लड़ाई की तो मैडम ने लिख दिया कुश्ती में नाम, अब विदेशों में है इसकी धाक

गांव की मिट्टी में कुश्ती का अभ्यास करते-करते कैथल की बेटी मनीषा विदेशी पहलवानों को धूल चटा रही हैं। शुरुआत जूडो से की। टीचर ने कुश्ती में नाम लिखा दिया।

By Ravi DhawanEdited By: Publish:Sun, 20 Jan 2019 05:31 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jan 2019 03:19 PM (IST)
लड़ाई की तो मैडम ने लिख दिया कुश्ती में नाम, अब विदेशों में है इसकी धाक
लड़ाई की तो मैडम ने लिख दिया कुश्ती में नाम, अब विदेशों में है इसकी धाक

पानीपत/कैथल [सुनील जांगड़ा]। एक मैडम ने कुश्ती के लिए जूडो की खिलाड़ी को पहलवानी के लिए भेज दिया। वह भी प्रतियोगिता से जल्दी जाने के लिए प्रतिद्वंद्वी से भिड़ गई और पल भर में धूल चटा दी। इसके बाद उसका माटी से इतना लगाव हो गया कि अब विदेशी पहलवानों को मात दे रही है। इस बेटी की सफलता की ये कहानी संघर्षों से भरी है। पढि़ए दैनिक जागरण की विस्तृत रिपोर्ट।

गांव की मिट्टी में कुश्ती का अभ्यास करते-करते मनीषा आज विदेशी पहलवानों को धूल चटा रही हैं। कहानी संघर्षों से भरी है। शुरुआत जूडो से की। स्कूल में बातूनी और उछल कूद करने की वजह से टीचर ने कुश्ती में नाम डाल दिया तो अच्छा लगा। बारहवीं में पहुंची तो स्कूल वाले बोले, पहले पढ़ाई करो। कोई सपोर्ट नहीं मिला, लेकिन अभ्यास जारी रखा। समय बदला। कॉलेज गई। एक साल पहले प्रिंसिपल ने कहा कि कुश्ती में भाग्य आजमाओ। फिर क्या था? लगा दी पदकों की झड़ी। चाहती है कि गीता फौगाट की तरह देश का नाम रोशन करे। 

चौकीदार को बेटी पर हुआ गर्व
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) में चौकीदार ईशम सिंह गर्व से कहते हैं कि म्हारी बेटी किसी से कम नहीं है। मनीषा तीन बहनें व तीन भाई हैं। सबसे छोटी होने के कारण सभी उसे खेल के लिए प्रोत्साहित करते हैं। बड़ा भाई मनीष प्राइवेट नौकरी करती है और हर तरीके से मदद करता है।

 

आस्ट्रेलिया की पहलवान को कर दिया था चित
मनीषा ने 58 किलोग्राम भार वर्ग में भूटान में 11 से 13 जनवरी तक हुई पहली साउथ एशियन गेम में गोल्ड मेडल हासिल किया है। आस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ी को 10-3 से मात दी और देश का नाम रोशन किया। छह साल पहले गांव के स्कूल से ही खेलना शुरू किया। शुरुआत की थी जूडो से, लेकिन टीचर ने छह महीने बाद उसका नाम कुश्ती में लिखवा दिया। 

तीन साल खेल से रही दूर मनीषा 
मनीषा ने बताया कि गांव में कुश्ती खेलना शुरू किया था। पढ़ाई के लिए वह शहर के एक स्कूल में आई। दसवीं से 12वीं तक स्कूल वालों ने उसे खेलने से मना कर दिया। बोले की पढ़ाई कर लो बिना अभ्यास खेलने का कोई फायदा नहीं। लगातार तीन साल उसे स्कूल की ओर से स्पोर्ट न मिलने के कारण खेल छोडऩा पड़ा। 

गांव में शुरू कर दिया अभ्यास
इस दौरान गांव में ही थोड़ा बहुत अभ्यास करती थी। एक साल पहले उसे जगदीशपुरा स्थित राजकीय कॉलेज में एडमिशन लिया। कॉलेज के प्रिंसिपल ऋषिपाल बेदी ने हौसला बढ़ाया और दस महीने से वह दोबारा कुश्ती के मैदान में आ गई। इस समय रोहतक में कोच विकास के पास अभ्यास कर रही है। सप्ताह में दो दिन कॉलेज भी आती है और पांच दिन कुश्ती का अभ्यास करती हैं।  

दस महीने में ये हैं उपलब्धियां 
कुश्ती के मैदान में उतरते ही मनीषा ने दिखा दिया है कि वह किसी से कम नहीं है। 18 जुलाई 2018 को जालंधर में हुई नेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में गोल्ड हासिल किया। 9 नवंबर 2018 को हिमाचल प्रदेश में हुई कुश्ती प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल किया। एक जनवरी 2019 को करनाल में हुई दंगल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल किया। मनीषा दो बार खेल महाकुंभ में भी गोल्ड मेडल जीत चुकी है। मनीषा इस साल जून में बैंकाक होने वाली इंटरनेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेंगी।   

ओलंपिक में गोल्ड लाने का सपना 
मनीषा ने बताया कि उसके परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है। उसका सपना है कि ओलंपिक खेलों में भाग लेकर गोल्ड मेडल हासिल करे।

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