Shakuntala Devi Review: विद्या बालन और सान्या मल्होत्रा का बायोपिक शो अगर 'पास नहीं तो, फेल नहीं'

Shakuntala Devi Review शंकुतला देवी की बायोपिक एक किस्म से विद्या बालन और सान्या मल्होत्रा का स्टेज़ शो है। जानिए- अमेज़न प्राइम वीडियो की में क्या है ख़ास और कहां रह गई कमियां।

By Rajat SinghEdited By: Publish:Fri, 31 Jul 2020 10:13 AM (IST) Updated:Fri, 31 Jul 2020 10:46 AM (IST)
Shakuntala Devi Review: विद्या बालन और सान्या मल्होत्रा का बायोपिक शो अगर 'पास नहीं तो, फेल नहीं'
Shakuntala Devi Review: विद्या बालन और सान्या मल्होत्रा का बायोपिक शो अगर 'पास नहीं तो, फेल नहीं'

नई दिल्ली, (रजत सिंह)। Shakuntala Devi Review: विद्या बालन एक बार फिर वूमेन सेंट्रिक फ़िल्म के साथ हाज़िर हैं। मैथमेटिशियन, ज्योतषी और लेखक शकुंतला देवी की बायोपिक में विद्या बालान ने एक मां और स्वतंत्र महिला का किरदार निभाया है। विद्या के इस किरदार को स्क्रीन पर कलरफुल बनाया है को-स्टार सान्या मल्होत्रा ने। इन सबको बांधने का काम निर्देशक अनु मेनन ने किया है। गणित की गुणाभाग के बीच ज़िंदगी के कई सवाल आपको एंटरटेन करते हैं।

कहानी

फ़िल्म शकुंतला देवी के जीवन पर आधारित है। दक्षिण भारत में पैदा हुई शकुंतला देवी कभी भी स्कूल नहीं गई। लेकिन मैथ जीनियस होने की वज़ह से बचपन से स्टेज़ शो कर रही है। शकुंतला को बचपन से सुपरमैन नहीं, बल्कि सुपरवूमेन बनना है। वे सामान्य जीवन नहीं जीना चाहती। इसके लिए वह लदंन चली जाती हैं। कहानी में असली मोड़ तब आता है, जब शकुंतला खु़द मां बनती हैं। फिर शुरू होती शकुंतला के लाइफ की दूसरी जंग। स्वतंत्र जीवन और परिवार के बीच शकुंतला लगातार पिसती नज़र आती हैं। यह जंग शकुंतला अपने जीवन के आखिरी छड़ तक लड़ती हैं। फ़िल्म की कहानी में शकुंतला देवी के बहाने स्वतंत्र  महिला और उनकी जीवन की भावनाओं को व्यक्त किया गया है। 

क्या लगा अच्छा

- फ़िल्म की कहानी की ख़ास बात है कि यह सिर्फ शकुंतला देवी पर ही रूक नहीं जाती है। कहानी सिर्फ गणित पर ही आधारित नहीं है। यह एक महिला, एक मां और एक बेटी कहानी है। कहानी दो पार्ट में चलती है। एक और शकुंतला देवी की कहानी दिखती है, तो दूसरी और अनु बनर्जी की भी कहानी दिखाई गई है। 

- एक्टिंग की बात करें, तो फ़िल्म पूरी तरह से विद्या बालन का शो है। ऐसा लगता है कि आप विद्या बिना किसी प्रेशर के बिल्कुल आराम से किरदार को स्क्रीन पर उतार देती हैं। वहीं, सान्या ने अनु के किरदार में काफी इमोशन भरा है। दंगल, पटाख़ा और बधाई हो के बाद सान्या इस बार एक्टिंग के स्तर पर अपने आपको काफी चैलेंज किया है। अमिता साध के हिस्से ज्यादा सीन्स नहीं आए हैं। वहीं, शकुंतला देवी के पति के किरदार में जीशु सेनगुप्ता काफी जमते हैं। 

- शकुंतला देवी का आर्ट डायरेक्शन भी काफी सही है। आपको पुराने समय में नए समय का आभास नहीं होता है। 1950 का लंदन हो या 1999 का बेंगलुरु, उसे बकायदा पर्दे पर उतारा गया। निर्देशक अनु मेनन आपको समय में लेने जाने में समक्ष रही हैं। भाषा और स्थानियता काफी पूरा ख्याल रखा गया है। 

कहां लगी कमी

- बायोपिक की वज़ह से कहानी में ज़्यादा प्रयोग का मौका नहीं था। इस वज़ह से यह मनोरजंन के मामले में उस स्तर पर नहीं जाती है, जैसी दंगल, भाग मिल्खा भाग या अन्य फ़िल्में। कुल मिलकार फ़िल्म कहानी बोर नहीं करती है, लेकिन बहुत एंटरटेन भी नहीं करती है। 

-  विद्या बालन जैसी बेहतरीन एक्ट्रेस, शकुंतला देवी जैसी बेहतरीन किरदार। इसके बावजूद भी अगर फ़िल्म अपने बेस्ट लेवल तक नहीं जाती हैं, तो यह निर्देशक की कमी है। फोर मोर शॉट्स प्लीज़ जैसी वेब सीरीज़ बनाने वाली अनु महिला पक्ष को उभारने में कामयाब रही हैं। लेकिन इमोशन वाले में मामले वह हल्की-सी कमजोर लगती हैं। नयनिया के साथ स्क्रीन प्ले लिखने वाली अनु फ़िल्म के मोनो लॉग को और बेहतर बना सकती थीं। 

अंत में 

अमेज़न प्राइम वीडियो की फ़िल्म 'शकुंतला देवी'  विद्या बालन के शो में सान्या मल्होत्रा की होस्टिंग जैसी है। फ़िल्म के आखिर में एक गाना है, 'पास नहीं तो, फेल नहीं'। फ़िल्म इस गाने पर बिल्कुल खरी उतरती है। 

chat bot
आपका साथी