सत चित आनंद ही है परमात्मा का साक्षात स्वरूप : आचार्य संतोष
मां कात्यायनी उपासक स्व. पुजारी पंडित फूलचंद्र जी की 50वीं पुण्यतिथि पर कलायत के श्री कपिल मुनि धाम में भागवताचार्य संतोष कृष्ण जी के परम सानिध्य में श्रीमद्भागवत कथा की शुरुआत हुई।
संवाद सहयोगी, कलायत : मां कात्यायनी उपासक स्व. पुजारी पंडित फूलचंद्र जी की 50वीं पुण्यतिथि पर कलायत के श्री कपिल मुनि धाम में भागवताचार्य संतोष कृष्ण जी के परम सानिध्य में श्रीमद्भागवत कथा की शुरुआत हुई। कथा की शुरूआत से पहले श्रीमद्भागवत महापुराण की कलश यात्रा निकाली गई जिसमें सैकड़ों महिलाओं ने हिस्सा लिया। कथा व्यास आचार्य संतोष ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना कलियुग के जीवों के उद्धार के लिए ही की गई है। इस कथा के सुनने मात्र से कलियुग में जीव के समस्त दोष दूर हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्र कहता है कि कलियुग में भगवान को पाने के लिए वन जाने की आवश्यकता नहीं। श्रीमद्भागवत के सुनने या फिर करने से भागवत व्यवहार व परमार्थ का समन्वय होता है तथा पात्र को वही आनंद घर में मिल जाता है जो योगीजन वनों में तपस्या के द्वारा प्राप्त करते हैं। गृहस्थ आश्रम में भी योगी समाधि जैसा आनंद मिले इसी लिए तो भगवान ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की है। उन्होंने कहा कि वैसे तो परमात्मा विराट है पर श्रीमद्भागवत में प्रभु के तीन रूप माने जाते हैं। सत प्रकट रूप से सर्वत्र है, चित मौन तथा आनंद स्वरूप अप्रकट रूप में जाना जाता है। इन तीनों को मिला कर ही भगवान के साक्षात दर्शन होते हैं। सत, चित तथा आनंद की अनुभूति ही परमात्मा की अनुभूति होती है।