फिल्म रिव्यू: वन बाय टू (2 स्टार)

अभिनेता से निर्माता बने अभय देओल की पहली फिल्म है 'वन बाय टू'। हिंदी सिनेमा में अभय देओल ने बतौर अभिनेता हमेशा कुछ अलग फिल्में की हैं। निर्माता के तौर पर भी उनकी भिन्नता नजर आती है। हालांकि 'वन बाय टू' हिंदी सिनेमा के फॉर्मूले से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाती

By Edited By: Publish:Fri, 31 Jan 2014 03:39 PM (IST) Updated:Fri, 07 Mar 2014 03:39 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: वन बाय टू (2 स्टार)

मुंबई (अजय ब्रह्मात्मज)।

प्रमुख कलाकार: अभय देओल, प्रति देसाई और रति अग्निहोत्री।

निर्देशक: देविका भगत।

संगीतकार: शंकर-अहसान-लॉय।

स्टार: 2

अभिनेता से निर्माता बने अभय देओल की पहली फिल्म है 'वन बाय टू'। हिंदी सिनेमा में अभय देओल ने बतौर अभिनेता हमेशा कुछ अलग फिल्में की हैं। निर्माता के तौर पर भी उनकी भिन्नता नजर आती है। हालांकि 'वन बाय टू' हिंदी सिनेमा के फॉर्मूले से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाती, लेकिन प्रस्तुति, चरित्र चित्रण, निर्वाह और निष्कर्ष में कुछ नया करने की कोशिश है। उन्होंने लेखन और निर्देशन की जिम्मेदारी देविका भगत को सौंपी है।

तस्वीरों में देखें इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग

'वन बाय टू' दो किरदारों पर बनी एक फिल्म है। दोनों फिल्म के सफर में कई बार एक-दूसरे के पास से गुजरते हैं। निर्देशक ने दोनों को अलग-अलग फ्रेम में एक साथ स्क्रीन पर पेश कर यह जता दिया है कि अलग होने के बावजूद उनकी जिंदगी में कुछ समानताएं हैं। यह संकेत भी मिल जाता है कि उनकी राहें मिलेंगी। अमित को उसकी प्रेमिका राधिका ने छोड़ दिया है। वह उसे फिर से पाने की युक्ति में लगा असफल युवक दिखता है। दूसरी तरफ समारा अपनी परित्यक्ता मां को संभालने के साथ करियर भी बुनती रहती है। दोनों मुख्य किरदारों के मां-पिता आज के समाज के पूर्णत: भिन्न मिजाज के दंपति हैं। पृष्ठभूमि में होने के बावजूद दोनों माता-पिता की जिंदगी को लेखक-निर्देशक ने बखूबी फिल्म का हिस्सा बनाया है। अमित और समारा की जिंदगी में हो रही घटनाएं भी किसी महानगर के युवकों की जिंदगी से मेल खाती है। प्यार, करियर, समर्पण और स्वतंत्रता के साथ कुछ कर गुजरने की चाहत और दवाब में फंसी युवा पीढ़ी के अंतर्विरोधों का भी 'वन बाय टू' में चित्रण है।

इस नवीनता को लेखक-निर्देशक देविका भगत रोचक और चुस्त तरीके से नहीं गूंथ पाई हैं। कथानक का बिखराव फिल्म के मनोरंजन और फिल्म के प्रभाव को कम करता है। इस फिल्म का संगीत विवादों की वजह से ढंग से दर्शकों के बीच नहीं पहुंच पाया। अमिताभ भट्टाचार्य ने महानगरीय एहसासों को भावपूर्ण शब्द दिए हैं और उन्हें शंकर एहसान लॉय ने सिंपल संगीत के साथ संजोया है। रोजमर्रा जिंदगी से उठाए गए गीतों के बिंब नए और प्रभावशाली हैं।

अवधि-139 मिनट

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