लुधियाना से साइकिल पर निकले प्रवासी, अभी 1700 किमी तय कर पहुंचना है कटिहार

प्रवासी श्रमिकों का पलायन लगातार जारी है। लुधियाना से कुछ श्रमिक साइकिल से बिहार के कटिहार तक जाने के लिए निकले हैं। अभी महज सौ किमी का सफर पूरा हुआ जबकि 1600 का बाकी है।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Mon, 18 May 2020 04:34 PM (IST) Updated:Mon, 18 May 2020 04:34 PM (IST)
लुधियाना से साइकिल पर निकले प्रवासी, अभी 1700 किमी तय कर पहुंचना है कटिहार
लुधियाना से साइकिल पर निकले प्रवासी, अभी 1700 किमी तय कर पहुंचना है कटिहार

पानीपत/अंबाला, जेएनएन। कामगारों का साइकिलों पर सवार होकर घर लौटना जारी है। कई दिनों बाद भी लॉकडाउन जारी रहने के कारण कोई कामगार पैदल तो कोई साइकिल या अन्य साधन से घर की ओर चले जा रहे हंै। प्रवासी कामगारों को गृह राज्य पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर का सफर करना पड़ रहा है। इस दौरान कभी हाईवे तो कभी कच्चे रास्ते, तो कभी नदी तक पार करनी पड़ रही है।

दो दिन पहले निकले थे

कटिहार के रहने वाले मंगेश कुमार मंडल ने बताया कि वह लुधियाना से साइकिल पर सवार हुआ था। इसके लिए पिछले दो दिन से चले हुए हैं। उन्हें कभी जीटी रोड तो कभी खेतों में निकलना पड़ता है। लुधियाना से अंबाला तक उन्होंने करीबन सवा सौ किलोमीटर का सफर तय कर दिया है।

ग्रामीणों की मिल रही मदद

प्रहलाद मंडल ने बताया कि अब अंबाला में आकर जीटी रोड पर चढ़ना पड़ा। उन्हें रास्ते में अपने साइकिलों की मरम्मत करनी पड़ती है। इसलिए रास्ते में रुकते हैं। गांवों से गुजरते हैं तो रास्ते में स्थानीय ग्रामीण उन्हें खाना खिला देते हैं और साथ लेकर चलने के लिए भी दे देते हैं।

गर्मी ने बढ़ाई परेशानी

ओम कुमार मंडल ने बताया कि उन्हें बिहार के कटिहार जाना है, जो यहां से करीबन 1700 किलोमीटर है। मौसम में भी गर्मी बढ़ने लगी है। इस कारण धूप में साइकिल चलाना भी मुश्किल हो रहा है। रास्ते में कभी पुलिस का नाका तो कभी कोई बाधा। इससे उन्हें घर जाना भारी पड़ रहा है।

रोजी रोटी का संकट, बैग में गृहस्थी समेटकर चले अपने गांव 

लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए चौतरफा आफत लेकर आया, काम धंधे बंद होने से उनके पास रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। अब उनकी मजबूरी का फायदा उठाने से भी कुछ लोग चूक नहीं रहे हैं। पंजाब और हरियाणा से मजदूर अपने घर वापस लौटना चाहते हैं और उनकी इसी बेबसी का फायदा सबसे अधिक पुलिस उठा रही है। कारण यह कि वह किसी तरह पैदल सौ सौ किमी चलकर हरियाणा के जिलों में प्रवेश करते हैं, पुलिस गृह मंत्रालय के आदेश का हवाला देकर कोविड केयर सेंटर पहुंचाने के नाम पर फिर पंजाब के बार्डर पर छोड़ दे रही है। ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूर जो रविवार को अंबाला पहुंच चुके थे, और उन्हें पुलिस की वैन पर भरकर फिर पंजाब की सरहद पर पहुंचा दिया गया। 

जंडली पुल से पुलिस वैन में ठूंसकर पहुंचा दिया बार्डर

पंजाब के लुधियाना, पटियाला सहित अन्य स्थान पर काम करने वाले मजदूरों ने किसी तरह करीब एक सौ किमी का पैदल सफर तय किया। करीब तीस की संख्या में प्रवासी श्रमिक जंडली पुल के निकट पहुंचे ही थे कि वहां पुलिस की दो वैन पहुंची और पीछे से मुलाजिम भी पहुंचे। डंडे दिखाते हुए सभी प्रवासी श्रमिकों को पुलिस वैन में सवार होने का कहा। इस पर जब अशोक राम, रामराज राम, श्रीकांत, राजकुमार, विपिन, विशाल सहित अन्य को पुलिस वैन में सवार करके पंजाब बार्डर पर छोड़ दिया। प्रवासी श्रमिकों ने फोन पर बताया कि हरियाणा की पुलिस ने उन्हें दोबारा राज्य की सीमा में प्रवेश न करने की हिदायत दी। 

गठरी में समेटी गृहस्थी

बिहार के बोधगया वासी संजीत कुमार अपने पूरे परिवार समेत पटियाला में रोजी रोजगार कर रहे थे। लॉकडाउन में सारा कारोबार चौपट हो गया, एक एक पाई जोड़कर जुटाई गई गृहस्थी को औने पौने दामों पर बेंचकर अपने गांव जाना ही एकमात्र विकल्प सूझा। इसके बाद वह शनिवार को पटियाला से अपने परिवार के साथ गांव जाने के लिए निकल पड़े। किसी तरह वह परिवार के साथ पुलिस की नजरों से बचते बचाते अंबाला में पहुंचे। हाईवे पर पुलिस की चौकसी से बचने के लिए वह अपने परिवार के साथ छावनी के सदर बाजार होते हुए हाईवे की तरफ जा रहे थे। बताया कि अब तो यह स्थिति भगवान किसी और को न दिखाए। बस किसी तरह अपने घर परिवार के साथ पहुंच जाए, यही भगवान से प्रार्थना है। 

उधारी लेकर बिहार के लिए निकला 

लॉकडाउन के कई सप्ताह के बाद बिहार के दिलकुश कुमार की आंखें घर लौटने की उम्मीद से चमक उठी। 5 हजार रुपये उधर लेकर एवं अपना बोरिया बिस्तर बांध कर लुधियाना के रेलवे स्टेशन पहुंच गया था, लेकिन उसका सपना सपना ही रह गया। बिहार का 28 वर्षीय दिलकुश कुमार ने अपनी जमापूंजी पि_ू बैग में समेटकर पैदल ही अपने घर के निकल पड़े। किसी तरह पंजाब के बार्डर से बच बचाकर अंबाला की सीमा में प्रवेश किया और पैदल चलने का सिलसिला शुरू किया।

नाम था लिस्ट से गायब

एक कपड़ा फैक्टरी में काम करने वाले 22 वर्षीय रामतेज ने कहा कि उसका भी नाम सूची में नहीं है। फंसे हुए लोगों को अपने गृह राज्य पहुंचाने से जुड़े ऑनलाइन फार्म हमने भरा था। यह सफलतापूर्वक अपलोड हो गया था लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला। मैंने सोचा कि मैं ट्रेन में चढ़ पाऊंगा लेकिन पुलिस ने कहा कि चूंकि मुझे मैसेज नहीं आया तो मैं यात्रा नहीं कर सकता मजबूरी में पैदल सफर करना पड़ रहा है।

गृह मंत्रालय के आदेश

- कोई भी प्रवासी मजदूर रोड से अपने राज्यों की ओर न जाए।

- स्थानीय प्रशासन मजदूर को अपने जिले में ही रोके।

- मजदूरों को शेल्टर हाउस में रखकर खान-पान का प्रबंध करें।

- हाइवे पर पैदल या साइकिल से न चलने को लेकर जागरूक किया जाए।

- बसों या ट्रेन से उनके गृह राज्य में भेजा जाए।

- जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस मजदूरों का हाइवे पर न चलना सुनिश्चित करें।

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