हर तरफ छाई परिणीति

बहुत कम लोगों के साथ ऐसा होता है कि वे करियर के महज दो-तीन बरसों में सभी फिल्मकारों की पहली पसंद बन जाएं। परिणीति चोपड़ा उन्हीं कलाकारों में से एक हैं, जिन्हें बड़े से बड़े मेकर का साथ बहुत जल्द हासिल हुआ है। इत्तिफाक से इन दिनों विज्ञापन फिल्मों से फिल्मकार बने

By Edited By: Publish:Wed, 09 Oct 2013 01:31 PM (IST) Updated:Wed, 09 Oct 2013 04:26 PM (IST)
हर तरफ छाई परिणीति

मुंबई। बहुत कम लोगों के साथ ऐसा होता है कि वे करियर के महज दो-तीन बरसों में सभी फिल्मकारों की पहली पसंद बन जाएं। परिणीति चोपड़ा उन्हीं कलाकारों में से एक हैं, जिन्हें बड़े से बड़े मेकर का साथ बहुत जल्द हासिल हुआ है। इत्तिफाक से इन दिनों विज्ञापन फिल्मों से फिल्मकार बने लोग बहुत अच्छा कर रहे हैं। तो उन्होंने भी परिणीति को कास्ट किया है। फिल्म का नाम 'हंसी तो फंसी' है। इसे बड़े विज्ञापन निर्माता विनिल मैथ्यूज डायरेक्ट कर रहे हैं। फिल्म में परिणीति के साथ 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' फेम सिद्धार्थ मल्होत्रा हैं। परिणीति कहती हैं, 'मेरे ख्याल से विज्ञापन निर्माताओं को गागर में सागर भरने की कला का ज्ञान होता है। इन दिनों इस जमात के लोग अच्छी फिल्में भी बना रहे हैं। सबसे बड़ा उदारहण राजकुमार हिरानी हैं। आज तो फिल्मकार भी विज्ञापन बनाने लगे हैं। लिहाजा उनके बीच की थिन लाइन खत्म हो चुकी है। दोनों जगहों पर वे अच्छे-बुरे प्रोजेक्ट को अंजाम देते हैं। विज्ञापन वालों के साथ यह होता है कि उन्हें किश्तों में शूट करने की आदत होती है। विनिल के साथ भी वैसा हुआ। वे कहते हैं, तीन दिन के बाद ब्रेक होना चाहिए। वे लगातार 20 दिन शूट करने वालों में से नहीं हैं। मैं उन्हें समझाया करती हूं कि नहीं, वैसा सिर्फ विज्ञापनों में होता है, अभी आपको 20 दिन स्ट्रेट वे में शूट करना होगा। उन्होंने किया। उनकी खासियत है वे कलाकारों को ऊर्जा से लबरेज कर देते हैं। इस फिल्म के दौरान भी वैसा ही हुआ। सिद्धार्थ मल्होत्रा अपनी गति से काम करने वालों में हैं। विनिल ने उन्हें इतना मोटिवेट किया कि शूट के शुरुआती चार-पांच दिनों के बाद से उनकी रफ्तार देखने लायक थी।'

जॉन का अपना तरीका है

इंडस्ट्री में सबसे विनम्र और संजीदा कलाकार माने जाते हैं जॉन अब्राहम। वे कहते हैं, 'मैं इंडस्ट्री में सिर्फ अपने काम की वजह से जाना जाता हूं। लोगों ने कभी मुझे किसी विवाद में नहीं देखा या सुना होगा। आदित्य चोपड़ा ने मुझसे कहा था कि कई बार हमारे जीवन की अच्छी चीजें बुरी साबित हो सकती हैं। मुझे लगता है कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ 'वाटर', 'काबुल एक्सप्रेस', 'नो स्मोकिंग' और 'जिंदा' में दिया था, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इन फिल्मों को वैसा रेस्पॉन्स नहीं मिला, जैसी उम्मीद थी। हर आदमी लाइफ में आगे बढ़ना चाहता है किसी को शॉर्टकट से आगे जाना है और किसी को लंबी दूरी तय करते हुए और मेहनत के दम पर। मुझे ऑफबीट तरीके से आगे जाना है। मसलन, 'रेस 3' के साथ ही 'नो स्मोकिंग 2' भी मैं करना चाहता हूं। इसका मतलब यह नहीं कि मैं कमर्शियल फिल्मों को बुरा मानता हूं। सबकी अपनी जगह और अहमियत है। कॉमर्शियल इमेज वाले अभिनेता को अधिक लोग जानते हैं और उनकी पहुंच भी हिंदुस्तान के कोने-कोने तक है। मेरा कहना यह है कि इस इंडस्ट्री में आपको अच्छे काम से अधिक बुरे काम के लिए जाना जाता है। मैंने एमबीए किया है और यूनिवर्सिटी में रैंक होल्डर हूं, लेकिन लोग मुझे मेरी बॉडी की वजह से पहचानते हैं। आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन 'दोस्ताना' के बाद मेरे पास सैकड़ों अंडरवियर ब्रैंड के एंडोर्समेंट के ऑफर आए, लेकिन मैंने नहीं किया। हमारे यहां के सुपरस्टार आसानी से इस विज्ञापन को कर सकते थे, लेकिन मैंने नहीं किया। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे मेरी काबिलियत से जानें न कि लुक से।'

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मास तक पहुंचना है

तिग्मांशु को

मौजूदा दौर की फिल्मों में डायलॉगबाजी एक बार फिर फिल्मों की आन-बान और शान बन चुकी है। जिस फिल्म में जितने अच्छे वन लाइनर होंगे, उनकी सफलता की गुंजाइश उतनी बढ़ जाती है। इसके लिए मिलन लूथरिया के बाद तिग्मांशु धूलिया को सारा क्रेडिट जाता है। इलाहाबाद की छात्र राजनीति पर बनी 'हासिल' से लेकर बीहड़ के बागी पान सिंह तोमर के निर्देशक तिग्मांशु धुलिया का करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 'पान सिंह तोमर' के बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर देखना बंद कर दिया है। पहले 'साहब बीवी गैंगस्टर रिट‌र्न्स' का धमाका किया, अब 'बुलेट राजा' की धूम मचने वाली है। खासकर प्रोमो में सैफ अली खान के ब्राšाण शख्स का अवतार लोग खूब पसंद कर रहे हैं। उसके संवाद लोगों की जुबां पर हैं। तिग्मांशु कहते हैं, 'मेरी फिल्मों की आत्मा संवाद होते हैं। मेरे ख्याल से हम हिट फिल्मों की हिस्ट्री उठा कर चेक करें, तो अधिकांश फिल्मों में सशक्त संवाद की मौजूदगी रही है। वह फिल्मों का तेवर और कलेवर बदल कर रख देता है। सैफ के संवाद इससे पहले लोगों ने 'ओमकारा' में देखे थे। उस फिल्म में उनकी टोन अलग थी। 'बुलेट राजा' में वे पूरी तरह से अलग रूप में नजर आएंगे। प्रोमो से उन्होंने साबित भी किया कि वे सिर्फ परिष्कृत युवक ही नहीं, रफ ऐंड टफ शख्स की भूमिका भी निभा सकते हैं।'

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सत्या 2 में 2013 का अंडरव‌र्ल्ड

रामगोपाल वर्मा का अंडरव‌र्ल्ड प्रेम छिपा नहीं है। 'सत्या' से लेकर अभी तक वे बार-बार अंडरव‌र्ल्ड की दुनिया में लौटते हैं और नए किरदारों को लेकर आते हैं। 'सत्या 2' कई मायने में 1998 की 'सत्या' का सिक्वल है, लेकिन इसमें नयापन भी है। यह 'सत्या' की कहानी का नहीं, बल्कि उसकी कथाभूमि का विस्तार है। 'सत्या 2' में नए किरदार हैं। अपराध के प्रति उनका अप्रोच नया है। वे अपनी आपराधिक गतिविधियों में मॉडर्न तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। रामगोपाल वर्मा कहते हैं, 'फिल्म 'सत्या' 1998 में आई थी। फिल्म में नायक उस दौर के अंडरव‌र्ल्ड को नए तरीके से गढ़ा था। 'सत्या 2' में दूसरा व्यक्ति है। यह 2013 की मुंबई के अंडरव‌र्ल्ड को एक्टिव करता है।' अभी ऐसी धारणा है कि मुंबई में अंडरव‌र्ल्ड की गतिविधियां खत्म हो गई हैं, लेकिन रामगोपाल वर्मा का मानना है कि बहुत दिनों तक वैक्यूम नहीं रह सकता। वे बताते हैं, 'मैंने एक ऐसे अपराधी की कल्पना की है, जो पिछले अंडरव‌र्ल्ड सरगनाओं की गलतियों से सीखकर नेटवर्क स्थापित करता है। पुलिस भी उसकी नई गतिविधियों से चौंक उठती है। उन्हें अपराध की दुनिया में एक नया अपराधी दिखता है।' 'सत्या 2' के 25 अक्टूबर को रिलीज होने की बात है।

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