सात समुद्र पार से मतदान करने के लिए हर चुनाव में पहुंचता एनआरआइ दंपती

मजबूत लोकतंत्र के लिए जातपात और प्रलोभन से ऊपर उठकर कर्मठ प्रत्याशी का चुनाव करना चाहिए। मतदान करने के लिए जर्मनी में भी ऐसा ही कल्चर है। ये बाते फ्रेक्फर्ट (जर्मनी) में मजिस्ट्रेट ब्यूरो मेबर राहुल कुमार के पिता एनआरआइ राजकुमार और माता कांता कुमारी ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत के दौरान कही।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Oct 2019 07:50 AM (IST) Updated:Mon, 21 Oct 2019 07:50 AM (IST)
सात समुद्र पार से मतदान करने के लिए हर चुनाव में पहुंचता एनआरआइ दंपती
सात समुद्र पार से मतदान करने के लिए हर चुनाव में पहुंचता एनआरआइ दंपती

संजीव कंबोज, यमुनानगर : मजबूत लोकतंत्र के लिए जातपात और प्रलोभन से ऊपर उठकर कर्मठ प्रत्याशी का चुनाव करना चाहिए। मतदान करने के लिए जर्मनी में भी ऐसा ही कल्चर है। ये बाते फ्रेक्फर्ट (जर्मनी) में मजिस्ट्रेट ब्यूरो मेबर राहुल कुमार के पिता एनआरआइ राजकुमार और माता कांता कुमारी ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत के दौरान कही। वे मूलरूप से रादौर के अलाहर निवासी हैं। 40 वर्ष से जर्मनी के फ्रेक्फर्ट में रहते हैं। हर चुनाव में मतदान के लिए गांव पहुंचना नहीं भूलते। ग्राम पंचायत, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदान के लिए वे हर बार आते हैं। इस बार भी विधानसभा चुनाव में मतदान के लिए पहुंच चुके हैं। उनको इस बात का गर्व है कि अपने प्रतिनिधि के चुनाव में वे भी आहुति डालेंगे।

अच्छे प्रत्याशी का करें चुनाव

राजकुमार कहते हैं कि भारत जैसा देश कोई नहीं है। यहां की सभ्यता और संस्कृति निराली है। हमारा दायित्व बनता है कि ईमानदार सरकार के लिए अच्छे प्रतिनिधियों का चुनाव करें। मजबूत सरकार बनाएं। ऐसा करना देश के हित में होगा, हालांकि जर्मनी जैसे देश की तुलना में यहां वोट प्रतिशतता पहले से ही अधिक है। बावजूद इसके हमें शत-प्रतिशत मतदान करना चाहिए। इस दिन सभी आवश्यक कामकाज छोड़कर मतदान को तरजीह दें। प्रत्याशियों के मुद्दों को परखें। उनके आधार पर मतदान करें।

रैलियों और रैला ठीक नहीं

कुछ नेता वोट के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। मतदाताओं को गुमराह करते हैं। उनको कई तरह के प्रलोभन भी दिए जाते हैं। रैलियों पर मोटा बजट खर्च किया जाता है। यदि यही पैसे गरीब बच्चों की शिक्षा और मानव कल्याण के अन्य कार्यों पर खर्च किया जाए, तो बेहतर होगा। चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पानी की तरह पैसा बहा दिया जाता है। रैलियां भी होती हैं, जनसभाओं में भी भीड़ जुटाई जाती हैं। डोर-टू-डोर प्रचार भी किया जाता है। चुनाव से छह माह पहले ही ये सिलसिला शुरू हो जाता है।

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