उड़ी सेक्टर में ड्यूटी के दौरान दुश्मन की गोलियों से रक्षा करते थे चीड़ के तीन पेड़, रिटायर होने पर कैप्टन ने शुरू की पौधों की सेवा

बात 1992 की है। मूल रूप से गांव छारा और अब बहादुरगढ़ के सेक्टर दो निवासी सेवानिवृत्त कैप्टन बलवान सिंह दलाल उन दिनों कश्मीर के उड़ी सेक्टर में तैनात थे। बलवान सिंह बताते हैं कि जहां हमारी पोस्टिग थी वहां से मात्र कुछ ही दूरी पर बार्डर था। बार्डर के हालात हमेशा एक जैसे नहीं होते।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 02 Sep 2019 05:14 PM (IST) Updated:Tue, 03 Sep 2019 06:35 AM (IST)
उड़ी सेक्टर में ड्यूटी के दौरान दुश्मन की गोलियों से रक्षा करते थे चीड़ के तीन पेड़, रिटायर होने पर कैप्टन ने शुरू की पौधों की सेवा
उड़ी सेक्टर में ड्यूटी के दौरान दुश्मन की गोलियों से रक्षा करते थे चीड़ के तीन पेड़, रिटायर होने पर कैप्टन ने शुरू की पौधों की सेवा

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़:

बात 1992 की है। मूल रूप से गांव छारा और अब बहादुरगढ़ के सेक्टर दो निवासी सेवानिवृत्त कैप्टन बलवान सिंह दलाल उन दिनों कश्मीर के उड़ी सेक्टर में तैनात थे। बलवान सिंह बताते हैं कि जहां हमारी पोस्टिग थी वहां से मात्र कुछ ही दूरी पर बार्डर था। बार्डर के हालात हमेशा एक जैसे नहीं होते। उन दिनों के हालात भी सामान्य नहीं थे। ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के सैनिक खाने के समय फायरिग शुरू कर देते थे। ऊंचाई से दुश्मनों की ओर से चलाई जाने वाली गोलियों से बंकर में रहना भी सुरक्षित नहीं था। जहां हमारी पोस्टिग थी वहां पर चीड़ के तीन काफी विशालकाय पेड़ थे। ऐसे में मैं व मेरे साथी सैनिक उन पेड़ों की ओट लेकर गोलियों से बचते थे। उन पेड़ों ने हमारी खूब रक्षा की। तब मुझे आभास हुआ कि पेड़ हमारे सच्चे जीवनसाथी हैं और हमारी सुरक्षा करते हैं। ऐसे में मैंने भी एक बात सूझी कि जब पेड़ हमें जीवन दे सकते हैं तो हमारा भी दायित्व बनता हैं हम भी पेड़ों की रक्षा करें और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं। मुझे तभी से पेड़ों को लगाने और उनकी सुरक्षा करने की धुन सवार हो गई। अब मैं जब भी जरूरत होती है अपनी पेंशन से बचत करके पौधे लगाता हूं और उनकी रक्षा भी करता हूं। वर्ष 2004 में ऑनरेरी कैप्टन से रिटायर होने वाले बलवान सिंह दलाल बताते हैं कि उड़ी से तबादला होने के बाद मैं जहां भी रहा वहीं पर पौधे लगाए और उनकी पोषण करके बड़ा किया। जब मैं रिटायर हुआ तो उस समय जटवाड़ा मुहल्ला में रहता था। वहां पर पौधे लगाने के लिए कोई ऐसा स्थान नहीं था तो मैं गांव में जाकर पौधे लगाता था। अभी चार-पांच साल पहले ही सेक्टर दो में मकान बनाकर यहां पर शिफ्ट किया है। मैंने यहां पर वर्ष 2017 में करीब 20 हजार रुपये की लागत से 400 पौधे लगाए। ये पौधे अब बड़े हो रहे हैं। इस साल भी करीब 50 पौधे लगाए हैं। मुझे जब भी पौधे लगाने मन करता है तो मैं अपनी पेंशन से बचत करते पौधे खरीदता हूं और उनका रोपण कर देता हूं। मुझे सिर्फ एक बात का दुख है। वो यह कि लोग दातुन के नाम पर नीम के छोटे-छोटे पौधों को पूरी तरह खराब कर देते हैं। मैं ऐसे लोगों से अपील करता हूं कि एक दातुन के नाम पर पौधे को पेड़ बनने से मत रोकिए। उसे बड़ा होने दीजिए।

बलवान सिंह के बारे में क्लीन एंड ग्रीन संस्था से जुड़े सोमबीर कादियान भी बताते हैं कि उन्होंने सेक्टर दो की ग्रीन बेल्ट को पूरी तरह विकसित कर दिया है। वे पौधे लगाते ही नहीं बल्कि उन्हें बड़ा करने के लिए सेवा भी करते हैं। उनके इसी कार्य से प्रेरित होकर संस्था की ओर से उन्हें सम्मानित भी किया गया है। वहीं सेक्टर दो निवासी लेखक राजकुमार अरोड़ा बताते हैं कि बलवान सिंह जैसे पर्यावरण प्रेमी हर क्षेत्र में होने चाहिए। बलवान सिंह स्वयं के खर्च पर ही पौधे लगाते हैं और उनका लालन-पोषण भी करते हैं।

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