हरियाणा के इस 'संन्यासी' ने तैयार किए अंतरराष्ट्रीय स्तर के 100 पहलवान, रवि दहिया समेत 22 ने जीता पदक

25 साल में संन्यासी हंसराज 100 से अधिक पहलवान तैयार कर चुके हैं जिन्होंने देश का नाम रोशन किया है। इनमें से 22 पहलवान ऐसे हैं जो राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय और ओलिंपिक तक पहुंचे हैं। अर्जुन अवार्डी महाबीर सिंह अमित ध्यानचंद अवार्डी सतबीर सिंह देश का नाम रोशन कर चुके हैं।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sat, 14 Aug 2021 02:59 PM (IST) Updated:Sat, 14 Aug 2021 03:40 PM (IST)
हरियाणा के इस 'संन्यासी' ने तैयार किए अंतरराष्ट्रीय स्तर के 100 पहलवान, रवि दहिया समेत 22 ने जीता पदक
पहलवान संन्यासी हंसराज की फाइल फोटोः जागरण

सोनीपत [नंदकिशोर भारद्वाज]। गांव नाहरी में एक संन्यासी ऐसे भी हैं जिन्होंने बिना सुविधाओं वाले मिट्टी के अखाड़े से 22 पहलवान पैदा कर दिए जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं। इस संन्यासी का नाम है पहलवान हंसराज। टोक्यो ओलिंपिक में पहलवान रवि दहिया के सिल्वर मेडल जीतने के बाद चर्चा में आया सोनीपत का गांव नाहरी पहले से ही पहलवानों के लिए ख्याति अर्जित कर चुका है। रवि दहिया ने कुश्ती की शुरुआत पहलवान हंसराज के अखाड़े से ही की थी।

 महात्मा हंसराज ने दिल्ली में सरकारी नौकरी छोड़कर वर्ष 1996 में गांव में अखाड़ा शुरू किया था। वे अब तक 100 से अधिक पहलवान तैयार कर चुके हैं।

सादगी, लगन, त्याग और निस्वार्थ सेवा का नाम है महात्मा हंसराज। हंसराज को पहलवानी का शुरू से ही शौक था लेकिन उनके पशु व्यापारी पिता सूबे सिंह काे उनका कुश्ती लड़ना अच्छा नहीं लगता था। वे इससे नाराज रहते थे। हंसराज दिल्ली जलबोर्ड में नौकरी करते थे। कुश्ती के दौरान उनके घुटने में चोट लगने से उनके पैर का आपरेशन हुआ, इसके कारण उनकी पहलवानी छूट गई। उनके मन में कसक रह गई कि वे देश का नाम नहीं चमका सके। इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर गांव के आर्यसमाज मंदिर में अखाड़ा खोलकर पहलवान तैयार करने की ठानी। परिवार ने इसका विरोध किया लेकिन उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की। बाद में गांव वालों ने उनका विरोध किया तो उन्होंने नहर पर अखाड़ा शुरू किया।

हंसराज के पास उस समय कोई सुविधा नहीं थी। वे छोटे बच्चों को अभ्यास कराते हैं और पहलवान की प्रतिभा पहचानकर पांच साल के बाद उसे आगामी ट्रेनिंग के लिए अपने गुरु महाबली सतपाल के पास दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में छोड़ आते हैं। 25 साल में हंसराज 100 से अधिक पहलवान तैयार कर चुके हैं जिन्होंने देश का नाम रोशन किया है। इनमें से 22 पहलवान ऐसे हैं जो राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और ओलिंपिक तक पहुंचे हैं।

इनमें ओलंपियन व अर्जुन अवार्डी अमित दहिया, अरुण पाराशर, अरुण दहिया, पवन दहिया और टोक्यो ओलिंपिक के सिल्वर मेडलिस्ट रवि दहिया शामिल हैं।

सुविधाएं नहीं मिली तो देसी चीजों से बनाया जिम

गांव नाहरी के बाहर नहर के किनारे अखाड़े में संन्यासी हंसराज के पास कोई सुविधा नहीं है। वे सिर्फ पहलवानों को कड़ी मेहनत और अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं। यहां पर एसी-कूलर तो दूर की बात बिजली का कनेक्शन तक नहीं है। पहलवानों के लिए नहर की पटरी को साफ करके दौड़ के लिए देसी ट्रैक बनाया गया है। यहां पर पुरानी हाथ की चक्की के पत्थर के पाटों को तारों के सहारे पेड़ों पर बांधकर देसी जिम बनाया गया है। पेंट के अलग-अलग साइज के खाली डिब्बों में कंक्रीट भरकर तार की सहायता पेड़ पर लटकाकर खींचा जाता है।

लकड़ी की मुदगर अन्य साजो-सामान को जिम की तरह प्रयोग में लाया जाता है, ताकि पहलवान पसीना बहा सकें। इसके अतिरिक्त अखाड़ा खोदकर और मोटे रस्से से भी व्यायाम किया जाता है। सभी पहलवानों को साथ लगती नहर में तैराना सिखाया जाता है। तैराकी सीखने के बाद सभी पहलवान नियमित रूप से नहर में तैरते हैं।

गांव से आता है संन्यासी के लिए खाना

महात्मा हंसराज के लिए दोनों समय गांव से खाना आता है। इसके अलावा उनके लिए फल, दूध आ जाता है। उनके पिता का निधन हो चुका है। करीब 84 वर्षीय उनकी मां कभी-कभार गांव से बेटे से मिलने आ जाती हैं। दिल्ली एमसीडी में कार्यरत उनके बड़े भाई भी उनसे मिलने आते हैं।हंसराज सप्ताह में तीन दिन सुबह के समय छत्रसाल स्टेडियम में अपने पहलवानों से मिलने जाते हैं।

दो गांवों में तीन अर्जुन और एक ध्यानचंद अवार्डी

गांवा नाहरी और हलालपुर में पहलवानों का बाेलबाला है। गांव नाहरी में अर्जुन अवार्डी महाबीर सिंह और अमित दहिया, ध्यानचंद अवार्डी सतबीर सिंह कुश्ती में देश का नाम रोशन कर चुके हैं। वहीं पड़ोसी गांव हलालपुर में अर्जुन अवार्डी रोहतास सिंह अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। गांव के कई पहलवान छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती की बारीकियां सीख रहे हैं। अब रवि दहिया ने ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर गांव नाहरी की परंपरा को कायम रखा है। 

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