इनसे लीजिए सीख, भैया दूज और रक्षाबंधन के शगुन से बनवाया शौचालय

गर्भवती महिलाओं की दिक्कत देखी, तो अपने खर्च से बिलासपुर के सामुदायिक अस्पताल में बनवा दिए शौचालय। कुरुक्षेत्र में तो भैया दूज पर जमा हुए पैसों से बनवाया टॉयलेट। पढ़ें ये रिपोर्ट।

By Ravi DhawanEdited By: Publish:Mon, 19 Nov 2018 03:40 PM (IST) Updated:Thu, 22 Nov 2018 05:37 PM (IST)
इनसे लीजिए सीख, भैया दूज और रक्षाबंधन के शगुन से बनवाया शौचालय
इनसे लीजिए सीख, भैया दूज और रक्षाबंधन के शगुन से बनवाया शौचालय

पानीपत, जेएनएन - आज वर्ल्ड टॉयलेट डे है। आपको कुछ ऐसे किरदारों से रूबरू कराते हैं, जिन्हें लोग अब स्वच्छता के सिपाही पुकारने लगे हैं। जिस तरह का जज्बा इन्होंने दिखाया, अगर सभी इसी तरह जागरूक हों तो बीमारी पास भी नहीं फटक सकती। पढि़ए जागरण की ये विशेष खबर।

पहली कहानी है यमुनानगर के बिलासपुर की। यहां बिजनेसमैन पंकुश एक दिन बिलासपुर के सामुदायिक अस्पताल में गए थे। उन्होंने देखा कि एक गर्भवती महिला पेड़ की आड़ में छिपकर टॉयलेट करने के लिए जाती है, लेकिन कोई न कोई अस्पताल में आता रहता है। काफी देर तक वह इसी इंतजार में खड़ी रहती है। जिस पर वह सीधे डॉक्टर के पास जाते हैं और इस संबंध में बात करते हैं। डॉक्टर से जब उन्होंने पूछा कि यहां पर शौचालय की व्यवस्था नहीं है क्या। तो डॉक्टर जवाब देते हैं कि शौचालय की व्यवस्था है, लेकिन दूसरी बिल्डिंग में है। यहां पर केवल गर्भवती महिलाओं का इलाज होता है। उनके लिए यहां शौचालय नहीं है, उन्हें लघु शंका या शौचालय के लिए दूसरी बिल्डिंग में जाना पड़ेगा।

यहां पर शौचालय होना चाहिए
तत्कालीन एसएमओ डॉ. रमेश कुमार से भी इस बारे में पंकुश ने बात की, तो उन्होंने बताया कि शौचालय यहां पर होना चाहिए। बजट न होने की वजह से नहीं बनवाया जा सका। पंकुश ने खुद के बजट से शौचालय बनवाने की बात कही, तो एसएमओ तैयार हो गए। उन्होंने कहा कि केंद्र परिसर में जगह दे देंगे, लेकिन बजट आपका होगा।

सवा लाख रुपये की आई लागत
पंकुश बताते हैं कि यह एक गंभीर समस्या है। एक तरफ सरकार खुले में शौच मुक्ति के दावे कर रही है। जबकि उनके अपने केंद्रों पर शौचालयों की किल्लत है। अस्पताल में तो यह सबसे जरुरी है, क्योंकि यहां पर शुगर, बीपी आदि बीमारियों के मरीज आते हैं। ऐसे में उनके लिए शौचालयों की बेहद जरूरत है। दूसरी बिल्डिंग में जाने में तो उन्हें और दिक्कत होती होगी। इसलिए ही उन्होंने खुद से शौचालयों का निर्माण कराने का निर्णय लिया। अस्पताल में दो शौचालय बनवाए गए। एक महिलाओं के लिए व एक पुरूषों के लिए। करीब सवा लाख रुपये की मात्र लागत आई है।

रक्षा बंधन और भैया दूज पर जमा हुए रुपयों से बनाया था शौचालय
साल 2006 में सरकार की ओर संपूर्ण स्वच्छता अभियान चलाया गया था, इस अभियान के तहत बीपीएल परिवार को सरकार की ओर से शौचालय बनाने के लिए 1200 रुपये दिए जाते थे। इसके बाद साल 2009 में कुरुक्षेत्र के तत्कालीन सांसद नवीन ङ्क्षजदल के सहयोग के चलते अभियान ने ऐसी तेजी पकड़ी की कुरुक्षेत्र ने 90 प्रतिशत के लगभग कार्य को अंजाम तक पहुंचा दिया था।

टीम में था जुनून अपनी जेब से पैसे देकर बनवाए शौचालय
गांव बकाना में एक बेबस महिला शौचालय बनवाने में असमर्थ थी, लेकिन वह शौचालय न होने से परेशानी भी झेल रही थी। बेबस महिला की समस्या को देखते गांव स्वच्छता कमेटी की अध्यक्ष कुलदीप कौर ने रक्षा बंधन और भैयादूज पर एकत्र हुए रुपये ही उसे दे दिए थे। (भैया दूज और रक्षा बंधन पर भाइयों की ओर से अपनी बहन को शगुन के रूप में रुपये दिए जाते हैं) जब स्वच्छता कमेटी की प्रधान ने यह बात मीङ्क्षटग में बताई ने सभी ने उसके सहयोग की सराहना की।

वाकया नंबर दो
गांव रोहटी में एक घटना हुई, जिसमें स्वच्छता सैनिक लक्ष्मी देवी पर पूर्व सरपंच ने हमला कर दिया था। उसने स्वच्छता सैनिक के साथ गाली-गलौच भी किया था, जिसकी शिकायत झांसा थाना में भी दी गई थी। इस मामले में राजनीतिक दबाव के चलते शिकायत कोई कार्रवाई न होने पर भी स्वच्छता सैनिक पीछे नहीं हटे। इसी का ही परिणाम रहा कि अभियान दिन प्रति दिन सफल होता गया।

वाकया नंबर तीन
लोगों को खुले में शौच से रोकने के लिए गांवों में स्वच्छता कमेटी गठित की गई थी, इस कमेटी में महिला और पुरुष दोनों को शामिल किया जाता था। यह टीम सुबह चार बजे से अपनी ड्यूटी पर खड़ी होती थी और सांयकाल भी देर रात तक पहरा देती थी। गांव कौलापुर में सुबह चार बजे अंधेरे में कुछ शरारती तत्वों ने हमला कर दिया था। उन्होंने सदस्यों के साथ हाथा-पाई की और गाली-गलौच की। मामला एडीसी के दरबार तक पहुंचा तो समझौता करवाया गया।

लाठी, टार्च और सिटी लेकर देते थे पहरा
इस अभियान में साल 2006 से लगातार जुड़े रहे ब्लॉक कोर्डिनेटर मोहन लाल सैनी ने बताया कि तत्कालीन एडीसी सुमेधा कटारिया ने इस अभियान को गंभीरता से लिया था। उन्होंने सभी गांवों में स्वच्छता कमेटी गठित करवाकर महिलाओं को लाठी, टार्च और सिटी उपलब्ध करवाई थी। यही टीम सुबह ओर शाम को गलियों में सिटी बजाकर ग्रामीणों को खुले में शौच से रोकने के लिए चौकस करती थी।

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