वोट मांगने आएं नेता तो उठाएं गांव की समस्याएं

हड़प्पा कालीन इतिहास समेटे गांव बालू में तीन पंचायत हैं। दस हजार से भी ज्यादा मतदाता इस गांव में हैं। प्रदेश की हो या केंद्र की सरकार सभी को बनाने में इस गांव के मतदाताओं का विशेष योगदान रहता है। गांव से सात अन्य गांव भी निकले हैं जिन्हें बालू की शाखा के रूप में जाना जाता है। इनमें गुलियाना तारागढ़ नीमवाला किच्छाना जुलानीखेड़ा सहारण बजीर नगर शामिल हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 17 Apr 2019 10:59 AM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2019 06:36 AM (IST)
वोट मांगने आएं नेता तो  उठाएं गांव की समस्याएं
वोट मांगने आएं नेता तो उठाएं गांव की समस्याएं

सुरेंद्र सैनी, कैथल : हड़प्पा कालीन इतिहास समेटे गांव बालू में तीन पंचायत हैं। दस हजार से भी ज्यादा मतदाता इस गांव में हैं। प्रदेश की हो या केंद्र की सरकार सभी को बनाने में इस गांव के मतदाताओं का विशेष योगदान रहता है। गांव से सात अन्य गांव भी निकले हैं, जिन्हें बालू की शाखा के रूप में जाना जाता है। इनमें गुलियाना, तारागढ़, नीमवाला, किच्छाना, जुलानीखेड़ा, सहारण, बजीर नगर शामिल हैं। गांव के लोग कृषि पर निर्भर हैं, ज्यादा आबादी कृषि व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं।

इस समय लोकसभा चुनाव चल रहे हैं तो गांव में चुनावी चर्चाएं करते हुए ग्रामीण नजर आते हैं। चाहे गांव की चौपाल हो या गेहूं के खेत हर जगह लोग चुनाव के बारे में चर्चा करते हुए दिखाई देते हैं। गांव की रापड़यिा पट्टी की चौपाल में बैठे युवा व बुजुर्ग ताश की बाजी लगा रहे थे, जैसे ही चुनावी चर्चा शुरू हुए तो बातचीत में कूद पड़े। बोले वोट मांगने के लिए तो अब नेता गांव में पहुंच रहे हैं, लेकिन जब समस्याओं को लेकर ग्रामीण जाते हैं तो कोई पूछता नहीं है।

वीरेंद्र व रमेश ने कहा कि हर चुनाव में गांव के मतदाताओं का अहम रोल है, लेकिन नेता जीतने के बाद गांव की सुध नहीं लेते। सुरेश व जसबीर ने कहा सुबह व शाम को हर समय चुनाव की चर्चाएं हैं, लेकिन माहौल सभी पाíटयों का बराबर ही दिख रहा है। भाजपा को छोड़कर दूसरी पाíटयों ने अभी तक उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। कुछ मतदाता तो पार्टी कम उम्मीदवार की छवि को देखकर अपनी वोट देते हैं। गुरदेव व राजीव ने बात काटते हुए कहा कि जो भी नेता गांव में वोट मांगने के लिए आए उसके सामने गांव की समस्याओं को उठाना चाहिए।

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पानी की निकासी बड़ा मुद्दा

ग्रामीण नरेंद्र ने जिक्र करते हुए कहा कि कई सालों से पानी की निकासी गांव में सबसे बड़ा मुद्दा हैं। गांव में तीन पंचायत हैं, तीनों पट्टियों में जो तालाब हैं, वे पूरी तरह से ओवरफ्लो हो चुके हैं। इस कारण पानी गलियों में बहता रहता है। हर समय पानी जमा होने के कारण गलियां टूट रही हैं। जब नई बनाई जाती हैं तो गली को मिट्टी डालकर ऊपर उठा दिया जाता है। इस कारण मकान नीचे पड़ जाते हैं। ग्रामीणों को निकासी के कारण काफी दिक्कत आ रही है, इसे दूर किया जाना चाहिए।

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चिकित्सकों के रिक्त पद

होने से आ रही परेशानी

सुरेश कुमार ने कहा कि कहने को तो गांव में सिविल अस्पताल बनाया हुआ है, लेकिन यहां चिकित्सक और स्टाफ की कमी से इलाज के लिए आने वाले लोगों को दिक्कत आ रही है। रिक्त पदों को भरने के लिए ग्रामीणों को हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की हुई है। ग्रामीणों की मांग है कि चिकित्सकों के रिक्त पड़े पदों को भरा जाए, ताकि ग्रामीणों को कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।

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शिक्षकों के पद खाली होने

से पढ़ाई हो रही प्रभावित

ग्रामीण राकेश ने बताया कि गांव में शिक्षकों के पद भी रिक्त पड़े हुए हैं, लेकिन सरकार व शिक्षा विभाग के अधिकारियों कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं। रिक्त पद होने के कारण विद्यार्थी स्कूल छोड़ने को मजबूर हैं। राजनीतिक दलों को गांव की इन समस्याओं को दूर करना चाहिए।

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कागजों में सिमटकर रह

गया टीले का जीर्णोद्धार

ग्रामीण बताते हैं कि हड़प्पा कालीन इतिहास समेटे टीले के संरक्षण की योजना कागजों में सिमटकर रह गई है। जिस ऐतिहासिक धरोहर को 24 एकड़ का बड़ा रकबा बताया जा रहा था आज वह सिकुड़ कर जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा रह गया है। ग्रामीण बताते हैं कि प्रशासन व पुरातत्व विभाग की ओर से इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस प्राचीन धरोहर को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाना चाहिए यहां से खुदाई के दौरान प्राचीन अवशेष मिल चुके हैं, जिन्हें कुरुक्षेत्र स्थित पुरातत्व विभाग के संरक्षण में एक संग्रहालय में रखा गया है।

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