Rohtak IIM का शोध, हाई और लो फ्लो थेरेपी से अस्‍पतालों में बच सकती है 20 फीसद आक्सीजन

रोहतक आइआइएम ने हरियाणा के अस्‍पतालों में आक्‍सीजन के इस्‍तेमाल पर शोध किया है। इसमें खुलासा हुआ कि अस्‍पतालों में आक्‍सीजन के इस्‍तेमाल के तरीके में कमी थी। इसके साथ ही कोराेना मरीजों के इलाज में हाई और लो फ्लो थेरेपी के इस्‍तेमाल से 20 फीसद आक्‍सीजन बचेगी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 07:05 AM (IST)
Rohtak IIM का शोध,  हाई और लो फ्लो थेरेपी से अस्‍पतालों में बच सकती है 20 फीसद आक्सीजन
हाई एवं लो फलो थेरेपी से अस्‍पतालों में आक्‍सीजन की बचत होगी। (फाइल फोटो)

रोहतक, [ओपी वशिष्ठ]। कोविड-19 की दूसरी लहर में मेडिकल आक्सीजन की कमी से हालात काफी बिगड़ गए थे। अस्पतालों में आक्सीजन की कमी से उम्मीद से ज्यादा जानें गई। भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) रोहतक ने प्रदेश के कई अस्पतालों में आक्सीजन का आडिट किया है। आइआइएम ने इलाज के तरीके को लेकर भी शाेध किया गया। शोध में कहा गया है कि यदि कोरोना मरीजों के इलाज में हाई फ्लो और लो फ्लो थेरेपी का इस्‍तेमाल किया जाए तो 20 फीसद तक आक्‍सीजन की बचत हाे सकती है।

आइआइएम रोहतक के प्रोफेसर और डाक्टरल स्टूडेंट्स ने अस्पतालों में आक्सीजन सप्लाई का आडिट किया

शोश में अस्पतालों में आक्सीजन की डिमांड-सप्लाई के बीच अंतर की गणना की गई। इसमें सामने आया कि आक्सीजन उपयोग के लिए अस्पतालों के पास प्रभावी एसओपी (स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर) नहीं थी, नतीजा यह रहा कि आपात समय में आक्सीजन की काफी वेस्टेज भी हुई। आडिट में यह भी बताया गया कि अस्पतालों में यदि हाई फ्लो और लो फ्लो थेरेपी का सही इस्तेमाल किया जाता तो 20 फीसद तक आक्सीजन बचाई जा सकती थी। यह आडिट और शोध आइआइएम के निदेशक प्रो. धीरज शर्मा, प्राध्यापिका डा. रीमा मोंडल व प्राध्यापक अश्वनी कुमार के अलावा तीन शोधार्थियों ने किया।

आक्सीजन की डिमांड-सप्लाई की गणना के लिए किया गया आडिट, वेस्टेज की बात आई सामने

आइआइएम रोहतक की छह सदस्यीय टीम ने आक्सीजन आडिट किया है। तीन प्रोफेसर और तीन डाक्टर स्टूडेंट्स टीम का हिस्सा रहे। 401 मरीजों के तीमारदारों से टीम ने अनुभव जाने। करीब 18 फीसद मरीज ग्रामीण क्षेत्र से रहे। शहरी क्षेत्रों से करीब 27 फीसद मरीज अस्पतालों में भय की वजह से पहुंचे।

जिन स्थानों पर आक्सीजन सप्लाई के लिए पाइपलाइन की सुविधा नहीं थी वहां सिलेंडर इस्तेमाल किए जाने से वेस्टेज हुई। आक्सीजन आडिट की टीम के अनुसार अतिरिक्त पाइपलाइन लगाकर आक्सीजन आपूर्ति करने से वेस्टेज को कम किया जा सकता था। एक नियमित सिलेंडर से करीब 30 फीसद तक आक्सीजन वेस्ट हो जाती है। आइसीयू (इन्टेन्सिव केयर यूनिट) और नान आइसीयू के लिए पृथक आक्सीजन के प्रावधान से भी आक्सीजन बेहतर ढंग से इस्तेमाल की जा सकती है।

एआइ से आक्सीजन फ्लो को नियंत्रित करने से

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआइ) से आक्सीजन के फ्लो को बेहतर नियंत्रित किया जा सकता है। आटो कट डिवाइस के प्रयाेग से वेस्टेज न के बराबर होता है। अस्पतालों में प्रशिक्षित आक्सीजन सुपरवाइजर की तैनाती से 16 से 18 फीसद तक आक्सीजन बचाई जा सकती है। एक मरीज औसतन चार घंटे (खाने, टी-ब्रेक, दवाई लेने व अन्य गतिविधियां) आक्सीजन का इस्तेमाल नहीं करता। इस दौरान भी आक्सीजन फ्लो चलने से वेस्टेज काफी वेस्टेज हुई है।

500 फ्लैट्स वाली हाउसिंग सोसायटी के कम्युनिटी सेंटर में बनाए जाएं कोविड केयर सेंटर

आइआइएम रोहतक के आक्सीजन आडिट में सुझाव दिया गया कि 500 से ज्यादा फ्लैट्स वाली हाउसिंग सोसाइटी के कम्युनिटी सेंटर में ही कोविड केयर सेंटर बनाए जाएं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में सभी पंचायत घरों में कोविड केयर सेंटर की सुविधा दी जाए। इन कोविड सेंटर्स में दिन में दो बार हेल्थ केयर वर्कर मरीजों की जांच के लिए पहुंचे। जरूरत पड़ने पर ही मरीजों को अस्पताल में भेजा जाए। इससे अस्पतालों में गैर जरूरी भीड़ नहीं रहेगी।

बैंक, पोस्ट आफिस में आक्सीजन कंसंट्रेटर कराए जाएं उपलब्ध

आडिट में का गया है कि सभी राष्ट्रीयकृत और कापरेटिव बैंक की शाखाओं में दो आक्सीजन कंसंट्रेटर और 10 आक्सी मीटर उपलब्ध कराए जाएं। बैंकों की पहुंच गांवों में काफी अंदर तक होती है। बैंक मरीज तक यह अहम सुविधा पहुंचने में प्रभावी साबित हो सकते हैं। बैंक ग्राहकों को इन सुविधाओं से अवगत कराएं ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों को गांव में ही बेहतर सुविधा मिले व शहरों की तरफ न भागना पड़े। वैक्सीनेशन में भी बैंक अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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'' देश में आक्सीजन को लेकर मारामारी को देखते हुए संस्थान के तीन प्राध्यापक और तीन शोधार्थियों ने प्रदेश के अस्पतालों में आक्सीजन का आडिट किया। जिसमें सामने आया कि आक्सीजन का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हुआ। अगर एसओपी बनाकर आक्सीजन का इस्तेमाल होता तो 20 फीसद आक्सीजन को बचाया जा सकता था।

                                                                             - प्रो. धीरज शर्मा, निदेशक, आइआइएम रोहतक।

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