हरियाणा रोडवेज का बुरा हाल, तीन साल में 15 दिन हड़ताल और बढ़ता गया घाटा

हरियाणा रोडवेज के कर्मचारियों की बार-बार की हड़ताल के कारण सरकार परेशान है। रोडवेज का घाटा लगातार बढ़ रहा है। पिछले तीन साल में रोडवेज कर्मी 15 दिन हड़ताल पर रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Wed, 05 Sep 2018 01:02 PM (IST) Updated:Wed, 05 Sep 2018 01:03 PM (IST)
हरियाणा रोडवेज का बुरा हाल, तीन साल में 15 दिन हड़ताल और बढ़ता गया घाटा
हरियाणा रोडवेज का बुरा हाल, तीन साल में 15 दिन हड़ताल और बढ़ता गया घाटा

जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा रोडवेज कर्मचारियों की आए दिन की हड़ताल परिवहन विभाग पर भारी पड़ रही है।  हालात यह है कि पिछले तीन साल में विभिन्न मुद्दों को लेकर रोडवेज कर्मचारियों ने कुल 15 दिन बसों का चक्का जाम किया है। इससे हर दिन करीब साढ़े बारह लाख यात्रियों को मुश्किलें झेलनी पड़ीं। वहीं रोडवेज को भी करोड़ों का घाटा हुआ। इस साल अभी तक के आंकड़ों के अनुसार विभाग 275 करोड़ के घाटे में चल रहा है।

हर दिन 30 लाख यात्री करते सफर, 4083 रोडवेज और सहकारी समितियों की 900 बसें पड़ती कम

परिवहन विभाग के बेड़े में कुल 4083 बसें हैं, जबकि 900 बसें सहकारी परिवहन समितियों की दौड़ रही हैं। प्रदेश में रोजाना करीब 30 लाख लोग सफर करते हैं। बसों की कमी से रोजाना साढ़े 17 लाख से अधिक लोगों को अवैध मैक्सी कैब में यात्रा करनी पड़ती है। इसीलिए परिवहन विभाग ने किलोमीटर स्कीम के तहत 720 बसें निजी आपरेटरों से चलवाने का फैसला किया है, जिसका परिचालक और परमिट सरकारी होगा।

हरियाणा सरकार की मुश्किल यह है कि पहले कर्मचारियों ने सहकारी परिवहन समितियों को नए रूट देने पर लंबे समय तक बवाल काटा, वहीं अब अनुबंध आधार पर बसें चलवाने के विरोध में अड़े हैं। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक यूनियन पदाधिकारियों को जब भी निर्धारित ड्यूटी पर जाने के लिए कहा जाता है तो वे चक्का जाम करा देते हैं। व्यवस्था सुधारने के लिए बायोमीट्रिक हाजिरी का सिस्टम भी यूनियनों की जिद से कहीं लागू नहीं हो सका।

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यह मिलता है रोडवेज कर्मचारियों को

हरियाणा रोडवेज के चालकों और परिचालकों को नौकरी की शुरुआत में करीब 30 हजार रुपये वेतन दिया जाता है। यह रिटायरमेंट तक अमूमन 70 हजार रुपये तक पहुंच जाता है। आठ घंटे की ड्यूटी के बाद वेतन के दोगुना की दर से ओवरटाइम भी मिलता है। इसके अलावा सभी कर्मचारियों को सात फीसद की दर से महंगाई भत्ता, वर्दी, जूते, बच्चों की पढ़ाई और चिकित्सा भत्ते पर सरकारी खजाने से मोटी रकम खर्च होती है।

रोडवेज का पांच सालों में घाटा

साल                          घाटा (करोड़ रुपये)

2014-15                    482.48

2015-16                    486.76

2016-17                    597.79

2017-18                    676.36

2018-19(जुलाई तक)   275.24

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हड़ताल से पहले ही चक्का जाम

ज्वाइंट एक्शन कमेटी के पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार हड़ताल मंगलवार रात बारह बजे से होनी थी, लेकिन चंडीगढ़-रेवाड़ी सहित कई स्थानों पर दोपहर बाद ही कर्मचारी नेताओं ने बसों का संचालन बंद कर दिया। बाद में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में काफी मशक्कत के बाद बसों को रवाना किया गया। बुधवार को हड़ताल के दौरान व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी डिपुओं पर पुलिस की व्यापक तैनाती की गई है। सुबह तो हड़ताल का असर दिखा, लेकिन बाद में प्रशासन की कार्रवाई आैर सख्‍ती के बाद अधिकतर स्‍थानों पर बसें चलने लगीं। कई सालों में ऐसा पहली बार हुआ कि कर्मचारी यूनियन की घोषणा के बाद भी बसें चली हैं।

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व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए हड़ताल

सरकार का काम कर्मचारियों के हित के साथ जनता को सुविधा देना भी है, लेकिन कर्मचारी नेता व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए हड़ताल करते हैं। निजी बसों की किलोमीटर स्कीम से लोगों को बेहतर परिवहन सुविधा मिलेगी, लेकिन रोडवेज कर्मचारी यूनियनें बिना समझे इसका विरोध कर रही हैं। परिवहन विभाग इस बार नरमी नहीं दिखाएगा। हड़ताल में शामिल कर्मचारियों पर एस्मा के तहत कार्रवाई होगी।

                                                                    - धनपत सिंह, अतिरिक्त मुख्य सचिव, परिवहन विभाग।

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