गलतियां भी हों अच्छी वाली : शाहरुख खान

15 अप्रैल को शाहरुख खान की बहुप्रतिक्षित फिल्म 'फैन' रिलीज हो रही है। फिल्म और फैनिज्म के विषय पर मुंबई स्थित यशराज स्टुडियो में दैनिक जागरण की फीचर टीम से उनकी लंबी बातचीत के अंश-

By Suchi SinhaEdited By: Publish:Sun, 10 Apr 2016 01:03 PM (IST) Updated:Sun, 10 Apr 2016 03:23 PM (IST)
गलतियां भी हों अच्छी वाली : शाहरुख खान

बॉलीवुड में 25 सालों से सक्रिय शाहरुख खान अब अपने प्रशंसकों को ‘फैन’ के रूप में देने जा रहे हैं एक खास तोहफा। स्टार और फैन के रिश्तों पर आधारित इस फिल्म में वे अपने अनुभवों का कर रहे हैं भरपूर इस्तेमाल। फिल्म और फैनिज्म के विषय पर मुंबई स्थित यशराज स्टुडियो में दैनिक जागरण की फीचर टीम से उनकी लंबी बातचीत के अंश-

फैैंस का स्टार की जिंदगी पर कितना हक होना चाहिए?
ईमानदार जवाब बहुत अलग है, खासकर खुद के संदर्भ में। मैं फिर भी बताता हूं। मुझे ऐसा लगता है कि लोकप्रियता अपने संग डर लेकर आती है। लोकप्रिय लोग डरने लग जाते हैं। इस बात का डर कि मेरा काम लोगों को पसंद नहीं आया तो पिछले 25 सालों में कमाया नाम बेकार हो जाएगा। यह डर मन में समाते ही स्टार वही करने लग जाता है, जो दो करोड़ लोगों को पसंद है। सच्चाई यह है कि आप दो करोड़ लोगों की पसंद का काम नहीं कर सकते। आखिर में आप वही कर सकते हैं, जो आपको आता है। इससे एक अलग विश्वास मन में आ जाता है कि आप जो भी करें, वह आपके फैंस को पसंद आना है। मैं पूरी विनम्रता से यही कहना चाहूंगा कि फैन की पसंद-नापसंद और गुस्से को हम हर बार गंभीरता से लेने लगे तो काम करने में दिक्कतें होंगी।

आपके लिए फिल्म करने की मूल वजहें क्या होती हैं?
बात ‘डर’ के दिनों की है। उन दिनों हर एक्टर के पास दस-बारह फिल्में हुआ करती थीं। ‘डर’ की सफलता की पार्टी में देवेन वर्मा साहब ने मुझसे कहा था, ‘बेटा फिल्में तीन चीजों के लिए करना, धन, मन और फन। धन तो सभी जानते हैं, फन यानी हुनर, मन यानी अपने दिल के लिए, साथ ही अपने दोस्तों के लिए। इन तीन चीजों का ध्यान रखते हुए तू संतुलन साधेगा तो सही दिशा में जाता रहेगा।’ सही में देखा जाए तो देवेन वर्मा साहब की सलाह बिल्कुल सही है। अब मैं उस सिचुएशन में हूं, जब मुझे धन की जरूरत नहीं। मैं पहले भी धन के लिए तो फिल्में नहीं करता था। मन के लिए करता रहता हूं, कभी-कभी फन के लिए कर लेता हूं। मैं सात दिनों से रात-दिन काम में लगा हुआ हूं। अभी आदित्य और मनीष फिल्म का ट्रायल शो देखने गए हैं। मैं आम तौर पर अपनी फिल्मों का ट्रायल शो नहीं देखता। मैं उनसे बस यही पूछूंगा कि उन्हें फिल्म कैसी लगी? वह अच्छी बनी है कि नहीं। लब्बोलुआब यह कि अगर मेरे फैन मुझे वाकई चाहते हैं तो उन्हें मेरा काम पसंद आएगा। यह फिल्म मन और फन दोनों के लिए है।

निर्देशक मनीष शर्मा लीक से हटकर फिल्में बनाते रहे हैं। उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे?
मनीष बहुत पहले से मेरे दोस्त हैं। मुंबई आने पर वे सबसे पहले मुझसे ही मिले थे। उनकी सोच और विजन अलग है। असल में कहूं तो शुरू के पांच साल मैं ऐसा ही था। मेरी सोच मनीष की तरह थी। मनीष के साथ काम करना खुद को फिर से तलाशने सरीखा है। उन्होंने मुझे अहसास कराया कि मैं अपने शुरुआती दिनों में कैसा था। मनीष अच्छे डायरेक्टर हैं, उन्हें अपना काम पता है। हम दोनों के बीच एक खुलापन है। बिना जज किए कुछ गढ़ने की आजादी वाली बात हम दोनों के बीच है। वह मुझे काफी रचनात्मक आजादी देते हैं। एक अर्से बाद ऐसा डायरेक्टर मिला, जो मुझे गलतियां करने का भी हक देता है। ‘फैन’ फिल्म करते-करते महसूस हुआ कि अब मुझे गंदी एक्टिंग नहीं करनी चाहिए, गलतियां भी अच्छी वाली करनी चाहिए।

‘फैन’ के किरदारों को आत्मसात करने की प्रक्रिया थकाऊ तो नहीं रही?
ईमानदारी से कहूं तो गौरव को निभाना बहुत मुश्किल था, क्योंकि मैं उसे नहीं जानता, पर मैंने उसे क्रिएट कर दिया। अब मैं उसे आत्मसात करने की प्रक्रिया बयान करूं तो वह मैकेनिकल सा होगा कि उसकी चाल ऐसी कर दी, उसकी आवाज बदल दी, उसके बाल ऐसे कर दिए, उसके डील-डौल तक को शक्ल दे दी। यह गलत भी साबित हो सकता है। इतना कह सकता हूं कि मैंने इसे निभाने में अपने अनुभव और जानकारी का पूरा इस्तेमाल किया है। तभी इस फिल्म के लिए मैं कैसे इंटरव्यू दूं, वह तय नहीं कर पा रहा हूं। ‘माइ नेम इज खान’ के किरदार का विश्लेषण मुमकिन है। यहां गौरव के बारे में क्या बताया जाए? एक युवक है, जो हजारों-लाखों फैन का प्रतिनिधित्व कर रहा है। उन सबकी व्याख्या कैसे मुमकिन है। तभी इसे करते वक्त अनजानी सी जिम्मेदारी थी कंधों पर।

इस फिल्म के लिए मैथड एक्टिंग भी इस्तेमाल की?
मेरी एक्टिंग कई एक्टिंग स्टाइल का मिश्रण है। मुझे एक्टिंग के सभी मैथड की गहन जानकारी है। मैं उसके बारे में बहुत पढ़ता हूं। मेरे मुताबिक एक्टिंग मैथड का मिश्रित उपयोग करना चाहिए। हो सकता है कि मेरे विचार से सभी सहमत न हो। हालांकि मेरा मानना है आपको खुद को किसी एक मैथड तक सीमित नहीं करना चाहिए। बल्कि मिक्स मैथड का इस्तेमाल करना चाहिए। ‘फैन’ में वॉयस को लेकर मैथड है। उसकी आवाज एक समान होनी चाहिए। जब मैंने पहली बार उसके लिए डायलॉग बोला तो सिर्फ आवाज में फर्क था। आदित्य चोपड़ा को लगा कि आवाज बदलने से लोगों को लगेगा यह शाह रुख नहीं है। लिहाजा शाह रुख को रखते हुए कुछ अलग करो। मुझसे फिल्म की डबिंग नहीं होती, जब तक फिल्म की पहली दो लाइनें याद न कर लूं। डबिंग से पहले मैं घर या गाड़ी में उसका रिहर्सल करता हूं। ‘फैन’ में एक डायलॉग है ‘कनेक्शन भी बड़ी कमाल की चीज है।’ जब मुझे लाइन मिली, इसकी डबिंग मुझे गले की नस दबाकर करनी पड़ती है, इसका भी अलग मैथड है। एक्टिंग के समय ऐसा नहीं करना पड़ता। उसे भी रीक्रिएट करने का मैथड होता है। इस किरदार की बॉडी लैंग्वेज, चाल-ढाल और डांस में बहुत मैथड का इस्तेमाल करना पड़ा।

क्या आपको लगता है हमारे मुल्क में हीरो की क्राइसिस है? कभी अरविंद केजरीवाल तो कभी कन्हैया में नायक की तलाश होती है?
आपको वही हीरो अच्छा लगेगा जो आपकी पर्सनालिटी से मेल खाता हो या आप जिसके जैसा बनना चाहते हों। इसके पीछे कोई तीसरा कारण नहीं होता। नायक आजकल मीडिया हाईप की वजह से क्रिएट किए जा रहे हैं। मेरे ख्याल से किसी को, किसी और की या खुद की आभा में नहीं आना चाहिए। मुझे मैडम क्यूरी का इतिहास नहीं मालूम, लेकिन प्रभावित करती हैं। मदर टेरेसा से मैं बमुश्किल ढाई मिनट मिला हूं, वे पल छाप छोड़ गए। मेरे ख्याल से हीरो उसे बनाना चाहिए जिसका काम महान हो। जिसके काम को आप नजरअंदाज न कर सकें या फिर जो आपकी पर्सनालिटी का विस्तार हों। मेरा हीरो तो मेरा ड्राइवर है। मेरी सेवा में वह दिन-रात लगा रहता है। मेरे नखरों की शिकायत नहीं करता।

राहुल ढोलकिया के साथ ‘रईस’ कर रहे हैं। उनके बारे में कुछ बताएं?
उन्हें मालूम ही नहीं कॅमर्शियल या आर्ट क्या होता है! उनकी अपनी विशिष्ट शैली है। मैं फिल्म में बहुत जगह अच्छी एक्टिंग कर रहा हूं बिना यह जाने कि वह सही है या गलत। दरअसल बाकी कास्ट ने उसमें उम्दा काम किया है। मैं संजय लीला भंसाली के साथ भी फिल्म करूंगा। ‘बाजीराव मस्तानी’ का मसला होने के बावजूद हम अच्छे दोस्त हैं। अभी बस इम्तियाज अली और आनंद एल. राय की फिल्में सामने हैं, वे दोनों अभी स्क्रिप्ट लिख रहे हैं।

अपने निर्देशकों के साथ किस किस्म के क्रिएटिव डिस्कशन करते हैं?
मैं हर डायरेक्टर के साथ सात-आठ महीने तक वक्त बिताता हूं। कई बार तो साल भर का भी समय लेता हूं। उसके साथ मुझे मजा आता है तो मैं उसकी फिल्म करता हूं। मैं वक्त इसलिए लेता हूं कि अगर फिल्म नहीं चली तो बाद में वैनिटी में बैठकर रोते हुए यह जरूर कह सकें कि यार कुछ भी हो,मजा तो आया था न!

‘फैन’ स्टार और प्रशंसक के इगो क्लैश की कहानी है। क्या आप इगोइस्टिक भी हैं?
(हंसते हुए) यह सुनने में थोड़ा अहंकारी लगे, लेकिन मुझसे बड़ा इगोइस्टिक, आत्ममुग्ध और अहंकारी कोई दूसरा शख्स नहीं है। वजह यह कि मैं शाह रुख खान हूं। ऊपर से फिल्म में मैं ही स्टार आर्यन खन्ना और फैन गौरव बना हूं। आर्यन खन्ना के रूप में हमें ऐसा हीरो चाहिए था, जो वाकई लंबे समय से स्टार हो। चूंकि मेरा 25 साल का कॅरियर है, शायद यही वजह है कि मैं यह रोल कर रहा हूं। उसका कारण यह नहीं कि मैं अपना सबसे बड़ा फैन हूं। मुझे बहुत ऑक्वर्ड लगता है। कुछ ही कलाकारों का 25 साल का कॅरियर होता है। उनके फैन की तादाद बनी रहे, ऐसे कलाकार कम हैं। मुझे किसी फिल्म में मौका मिले तो मैं अमिताभ बच्चन का फैन बनना पसंद करता। वैसे ‘फैन’ की कहानी ऐसे शख्स की है जिसकी शक्ल अपने पसंदीदा कलाकार से मिलती है। मैं स्वयं बॉक्सर मुहम्मद अली का फैन हूं। वजह यह कि उनके सफर में उपलब्धि की पराकाष्ठा और ट्रेजडी भी है। मैं यू-ट्यूब पर उनकी सारी फाइटें देखता हूं, जो मैंने अपने बच्चों को भी दिखाई हैं!

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