ग्लैंडर्स फ्री कंपार्टमेंट में शामिल होने को कमेटी से लेनी होगी एनओसी, एनआरसीई ने बनाए नियम

आर्मी रेसकोर्स या दूसरे बड़ी एजेंसियों को घोड़ों की मूवमेंट के लिए लेनी होगी एनओसी। पशुपालन मंत्रालय ने राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के निदेशक को बनाया है कमेटी का चेयरमैन

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sat, 07 Dec 2019 01:41 PM (IST) Updated:Sat, 07 Dec 2019 01:41 PM (IST)
ग्लैंडर्स फ्री कंपार्टमेंट में शामिल होने को कमेटी से लेनी होगी एनओसी, एनआरसीई ने बनाए नियम
ग्लैंडर्स फ्री कंपार्टमेंट में शामिल होने को कमेटी से लेनी होगी एनओसी, एनआरसीई ने बनाए नियम

जेएनएन, हिसार : घोड़ों में जानलेवा ग्लैंडर्स नामक बीमारी के पिछले दिनों कई केस सामने आए थे। इसके कारण दिल्ली में रेसकोर्स, पोलो क्लब और आर्मी आदि के घोड़ों की आवाजाही रोक दी गई थी। इससे बीमारी न होने पर भी आर्मी आदि के घोड़ों को कई दिनों तक बंद ही रखा गया। इस समस्या को देखते हुए केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय ने राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के साथ मिलकर रिवाइज पॉलिसी बनाई है। इस पॉलिसी को बनाने के लिए शुक्रवार को राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में निदेशक डा. बीएन त्रिपाठी की अध्यक्षता में कमेटी ने पहली बैठक ली। इसमें पशुपालन मंत्रालय, सेना मुख्यालय व दिल्ली और बागपत से आए अधिकारियों ने भाग लिया। रिवाइज पॉलिसी के अनुसार अब अगर क्षेत्र ग्लैंडर्स नोटिफाई किया हुआ है तो आर्मी, रेस क्लब या दूसरे संस्थानों के घोड़ों को एनओसी दी जा सकेगी। मगर एनओसी के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं, उन्हें पूरा करना अनिवार्य होगा। इस बैठक में तय किए गए नियम केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय को ड्राफ्ट बनाकर भेजे जा रहे हैं। इसके बाद मंत्रालय अपनी मुहर लगाकर नोटिफिकेशन देशभर के लिए जारी कर देगा।

इस प्रक्रिया के तहत करना होगा आवेदन

ग्लैंडर्स ग्रसित क्षेत्र अगर घोषित किया गया है और वहां आर्मी या दूसरे संस्थानों के घोड़े फंसे हुए हैं तो इन संस्थानों के अधिकारियों को इस कमेटी को आवेदन करना होगा। आवेदन में दस्तावेज लगाने होंगे। कमेटी दस्तावेजों में देखेगी कि नियम पूरे किए हैं या नहीं इसके बाद इस कमेटी में शामिल अधिकारी मौके पर जाकर निरीक्षण भी कर सकते हैं। तब जाकर एनओसी दी जाएगी। एनओसी मिलने के बाद घोड़ों की मूवमेंट कराई जा सकती है। अगर किसी कारण से किसी भी घोड़े में ग्लैंडर्स बीमारी आती है तो उस इस्टेब्लिशमेंट को ग्लैंडर्स फ्री कंपार्टमेंट से तत्काल बाहर भी किया जा सकती है। 

इन नियमों को करना होगा पूरा

इन दस्तावेजों में बताना होगा कि उनके यहां घोड़ों के स्वास्थ्य और ग्लैंडर्स का तीन साल परीक्षण का रिकॉर्ड होता हो, घोड़ों में कम से कम तीन वर्ष से 10 वर्ष तक ग्लैंडर्स बीमारी न आई हो जैसी जानकारियां, पशुओं का डाटा, पशुओं की ब्रीड उनके माता-पिता, कब कहां गए, जानवर के स्वास्थ्य का रिकार्ड, वैक्सीन का रिकार्ड, मूवमेंट की पूरी जानकारी, आवाजाही में व्हीकल का प्रयोग उसे जीवाणु मुक्त किया या नहीं जैसे दस्तावेजों में देनी होगी। इसके साथ ही घोड़ों के फॉर्म में पशु चिकित्सक की निगरानी में सभी कार्य होना चाहिए। यह आवेदन मंत्रालय द्वारा गठित कमेटी के पास जाएंगे। यह नियम अगर फॉलो किए जाते हैं तो ग्लैंडर्स फ्री कंपार्टमेंट में इन्हें शामिल किया जा सकेगा।

मंत्रालय द्वारा गठित कमेटी के तहत ग्लैंडर्स फ्री कंपार्टमेंट बनाने के लिए नियम बना लिए हैं। इस ड्राफ्ट को केन्द्रीय पशु पालन मंत्रालय को मंजूरी के लिए भेज रहे हैं। इसके तहत आर्मी, पोलो क्लब जैसी घोड़ों को रखने वाले बड़े संस्थानों को कुछ नियमों के तहत आवेदन पर एनओसी दी जा सकेगी।

-डा. बीएन त्रिपाठी, निदेशक, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र।

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