आदि शंकराचार्य पर देखी फिल्म, मोक्ष की खोज में निकला नासा का एयरोनॉटिकल इंजीनियर

नासा के एयरोनॉटिकल इंजीनियर अरुण कुमार ने आदि शंकराचार्य पर आधारित संस्कृत फिल्म देखी और मोक्ष की तलाश में निकल पड़े। वह शंकराचार्ज की तरह भारत में पैदल यात्रा पर हैं।

By Edited By: Publish:Tue, 31 Jul 2018 10:32 PM (IST) Updated:Wed, 01 Aug 2018 09:13 PM (IST)
आदि शंकराचार्य पर देखी फिल्म, मोक्ष की खोज में निकला नासा का एयरोनॉटिकल इंजीनियर
आदि शंकराचार्य पर देखी फिल्म, मोक्ष की खोज में निकला नासा का एयरोनॉटिकल इंजीनियर

अंबाला शहर, [अवतार चहल]। आदि शंकराचार्य एयरोनॉटिकल इंजीनियर अरुण कुमार के आदर्श हैं। अरुण ने उनके जीवन पर बनी संस्कृत फिल्म देखी। इसके बाद उनका अध्यात्म की ओर ऐसा झुकाव हुआ कि मोक्ष प्राप्ति के लिए भारत भ्रमण पर निकल पड़े। इसके लिए उन्होंने अमेरिका स्थित कंपनी से अवकाश ले रखा है।

उनकी कंपनी नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) से संबद्ध है। वह रोज 20 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। अब तक तीन हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी कर सोमवार रात अंबाला पहुंचे। यहां सेक्टर -7 स्थित नीलकंठ मंदिर में रात्रि विश्राम किया। मंगलवार सुबह उन्होंने जयपुर के लिए प्रस्थान किया।

छह माह पहले निकले थे घर से

अरुण ने जागरण को बताया कि वह छह महीने पहले घर से निकले थे। अब तक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के मनाली तक की यात्रा कर चुके हैं। वहां से वापस लौटते हुए अंबाला पहुंचे हैं। अरुण को हिंदी काम चलाऊ ही आती है। हां, कन्नड़ और अंग्रेजी पर समान अधिकार है। उन्‍होंने बेंगलुरू से इंजीनियरिग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्हें अमेरिकी कंपनी में जॉब मिल गया। वह बताते हैं कि नौकरी के दौरान ही उन्होंने आदि शंकराचार्य पर बनी संस्कृत फिल्म देखी। इस फिल्म से वह इतने प्रभावित हुए कि शंकराचार्य के समान ही पैदल भारत यात्रा करने की ठान ली।

गुरु की आज्ञा का पालन, नहीं रखते सेलफोन

अरुण कुमार जब घर से निकलने लगे तो उनके गुरु ने कहा कि सेलफोन न लेकर जाओ। इससे तुम्हारा मन इधर-उधर भटकेगा नहीं। तुम्हारा लक्ष्य मोक्ष की खोज है। सिर्फ उसी पर ध्यान केंद्रित रखना। गुरु ने उन्हें यह भी निर्देश दिया कि कोई भोजन करा दे तो कर लेना, पर आर्थिक सहायता मत स्वीकार करना। अरुण बताते हैं कि इसी लिए वह आर्थिक मदद की पेशकश विनम्रता से अस्वीकार कर देते हैं।

मंदिर या रैन बसेरे में कर लेते हैं विश्राम

अरुण ने बताया कि मार्ग में जहां भी रात हो जाती है, वहीं पर मंदिर या रेन बसेरे की तलाश कर उसमें रुक जाते हैं। अंबाला वालों की प्रशंसा करते हुए बोले कि नीलकंठ मंदिर में प्रकाश चंद गुप्ता, पंडित त्रिलोचन, पवन कुमार, रामस्वरुप जैसे सज्जनों ने उन्हें भोजन तो कराया ही, उनके कपड़े धुलवाने की व्यवस्था की।

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