जम गया पान का रंग

मेनस्ट्रीम मसाला फिल्म हो या अलहदा किस्म की आर्ट मूवी.. हॅालीवुड की फिल्म हो या टीवी सीरीज.. इरफान खान हर जगह अपनी विशिष्टता के साथ नजर आते हैं।

By Edited By: Publish:Tue, 13 Mar 2012 11:47 AM (IST) Updated:Tue, 13 Mar 2012 11:47 AM (IST)
जम गया पान का रंग

मेनस्ट्रीम मसाला फिल्म हो या अलहदा किस्म की आर्ट मूवी.. हॉलीवुड की फिल्म हो या टीवी सीरीज.. इरफान खान हर जगह अपनी विशिष्टता के साथ नजर आते हैं। इन दिनों अपनी नई फिल्म पान सिंह तोमर के लिए चर्चित इस बहुमुखी अभिनेता से रूबरू हुए अजय ब्रह्मात्मज ..

खूब तारीफ बटोर रही है पान सिंह तोमर। इसके लिए हां कहने की क्या वजह थी?

मेरे पास अर्से बाद ऐसी फिल्म आई थी, जिसकी कहानी पढ़ते ही दिल गर्म हो जाए। मैंने इस फिल्म में बहुत मेहनत की है। तिग्मांशु धूलिया ने भी इस पर बाकी फिल्मों से अधिक ध्यान दिया है। यह फिल्म जहां-जहां फेस्टिवल में गई, वहां-वहां क्रिटिक्स और दर्शकों ने इसकी तारीफ की।

पान सिंह तोमर एथलीट और बीहड़ के बागी थे, इसलिए अभिनय सिर्फ भावों के व्यक्त करने तक ही तो सीमित नहीं रहा होगा?

पान सिंह तोमर धावक थे। जिस दौड़ में वे माहिर थे, उसे स्टीपलचेज कहते हैं। मुझे उस दौड़ की तकनीकी प्रैक्टिस करनी पड़ी। शूटिंग का शेड्यूल कुछ ऐसा हो गया था कि सारी दौड़ एक साथ शूट करनी पड़ी। सांस लेने और आराम करने की फुर्सत नहीं मिली। मेरे साथ जो लोग दौड़ रहे थे, वे सभी खिलाड़ी थे। उनका वही पेशा था। उनकेसाथ रहने का अनुभव बहुत अच्छा रहा।

खिलाडि़यों के जीवन में अलग एनर्जी और खुलापन रहता है। जिनके लिए स्पो‌र्ट्स अभी धंधा नहीं बना है, उनके लिए अपना खेल अध्यात्म से कम नहीं है। पहले फौजी, फिर खिलाड़ी और अंत में डकैत बन जाना। पान सिंह तोमर का जीवन सरल नहीं था। वह पहले देश के लिए जान देने को तैयार था। बाद में देश के लिए दौड़ा। उसी पान सिंह तोमर को उसके समाज और देश ने क्या दिया? उसे ऐसा मजबूर किया कि वह डकैत बन गया।

कैसा व्यक्तित्व था पान सिंह तोमर का?

तिग्मांशु धूलिया और उनकी टीम ने रिसर्च से मालूम किया था कि वह एक साथ सख्त और मुलायम था। वह कोल्ड भी था। उसका एक अपना सेंस ऑफ ह्यूमर भी है। किसी मासूम व्यक्ति के साथ कुछ गलत होता है तो उसकी जिंदगी क्या टर्न ले सकती है? वह स्वच्छंद किस्म का व्यक्ति है, लेकिन उसमें ताप भी है। अपने आत्मसम्मान को बचाते हुए वह लड़ता है। वह बस यही चाहता है कि उसकी इज्जत अपनी नजरों में कमजोर न हो जाए।

..और कितनी फिल्में कर रहे हैं आप? काफी दिनों से बड़े पर्दे पर नहीं दिखे?

हिंदी में फिल्में बनती कहां हैं, जिनमें हमें लिया या रखा जा सके। किस्मत से कभी कोई पान सिंह तोमर मिल जाती है। मैं तो खोजता रहता हूं। चूंकिमेरा काम है एक्टिंग करना और इस शहर में बने रहना है तो कुछ ऐसी फिल्में भी करता हूं, जिनसे संतोष नहीं होता..लेकिन पैसे मिलते हैं। माहौल देखते हुए खुद को बचाते हुए कुछ कर लेता हूं। क्या कभी ऐसा एहसास भी होता है कि जो सोच कर फिल्म के लिए हां कहा था, वह तो कहीं दिख ही नहीं रहा है। कुछ हो नहीं रहा है? कई बार.. घुसते ही लग जाता है। फ्लोर पर जाने के दो दिनों के अंदर पता चल जाता है कि फिल्म कैसी बन रही है? उसके बाद अपना कमिटमेंट पूरा करते हैं। ना नहीं कर सकते, क्योंकि पैसे और टैलेंट इनवॉल्व रहते हैं। वैसे भी हम कहानी नहीं सुना रहे होते हैं। हम कहानी का हिस्सा होते हैं। मैं नहीं बता सकता कि फिल्म को ऐसे पेश करो या बदलो। वह मेरे लिए बोरिंग काम होगा। मुझे वैसे डायरेक्टर के साथ शेयर करने में दिक्कत नहीं होती, जिसकी दुनिया मुझे अपनी तरफ खींच ले। तब मेरे लिए एनरिचिंग एक्सपीरियंस होता है। अगर मुझे डायरेक्टर को बताना पड़े कि ऐसे या वैसे करूंगा तो वह मेरे लिए खुद को खर्च करने का मामला हो जाता है।

क्या कहा जा सकता है कि इरफान अब हिंदी फिल्मों के अनुरूप ढल गए हैं?

अभी ऐसा नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री का रवैया अभी तक बहुत सौहार्द्रपूर्ण नहीं है। कुछ ऐसी चीजें हैं जो मैं कभी नहीं करूंगा। मैं उन्हें ठीक-ठीक बता नहीं सकता। नाम लेने या इशारा करने से कुछ लोग नाराज हो सकते हैं।

विदेशों की कौन-सी फिल्में कर रहे हैं?

द लाइफ ऑफ पाई कर रहा हूं। किस्सा की पंजाब में शूटिंग कर रहा हूं। यह जर्मनी, फ्रांस, डेनमार्क और भारत के सहयोग से बन रही है। द एमेजिंग स्पाइडर मैन कर रहा हूं। इसके किरदार के बारे में अधिक नहीं बता सकता। फिल्म जुलाई में रिलीज होगी। आप तो फिल्म के मुख्य कलाकारों और निर्माता-निर्देशक से मिल कर आए। आप बताएं कि उन्होंने मेरे बारे में क्या कहा?

सभी ने आप की तारीफ की और कहा कि इरफान भारत और एशिया के ही नहीं, दुनिया के एक महत्वपूर्ण अभिनेता हैं। समकालीन अभिनेताओं में वे विशिष्ट प्रतिभा के धनी हैं। आप यह बात यहां के मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को बताएं। एक दिक्कत है कि अपने यहां स्टार की पूछ होती है। फिल्में भी उनकी इमेज को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं। अगर कैरेक्टर पर वर्क हो तो हम जैसे एक्टर की जरूरत होगी। आपकी टीवी सीरीज इन ट्रीटमेंट की काफी चर्चा है। क्या भारत में वैसी टीवी सीरीज नहीं चलेगी?

बिल्कुल चलेगी। कोई पहल तो करे। दर्शक मैच्योर हो चुके हैं, लेकिन सारे चैनल एक तरह के सीरियल प्रोड्यूस करने में लगे हैं। अभी टीवी एक किस्म के दर्शक के लिए ही है। वैरायटी की कमी है। प्रोग्रामिंग में वैरिएशन नहीं है। मैं चाहूंगा कि इन ट्रीटमेंट जैसे सीरियल बनें। तीन महीने तक उसके लिए मेरी व्यस्तता रही। उस अनुभव को मैं नहीं भुला सकता। वह टीवी की तरह शूट भी नहीं हुआ था। हमें पता ही नहीं था कि कैमरे कहां-कहां रखे हुए हैं!

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