OTT से फिल्मों को देश-दुनिया तक पहुंचाने का मिला जरिया, जानें वेब सीरीज में तब्दील होती फिल्मों के बारे में

हिंदी सिनेमा में कई फिल्में बनने के बाद भी डिस्ट्रीब्यूटर न मिलने या कम स्क्रीन मिलने की वजह से दर्शकों तक पहुंच नहीं पाती थी। ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्म्स के आने से इंडिपेंडेंट फिल्ममेकर्स और छोटे बजट की फिल्मों को काफी राहत मिली है।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Sat, 06 Feb 2021 11:49 AM (IST) Updated:Sun, 07 Feb 2021 03:58 PM (IST)
OTT से फिल्मों को देश-दुनिया तक पहुंचाने का मिला जरिया, जानें वेब सीरीज में तब्दील होती फिल्मों के बारे में
OTT Found A Way To Bring Films To The World

मुंबई, स्मिता श्रीवास्तव। फिल्मों की दुनिया में लगातार प्रयोग हो रहे हैं। कोरोना काल में जहां फिल्मों की शूटिंग बायो बबल में होना शुरु हुई। वहीं फिल्ममेकर्स ने भी कंटेंट को लेकर कई प्रयोग किए। उन्होंने फिल्म को वेब सीरीज में तब्दील करके रिलीज किया। इसमें उन्हें डिजिटल प्लेटफार्म का पूरा सहयोग मिला। अब कुणाल कोहली की फिल्म रामयुग भी वेब सीरीज में परिवर्तित की गई है। वेब सीरीज में परिवर्तित करने की वजहों और इसके चलन की पड़ताल करती यह रिपोर्ट : 

हिंदी सिनेमा में कई फिल्में बनने के बाद भी डिस्ट्रीब्यूटर न मिलने या कम स्क्रीन मिलने की वजह से दर्शकों तक पहुंच नहीं पाती थी। ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्म्स के आने से इंडिपेंडेंट फिल्ममेकर्स और छोटे बजट की फिल्मों को काफी राहत मिली है। ओटीटी से उनकी फिल्मों को देश-दुनिया तक पहुंचाने का जरिया मिला। वहीं कोरोना काल में सिनेमाघर बंद होने की वजह से डिजिटल की ओर भी भारतीय दर्शकों का खासा रुझान हुआ। इस वक्त में 'घूमकेतु', 'बनेगी अपनी बात', 'अनवर का अजब किस्सा', 'यारा', 'पावर' जैसी कई फिल्मों की रिलीज को भी मौका मिला जो पांच-छह साल से रिलीज की बाट जोह रही थीं। इस दौरान कई नए प्रयोग भी हुए। कुछ फिल्मों को वेब सीरीज में तब्दील करके उन्हें रिलीज किया गया।

 

इसमें सबसे पहले डेंजरस का नाम आता है। करीब पांच साल बिपाशा बसु ने डेंजरस से वापसी की थी। डेंजरस फिल्म के तौर पर बनकर तैयार थी, लेकिन रिलीज नहीं हो पा रही थी। कोरोना काल में इसे वेब सीरीज के तौर पर रिलीज किया गया। इसकी रिलीज के समय बिपाशा ने कहा था कि इसकी शुरुआत फिल्म से हुई थी। हमारे पास बहुत सा कंटेंट था। जब एमएक्स प्लेयर ने इसका लिए प्रस्ताव डिजिटल प्लेटफार्म के सामने रखा तो इसे दोबारा एडिट करके शॉर्ट वेबसीरीज के तौर पर पेश किया गया। हम खुश थे कि यह रिलीज हो रही है और ओटीटी पर आ रही है। हम थिएटरों के खुलने का इंतजार नहीं कर सकते थे। ओटीटी पर आने की वजह से बहुत सारे लोगों की मेहनत व्यर्थ नहीं गई।' 

उसके बाद आई अभय देयोल, पंकज कपूर अभिनीत जेएल 50 को फिल्म के तौर पर शूट किया गया था, लेकिन बाद में चार एपिसोड की सीरीज में रिलीज किया गया। साइंस फिक्शन जॉनर की फिल्म के लेखक और निर्देशक शैलेंद्र व्यास कहते हैं,  ‘मैंने जेएल 50 को फिल्म के तौर पर ही शूट किया था। इसे बनाने में हमें काफी आर्थिक दिक्क्तों का भी सामना करना पड़ा था। इस वजह से उसे बनाने में भी काफी वक्त लग गया था। फिर कोविड आ गया था। उसी दौरान यह विकल्प मिला था। सीमित बजट की वजह से अतिरिक्त शूटिंग भी नहीं हुई थी। मन में डर भी था कि लोग स्वीकृत करेंगे या नहीं। चूंकि कहानी रहस्यमयी थी और चार किरदारों के ईदगिर्द थी लिहाजा उसके चार अलग पहलू भी थे। इसलिए उसे चार हिस्सों में विभाजित कर पाना आसान रहा। रिलीज होने के बाद लोगों की यही प्रतिक्रिया थी कि इसकी समय की अवधि छोटी थी। इसे थोड़ा और बड़ा किया जा सकता था। किरदारों के बारे में बताने की ज्यादा गुंजायश थी। तब बुरा लगता था लोगों के दिमाग में यह बात बैठी है कि अगर यह सीरीज लंबी होती तो ज्यादा बेहतर होता। हालांकि दर्शकों ने उसे पसंद किया यही मेरे लिए सबसे बड़ा अवार्ड रहा। '

 

फिल्मों को वेब सीरीज में बदलने की प्रक्रिया के संबंध में शैलेंद्र आगे कहते हैं, ऐसा हर मामले में संभव नहीं है। यह आपके स्क्रिन प्ले पर भी निर्भर करता है। इसमें लेखन और एडीटिंग दोनों ही बहुत बड़ा हिस्सा होता है। फिल्म की कहानी आपको दो से ढाई घंटे में कहनी होती है। कहानी का स्क्रिन प्ले उसके मुताबिक होता है। वेब सीरीज को बनाने में किरदार की गहराई में जाने के लिए आपके पास पूरा वक्त होता है। समय सीमा भी ज्यादा होती है। यह सबसे बड़ा फर्क होता है। हालांकि कहानी को जिस फारर्मेट के लिए बनाया जाए उसी में रिलीज किया जाए तो बेहतर है। मुझे लगता है कि वेब सीरीज का ट्रेंड इस समय जोरों पर है। जहां पर डिजिटल प्लेटफार्म को लगता होगा कि इसके दूसरे सीजन की संभावना है वहां पर भी इसे वेब सीरीज में तब्दील करने की ज्यादा प्रबल संभावना होगी।   

बिजॉय नांबियार निर्देशित तैश को फिल्म के तौर पर शूट किया गया था। लेकिन उसे फिल्म और वेब सीरीज के तौर पर एक ही दिन रिलीज किया गया था। फिल्म जहां दो घंटे 20 मिनट की थी वहीं वेबसीरीज में छह एपिसोड थे। हर एपिसोड करीब आधे घंटे का था। यह संभवत: पहली ऐसी फिल्म थी जिसे दोनों फार्मेट में रिलीज किया गया। इस बाबत बिजॉय नांबियार कहते हैं, यह हमारे लिए भी नया प्रयोग रहा है। हमने इसे शूट भी ज्यादा किया था। यही वजह है कि वेब सीरीज में दिखाया गया कंटेंट फिल्म से कहीं ज्यादा है। हालांकि दोनों अपने में संपूर्ण हैं। इसे वेब सीरीज के तौर पर जारी करना तय हो गया था। मैंने इसे बनाया फिल्म के तौर पर ही था। मैं इसे ऑडियंस को उस रुप में कहीं न कहीं दिखाना चाहता था। उसके लिए ओटीटी प्लेटफार्म राजी हो गया। हालांकि मैंने उनसे कहा कि वह फिल्म को एक महीने बाद रिलीज कर सकते हैं। उन्होंने कहा एक दिन ही रिलीज करेंगे। मेरे लिए इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है कि दोनों फार्मेट एक ही दिन में सामने आए। अच्छी बात यह रही है कि मैं दोनों प्रारुपों में इसे दर्शकों के सामने पेश कर पाया। ऑडियंस के पास भी विकल्प था वह दोनों देख सकते हैं या कोई एक।'

 

ऐसा नहीं है कि यह चलन इन तीन फिल्मों थमा। अब कुणाल कोहली निर्देशित फिल्म रामयुग भी वेब सीरीज में तब्दील हो चुकी है। यह सीरीज पूरी तरह से रामायण पर आधारित है। पिछला कंटेंट जो रामायण पर दर्शकों के बीच आया था वह सिया के राम धारावाहिक था। उसके बाद अब रामयुग आएगी। यह मॉडर्न रामायण नहीं होगी, इसे पौराणिक फॉर्म में ही लाया जाएगा। पहली बार दर्शकों को पौराणिक वेब सीरीज देखने का मौका मिलेगा। इस वेब सीरीज की शूटिंग हो चुकी है। कुछ स्थापित कलाकारों जैसे टिस्का चोपड़ा के साथ सीरीज के बाकी कलाकार नए हैं। इसी महीने या मार्च तक यह वेब सीरीज रिलीज हो सकती है। कुणाल कोहली कहते हैं,’ हमने दो हिस्सों में फीचर फिल्म पहले ही प्लान किया था।

दोनों हिस्सों को एकसाथ शूट भी किया गया था। इसलिए हमारे पास चार घंटे का मटीरियल था। उसे हमने आठ एपिसोड में बनाया है। मैं वैसे ही जितनी जरुरत होती है उतना ही शूट करता हूं। जब हमने वेब पर जाने का फैसला किया तो पूरा नैरेटिव स्टाइल बदल दिया। फिलहाल उसके बारे में ज्यादा नहीं बता सकता, लेकिन वेब सीरीज का प्रमोशन जब शुरु होगा तो अंतर आपको दिखेगा। बहरहाल इसके लिए सबसे पहले हमें एडीटिंग को दोबारा करना पड़ा। उसके लिए हमें वायस ओवर से लेकर लेखन के स्तर पर काफी बदलाव लाने पड़े। वेब में अलग पैटर्न होता है। वेब शो की एडीटिंग फिल्मों की तरह नहीं होती। उसमें सीन को कहीं-कहीं होल्ड करना पड़ता है। एक फिल्म में आप शुरुआत, इंटरवेल और अंत पर खास तौर पर काम करते हैं। वेब सीरीज में हर एपिसोड का अंत दिलचस्प होना चाहिए ताकि दर्शकों की दिलचस्पी आगे के एपिसोड में बनी रहे। एडिट के अलावा लेखन का प्रारुप भी बदला होता है।

 

कुणाल फिल्म को वेब सीरीज के तौर पर रिलीज करने का अच्छा विकल्प मानते हैं। साथ ही कहते हैं कि आप उसे डंपिंग ग्राउंड नहीं समझ सकते हैं कि यहां नहीं चलेगा तो वहां पर चला दो। उसके लिए आपको तमाम चीजों का ध्यान रखना होगा। हो सकता है कि आपको एक्स्ट्रा शूट भी करना पड़ा। इसे सोच समझ कर करना पड़ता है। अन्यथा वह चलेगा नहीं। आपको यह भी देखना होगा कि यह शो किस ओटीटी पर जा रहा है। हर ओटीटी के दर्शक और उनका प्रोफाइल अलग हैं। उसके हिसाब से यह स्ट्रीम होना चाहिए। वरना शायद आपको अच्छा रिस्पांस न मिले।      

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