कैंसर ट्रेन के जरिए पूरी दुनिया देखेगी मासूमों के इलाज की दुश्‍वारियां, घुटन भरा है ये सफर

इस ट्रेन में डबवाली से 450 मासूम बच्‍चे राजस्‍थान के बीकानेर जाते हैं । ट्रेन का नाम ही कैंसर ट्रेन पड़ गया। दूरी ज्‍यादा है सरकारी मदद नहीं मिलती। अब इस पर फिल्‍म बनने जा रही है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Tue, 04 Feb 2020 06:48 PM (IST) Updated:Wed, 05 Feb 2020 09:09 AM (IST)
कैंसर ट्रेन के जरिए पूरी दुनिया देखेगी मासूमों के इलाज की दुश्‍वारियां, घुटन भरा है ये सफर
कैंसर ट्रेन के जरिए पूरी दुनिया देखेगी मासूमों के इलाज की दुश्‍वारियां, घुटन भरा है ये सफर

डबवाली [डीडी गोयल] एक ट्रेन जिसके हर डिब्‍बे में बस कैंसर पीडि़त मरीज। मरीजों में भी कोई और नहीं बल्कि 450 मासूम बच्‍चे। ट्रेन का नाम ही कैंसर ट्रेन पड़ गया। मगर आप सोच रहे होंगे कि पूरी ट्रेन में सिर्फ कैंसर मरीज ही क्‍यों। तो आपके बताते हैं कि कैंसर पीडि़तो का इस ट्रेन में सफर करने का मकसद इलाज करवाने के लिए जाना हाेता है। एक संस्‍था ने इसका जिम्‍मा उठाया है। मगर सरकार की दुश्‍वारी का आलम देखिए कि इन नन्‍हें मुन्‍नों को इलाज के लिए मशक्‍कत कर राजस्‍थान के बीकानेर स्थित आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर ट्रस्ट एवं रिसर्च इंस्टीट्यूट में इलाज करवाने जाना हाेता है। दूरी कम नहीं और तकलीफें भी। इसी तकलीफ को विदेशी मीडिया ने करीब से देखा और समझा तो एक फिल्‍म बनाने की सोची। बस अब इस ट्रेन और इसमें सफर करने वालों पर आधारित एक फिल्‍म जल्‍द ही रिलीज होने वाली है।

जिसमें मुख्‍य किरदार में एक मासूम बच्‍ची है। इस 10 वर्षीय बेटी को ब्लड कैंसर है जिसे सबसे खतरनाक कैंसर माना गया है। हर सप्ताह बेटी डबवाली रेलवे स्टेशन से रात 10 बजे चलने वाली अबोहर-जोधपुर पैसेंजर ट्रेन में सवार होती है, बीकानेर से इलाज लेकर अगले दिन सुबह करीब 4 बजे वापस आ जाती है। कैंसर ट्रेन में सफर कर रही उपरोक्त कैंसर पीडि़ता के साथ-साथ अन्य पीडि़तों का दर्द अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाया जाएगा। यूरोप के साथ-साथ दक्षिणी-पूर्वी एशिया में कार्यरत स्टूडियो बर्थ प्लेस की टीम ने कैंसर पीडि़ता बेटी के इलाज में आ रही परेशानियों को फोकस करते हुए वीडियो तैयार किया है। जिसे वर्ल्‍ड वाइड रिलीज किया जाएगा।

जून 2019 में सामने आया था मामला

जून 2019 में सांवतखेड़ा गांव के पूर्व सरपंच रणजीत सिंह तथा अध्यापक जगपाल सिंह ने 10 वर्षीय बेटी की मदद के लिए गुहार लगाई थी। जिसके बाद डा. विवेक करीर तथा संस्था अपने ने उपचार करवाने बेटी को बीकानेर भेजा था। तब से उसका उपचार चल रहा है। किराए के अतिरिक्त दवाइयों का पूरा खर्च संस्था अपने उठा रही है। उपचार कर रहे कैंसर रोग विशेषज्ञ पंकज टांटिया का कहना है कि अगर डबवाली के सरकारी अस्पताल या किसी अन्य जगह पर इसे थैरेपी मिल जाए तो यह छह माह में ठीक हो सकती है।

विश्‍वभर में गूंजेगा कैंसर पीडि़तों का मुद्दा

कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. पंकज टांटियां ने बताया कि स्टूडियो बर्थ प्लेस के जरिए डबवाली तथा उससे सटे मालवा जोन के कैंसर पीडि़तों का मुद्दा विश्वभर में गूंजेगा। उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पीडि़तों की मदद के लिए आगे आएगा। बहुत से मरीज ऐसे हैं, जिनके पास कमाई का साधन नहीं है। इसलिए वे उपचार बीच में छोड़ देते हैं। जबकि इलाज संभव होता है। आर्थिक सहायता मिलने से ऐसे लोग ठीक होकर समाज की मुख्यधारा में लौट आएंगे। सरकार को चाहिए कि यहां मरीज ज्यादा हैं, वहां या उसके निकट क्लीनिक बनाए ताकि उन मरीजों को थैरेपी या दवा लेने के लिए लंबी दूरी तय करके बीकानेर न आना पड़े।

पीडि़तों का दर्द फिल्म के जरिए होगा बयां

डबवाली के डा. विवेक करीर ने कहा कि जून 2019 में टीम अपने के सामने कैंसर पीडि़त बेटी का मामला आया था। रणजीत सिंह सांवतखेड़ा, जगपाल सिंह मास्टर की मदद से बच्ची को अस्पताल में ले जाया गया था। ब्लड कैंसर से जूझ रही बेटी पर फोकस करते हुए हॉलैंड के जोरिक डोजी तथा मलेशिया के सीन लिन की टीम कैंसर ट्रेन के जरिए पीडि़तों का दर्द फिल्म के जरिए बयां करेगी। पिछले दिनों टीम डबवाली आई थी। डबवाली के एक गांव में रहने वाली पीडि़ता के घर जाकर हालात देखे थे। उम्मीद है कि 4 फरवरी को फिल्म वर्ल्‍ड वाइड रिलीज होगी।

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