दमा पर दमदार नियंत्रण

बढ़ते प्रदूषण और अनेक कारणों से दमा का मर्ज पूरी दुनिया में तेजी से फैलता जा है। यह सच है कि दमा को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है...

By Babita kashyapEdited By: Publish:Wed, 04 May 2016 02:45 PM (IST) Updated:Wed, 04 May 2016 02:52 PM (IST)
दमा पर दमदार नियंत्रण

दमा (अस्थमा) ऐसा मर्ज है, जो बच्चों से लेकर किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले सकता है। बढ़ते प्रदूषण और अनेक कारणों से दमा का मर्ज पूरी दुनिया में तेजी से फैलता जा है। यह सच है कि दमा को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है...

अस्थमा (दमा) एक ऐसा रोग है, जिसमें रोगी की सांस नलियों में कुछ कारणों के प्रभाव से सूजन आ जाती है। इस कारण रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है। जिन कारणों से दमा की समस्या बढ़ती है, उन कारणों को एलर्जन्स कहते हैं। ऐसे कारणों में धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पालतू जानवर और फूलों के परागकण आदि प्रमुख होते हैं।

ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 30 करोड़ लोग दमा से पीडि़त हैं। भारत में यह संख्या लगभग 3 करोड़ है। दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही प्रारम्भ हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना और बच्चे का सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। शेष एक तिहाई लोगों में दमा के लक्षण युवा अवस्था में प्रारम्भ होते हैं। इस तरह दमा बचपन या युवावस्था में ही प्रारम्भ होने वाला रोग है।

डायग्नोसिस

दमा का पता अधिकतर लक्षणों के आधार पर भी किया जाता है। एक परीक्षण सीने में आला लगाकर और म्यूजिकल साउंड (रॉन्काई) सुनकर किया जाता है। इसके अलावा फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पी.ई.एफ.आर. और स्पाइरोमेट्री) द्वारा की जाती है। अन्य जांचों में रक्तकी जांच, छाती और पैरानेजल साइनस का एक्सरे किया जाता है।

इन बातों पर दें ध्यान

-दमा की दवा हमेशा अपने पास रखें और कंट्रोलर इनहेलर हमेशा समय से लें।

-सिगरेट और सिगार के धुएं से बचें और प्रमुख एलर्जन्स से बचें।

- अपने फेफड़ों को मजबूत बनाने के लिए सांस से संबंधित व्यायाम करें।

- यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए या रिलीवर

इनहेलर की जरूरत बढ़ गई हो, तो शीघ्र ही अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

बचाव

- मौसम बदलने से सांस की तकलीफ बढ़ती है। इसलिए मौसम बदलने के 4 से 6 सप्ताह पहले ही

सजग हो जाना चाहिए और डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

- इनहेलर व दवाएं विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए।

- ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है या जो सांस के दौरे को पैदा करते हैं

उनसे बचें। जैसे धूल, धुंआ, गर्द, नमी, धूम्रपान आदि।

- सेमल की रुई युक्त बिस्तरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कारपेट, बिस्तर व चादरों की

नियमित और सोने से पूर्व अवश्य सफाई करनी चाहिए।

- व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इनहेलर अवश्य लेना चाहिए।

- बच्चों को लंबे रोएंदार कपड़े न पहनाएं और रोएदार खिलौने खेलने को न दें।

ऐसे मिलेगी राहत

हालांकि दमा पूरी तरह ठीक नहीं होता, लेकिन इसे पूर्ण नियंत्रण में रखा जा सकता है। इस प्रकार

दमा के साथ जी रहा व्यक्ति सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकता है।

इनहेलर थेरेपी

दमा का उपचार आमतौर पर इनहेलर से होता है, जो दमा की दवा लेने का सर्वश्रेष्ठ और सबसे सुरक्षित तरीका है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इनहेलर के जरिये दवा व्यक्ति के फेफड़ों तक पहुंचती है और यह तुरंत असर दिखाना शुरू कर देती है। यह ध्यान देने योग्य है कि इनहेलेशन थेरेपी में, सीरप और टैब्लेट्स की तुलना में 10

से 20 गुना तक कम खुराक की जरूरत होती है और यह अधिक प्रभावी होती है।

1.रिलीवर इनहेलर- ऐसे इनहेलर जल्दी से काम करके सांस नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव ढीला करते हैं और तुरन्त असर करते है। इनको सांस फूलने पर लेना होता है।

2.कंट्रोलर इनहेलर- ये सांस नलियों में सूजन घटाकर उन्हें अधिक संवेदनशील बनने से रोकते हैं और दमा के गंभीर दौरे का खतरा कम करते है। इनको लक्षण न होने पर भी लगातार लेना चाहिए।

टैब्लेट की जरूरत

दमा के इलाज में अनेक व्यक्तियों को टैब्लेट्स की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसा इसलिए, क्योंकि इनहेलर सामान्यत: अच्छी तरह से कार्य करते हैं। बावजूद इसके कुछ मामलों में यदि दमा से पीडि़त व्यक्ति में कुछ लक्षण मौजूद रहते हैं, तो इनहेलर के अलावा टैब्लेट लेने की भी सलाह दी जाती है। कभी-कभी तीव्र(एक्यूट) दमा के दौरे को कम करने के लिए स्टेरॉइड टैब्लेट थोड़े वक्त के उपचार के लिए दी जाती हैं। वस्तुत: कुछ लोगों में लक्षण सिर्फ इसलिए मौजूद रहते हैं क्योंकि वे अपने इनहेलर का प्रयोग ठीक प्रकार से नहीं करते हैं। इसलिए इनहेलर का ठीक प्रकार से इस्तेमाल करना अपने डॉक्टर से सीखें।

डॉ.एस.पी. राय

सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल,

मुंबई

क्यों होता है आनुवांशिक और पारिवारिक कारण। जैसे परिवार के किसी सदस्य को दमा रहा हो, तो दूसरे सदस्य में दमा से ग्रस्त होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा दमा की समस्या

को बढ़ाने वाले तीन प्रमुख कारण होते हैं।

1. घर के अंदर (इनडोर एलर्जन)

- हाउॅस डस्ट माइट यानी घरेलू धूल में उपस्थित कीट।

- जानवरों के शरीर पर उपस्थित एलर्जन

- कॉकरोच।

2. बाह्य कारक (आउटडोर एलर्जन)

- पौधों के फूलों में पाए पाये जाने वाले सूक्ष्म कणों को परागकण कहते हैं, जो एलर्जी के प्रमुख कारक हैं।

- विभिन्न लोगों में कुछ खाद्य पदार्र्थों को ग्रहण करने से भी दमा की समस्या बढ़ती है। जैसे अनेक लोगों को अंडा, मांस, मछली, फास्ट फूड्स, शीतल पेय और आइसक्रीम आदि खाने से दमा की समस्या

बढ़ जाती है।

3. अन्य कारण

- इनके अंतर्गत वाइरस और जीवाणुओं के संक्रमण, को शामिल किया जाता है।

लक्षण

जब दमा के कारक मरीज के संपर्क में आते हैं, तो शरीर में मौजूद विभिन्न रासायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) स्रावित होते हैं। इस कारण सांस नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं। सांस नलिकाओं की भीतरी दीवार में लालिमा और सूजन आ जाती है और उनमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से दमा के लक्षण पैदा होते हैं, जो इस प्रकार हैं...

- सांस लेने में कठिनाई, जो दौरों के रूप में

तकलीफ देती है।

- खांसी जो रात में गंभीर हो जाती है।

- सीने में कसाव या जकडऩ।

- सीने में घरघटाहट जैसी आवाज आना।

- गले से सीटी जैसी आवाज आना।

- बार-बार जुकाम होना।

गर्भावस्था और दमा

दमा ऐसा मर्ज है, जो गर्भावस्था में मां और शिशु दोनों के लिए हानिकारक है। यदि इसका सही समय और सही तरीके से उपचार न किया गया तो मां और शिशु के लिए कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। दमा से प्रभावित गर्भवती महिलाओं में अल्पवजन के शिशु होने का खतरा 46 फीसदी बढ़ जाता है। एक तिहाई महिलाओं में गर्भावस्था के समय दमा दौरे के रूप में प्रकट होता है।

दौरे का कारण

- दमा का उपचार बंद कर देना या उपचार कम करना।

- हार्मोन्स में परिवर्तन।

उपचार

- इनहेलर और दवाएं डॉक्टर की सलाह से लेनी चाहिए।

- बच्चे के जन्म के समय पर भी दवाओं और उपचार का प्रयोग करना आवश्यक

है।

डॉ.सूर्यकांत सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ

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