतिक रंगों में रोगों के उपचार की भी क्षमता होती थी और यह हमारी त्वचा और स्वास्थ्य के लिए भी अच्छे होते थे। गुलाल को त्वचा को कोमल बनाने वाले उसके गुणों के लिए चुना जाता था, जो अन्य नुकसानदेह रंगों से पूरी तरह अलग होता है।

रासायनिक रंगों से बचें

होली के मौके पर रासायनिक रंगों के कारण त्वचा पर जलन की समस्या पैदा हो सकती है और इस पर निशान पड़ सकते हैं। इस स्थिति में त्वचा को खुजलाने पर एग्जिमा हो सकता है। त्वचा विशेषज्ञों के पास होली के बाद आमतौर पर यह समस्या लिए लोग सबसे अधिक संख्या में आते हैं। सूखी त्वचा(ड्राई स्किन) के कारण भी ऐसे

हानिकारक रसायनों को उसमें पैठ बनाने में ज्यादा आसानी से मौका मिलता है।

गुलाल में ऑक्साइड, मेटल, ग्लास पार्टिकल्स और पावडर जैसे ऑर्गेनिक कंपाउंड्स होते हैं, जिन्हें टेक्सटाइल डाइज(परिधानों को रंगने) में इस्तेमाल किया जाता है। हरे रंग में कॉपर सल्फेट, बैंगनी में क्रोमियम और ब्रोमाइड कंपाउंड्स, जबकि काले में लेड ऑक्साइड होता है। इनके

अलावा, टैट्राफिलाइन, लेड, बैन्जीन, एरोमैटिक कंपाउंड्स जैसे घोल के कारण भी ड्राई स्किन की समस्या बढ़ सकती है, जो केवल शुरुआती समस्या के तौर पर ही होती है। एक बार जब आप रंग उतारने के लिए

त्वचा को मलते हैं, तो बैंजीन नामक रसायन त्वचा के ऊपरी भाग को नुकसान पहुंचाता है। कभी-कभार लोग रंगों को उतारने के लिए नेल

पॉलिश रिमूवर का भी इस्तेमाल करते हैं। नतीजतन, ऑर्गेनिक कंपाउंड्स त्वचा में जा बैठते हैं। इनमें सीसा व पारा सबसे ज्यादा नुकसानदेह साबित होते हैं, यदि उन्हें ऑर्गेनिक फॉर्म या रूप

में इस्तेमाल किया जाता है।

इसी तरह यदि होली के रंगों को देर तक साफ न किया जाए तो बाल भी खतरे की जद में रहते हैं और वे बेहद सूखे हो जाते हैं। हालांकि बालों की जड़ों को नुकसान नहीं पहुंचता, परंतु बाल टूटने लगते हैं। ऐसा रंगों में मौजूद रसायनों और बाहर मौजूद धूल के कारण होता है।

सुरक्षा उपाय

- अच्छे कुदरती व हर्बल रंगों का ही उपयोग करें जो प्रतिष्ठित कंपनियों द्वारा निर्मित हों।

- लाल या गुलाबी रंगों का ही इस्तेमाल करें जो दिखते भी अच्छे हैं और आसानी से उतर भी जाते हैं। बैंगनी, हरा, पीला, नारंगी आदि रंगों में ज्यादा हानिकारक रसायन होते हैं। इसलिए इनसे बचना चाहिए।

-होली खेलने से पहले अपने बालों में अच्छी तरह से तेल लगाएं और रंगों से बचने के लिए टोपी आदि पहन लें।

-शरीर को ठीक से ढक कर ही होली खेलें। अपनी त्वचा पर अच्छी क्वालिटी की क्रीम या

तेल लगाएं।

- यदि त्वचा में कहीं जलन महसूस हो, तो

उस जगह लगा रंग फौरन धो डालें।

-यदि त्वचा पर गंभीर असर पड़ा हो, तो धूप

में जाने से बचें।

-होली खेलने के बाद त्वचा और बालों से सारा रंग धो डालना सबसे जरूरी होता है। त्वचा पर साबुन लगाकर उसे जोर से मलें नहीं बल्कि गुलाल को धोने के लिए क्लींजर का इस्तेमाल करें। इसके बाद अच्छी मात्रा में मॉइस्चराइजर

लगाएं जो त्वचा को कोमल बनाता है। त्वचा पर क्रीम या मॉइश्चराइजर का

इस्तेमाल ठीक रहता है। -रंग उतारने के लिए कैरोसीन, पेट्रोल या स्प्रिट का इस्तेमाल न करें, क्योंकि यह त्वचा

में ड्राईनेस पैदा करते हैं।

-होली के बाद त्वचा को पहले जैसी रंगत में लाने के लिए सोयाबीन के आटे या बेसन

के साथ दूध का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। समुद्री नमक, ग्लिसरीन और

अरोमा तेल की कुछ बूंदों का मिश्रण भी एंटी-बैक्टीरियल व एंटी-फंगल सरीखा असर

देता है व रंगों के रासायनिक असर को समाप्त करता है। रंगों को धोने के लिए पानी और

मॉइस्चराइजिंग साबुन का इस्तेमाल करें।

सिंथेटिक रंगों से होने वाले नुकसान

इन दिनों बाजार में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों में मिलाए जाने वाले टॉक्सिन और रसायन कई समस्याओं के कारण बन सकते हैं। इन रंगों में ऑक्सीडाइज्ड मेटल्स या इंडस्ट्रियल डाई (औद्योगिक रंग)होते हैं, जो हमारी सेहत को हानि पहुंचा सकते हैं। सिंथेटिक रंगों से त्वचा का बदरंग होना (डिस्कलरेशन), कॉन्टेक्ट डर्मिटाइटिस (त्वचा की एलर्जी), एब्रेशन(त्वचा का छिल जाना), इरिटेशन (त्वचा में या आंखों में जलन या असहज महसूस करना), इचिंग(खुजली होना), ड्राइनेस (त्वचा या नेत्रों में सूखापन महसूस होना) और फटी हुई त्वचा सरीखी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

रंगों के दुष्प्रभाव पर एक नजर

ब्लैक रंग में केमिकल लीड ऑक्साइड शामिल हो सकते हैं, जिससे कुछ स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। ग्रीन रंग में कॉपर सल्फेट शामिल हो सकता है जिससे आंखों में एलर्जी की समस्या पैदा हो सकती है पर्पल रंग में क्रोमियम आयोडाइड हो सकता है जिससे ब्रॉन्कियल अस्थमा और एलर्जी की समस्या पैदा हो सकती है। सिल्वर रंग में एल्यूमीनियम ब्रोमाइड शामिल हो सकता है, जो त्वचा संबंधी रोग पैदा कर सकता है।

डॉ.अनूप धीर प्लास्टिक व कॉस्मेटिक सर्जन

अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली

होली के है रंग अनेक

रंगों के पर्व पर दिखें खास

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