स्‍वाभिमान के लिए 24 साल लड़ी लड़ाई, जीत मिली तो छोड़ दिया यह बड़ा पद Hisar news

डाॅ. जगबीर सिंह बताते हैं कि 1995 में एचएयू में जिला विस्तार विशेषज्ञ की पोस्‍ट पर आवेदन किया था। इंटरव्यू में वो सबसे अधिक अंक पाने वाले आवेदक थे। फिर भी जॉब नहीं दी तो कोर्ट गए।

By manoj kumarEdited By: Publish:Sun, 23 Jun 2019 12:16 PM (IST) Updated:Mon, 24 Jun 2019 02:44 PM (IST)
स्‍वाभिमान के लिए 24 साल लड़ी लड़ाई, जीत मिली तो छोड़ दिया यह बड़ा पद Hisar news
स्‍वाभिमान के लिए 24 साल लड़ी लड़ाई, जीत मिली तो छोड़ दिया यह बड़ा पद Hisar news

हिसार, जेएनएन। कहते हैं बात जब स्‍वाभिमान की हो इंसान बड़ी से बड़ी बाधा से लड़ अपनी मंजिल को पा लेता है। ऐसी राह में इंसान फायदा या नुकसान नहीं देखता। एक ऐसा ही उदाहरण हरियाणा शिक्षा बाेर्ड के पूर्व चेयरमैन डाॅ. जगबीर सिंह ने पेश किया है। जिन्‍होंने 24 साल तक एक लंबी लड़ाई लड़ी और उसे वो अब जीत भी गए हैं। ये घटना किसी फिल्‍म की कहानी से कम नहीं है। पूरा मामला जानने के लिए पढ़ें यह रोचक खबर।

हरियाणा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन अब चेयरमैन शब्‍द से संबोधित नहीं किए जाएंगे ऐसा इसलिए है कि उन्‍हाेंने अब चेयरमैन पद से इस्‍तीफा दे दिया है। उन्‍होंने शुक्रवार काे अपने पद से मुक्त हाे शनिवार काे हरियाणा कृषि विश्‍वविद्यालय एचएयू हिसार में जिला विस्तार विशेषज्ञ के रूप में जॉइन कर लिया है।

इस पद के लिए उन्‍होंने 24 साल पहले इंटरव्यू दिया था और पास भी हो गए थे। मगर उन्‍हें नियुक्ति नहीं दी गई थी। इसके बाद उन्होंने कोर्ट में 24 साल तक लंबी लड़ाई लड़ी। अब काेर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया तो उन्‍होंने इस नौकरी के लिए चेयरमैन जैसा बड़ा पद भी छोड़ दिया।

इस लड़ाई में उनके साथ एनडीआरआई करनाल में तैनात प्रताप पंवार भी शामिल रहे। प्रताप पंवार अम्बाला के कृषि ज्ञान केंद में साेमवार काे जाॅइन कर सकते हैं। खास बात यह है कि बाेर्ड चेयरमैन अपने आप में बड़ा पद है, ऐसे में जिला विस्तार विशेषज्ञ के पद पर जॉइन करने काे लेकर डाॅ. जगबीर इसे स्वाभिमान की लड़ाई कहते हैं। इसके साथ ही उन्हें 1995 के वरिष्ठता के हिसाब से ही सभी लाभ एचएयू में मिलेंगे।

इस तरह से किया था आवेदन, यूं चला सिलसिला

डाॅ. जगबीर सिंह बताते हैं कि 1995 में एचएयू में जिला विस्तार विशेषज्ञ, पशुविज्ञान की पाेस्ट निकली थी। इसमें मैंने भी आवेदन किया था। मैंने पीएचडी की हुई थी। इंटरव्यू देने कई लाेग आए। इसमें नियमानुसार अगर काेई पीएचडी किया हुआ व्यक्ति आवेदन करता है ताे 10 अंक दिए जाते थे। इंटरव्यू में पास हाेने के लिए कुल 14 अंकाें की आवश्यकता हाेती थी। इंटरव्यू में मैंने 16 अंक प्राप्त किए। ऐसे में मेरा चयन इस पद पर हाेना चाहिए था। लेकिन इस पद पर एक एमएससी किए हुए आवेदक काे रख लिया। प्रताप पंवार के साथ भी ऐसा ही हुआ था। ऐसे में दाेनाें ने काेर्ट में केस कर दिया था।

किसी युवा की तरह हो रही है खुशी

मामले में साल 1995 से लेकर 2014 तक कोर्ट में सुनवाई चलती रही। काेर्ट ने मामले काे डिसमिस कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट में दोबारा एलपीए (लेटर पेटेंट अपील) की। इसके बाद केस दाेबारा खुला। दो दिन पहले कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया। काेर्ट ने पूर्व की भर्ती काे भी बनाए रखा। साथ ही हम दाेनाें काे इस पद पर जॉइन कराने के निर्देश दिए। इस तरह हमने स्वाभिमान की लड़ाई जीती। मुझे चेयरमैन पद की लालसा नहीं है, मुझे वो मिल गया जिसके लिए मैनें 24 साल पहले एक सपना देखा था। आज मैं इस उम्र में नौकरी जॉइन करते हुए ऐसा ही अनुभव कर रहा हूं जैसा कोई युवा करता है।

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