सोमपुष्य साध्य व सर्वार्थ सिद्धि योग में अहोई अष्टमी का व्रत कल

इस बार अहोई अष्टमी व्रत के दिन सोमपुष्य साध्य और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। इन दोनों ही योग में कोई भी कार्य करने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरूरत नहीं है। दोनों ही योग अपने आप में शुभ हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 20 Oct 2019 09:10 AM (IST) Updated:Mon, 21 Oct 2019 06:21 AM (IST)
सोमपुष्य साध्य व सर्वार्थ सिद्धि योग में अहोई अष्टमी का व्रत कल
सोमपुष्य साध्य व सर्वार्थ सिद्धि योग में अहोई अष्टमी का व्रत कल

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र: इस बार अहोई अष्टमी व्रत के दिन सोमपुष्य साध्य और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। इन दोनों ही योग में कोई भी कार्य करने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरूरत नहीं है। दोनों ही योग अपने आप में शुभ हैं।

गायत्री ज्योतिष अनुसंधान के संचालक पंडित रामराज कौशिक ने बताया की कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को संतान के लिए रखा जाता है। सोमवार 21 अक्टूबर को यह व्रत रखा जाएगा। इस दिन संतान के सुख और आयु वृद्धि की कामना कर माताएं व्रत रखती हैं। इस बार यह व्रत बड़े ही शुभ संयोग में आ रहा है। इस व्रत में मां पार्वती की पूजा की जाती है। माता पार्वती भी संतान की रक्षा करने वाली हैं। इस व्रत को शाम के समय पूजा करके तारों की छांव में खोला जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन से दीपावली के उत्सव का आरंभ हो जाता है। महिलाएं चांदी की अहोई बनाकर उसकी पूजा करती हैं। इसमें चांदी के मनके डाले जाते हैं और हर व्रत में इनकी एक संख्या बढ़ाते जाते हैं। पूजा के बाद महिलाएं इस माला को पहनती हैं। इस बार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है। चंद्रमा-पुष्य नक्षत्र योग साध्य सर्वार्थ सिद्धि योग सायं पांच बजकर 33 मिनट से अगले दिन छह बजकर 22 मिनट तक अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहेगा। जो संतान के लिए अति उत्तम है। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई व्रत मनाया जाता है। गेरू से या चित्रांकन द्वारा कपड़े पर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। सायं काल या कहें प्रदोष काल में उसकी पूजा की जाती है। तारों के उदय होने का समय : सायं छह बजकर दस मिनट

पूजा मुहूर्त : शाम पांच बजकर 46 मिनट से सात बजकर दो मिनट तक

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