ये जिंदगी उसी की है..

जब भी कहीं गीत 'ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया.' बजता है, सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे फिल्म 'अनारकली' की अनारकली कहीं हमारे आसपास है। साथ ही मन में खूबसूरत तस्वीर भी आती है और महसूस होता है कि कहीं और नहीं, हम बहुत करीब से

By Edited By: Publish:Fri, 03 Jan 2014 01:38 PM (IST) Updated:Fri, 03 Jan 2014 02:48 PM (IST)
ये जिंदगी उसी की है..

मुंबई। जब भी कहीं गीत 'ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया.' बजता है, सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे फिल्म 'अनारकली' की अनारकली कहीं हमारे आसपास है। साथ ही मन में खूबसूरत तस्वीर भी आती है और महसूस होता है कि कहीं और नहीं, हम बहुत करीब से अनारकली को देख रहे हैं। बीना राय से संबंधित दूसरा सदाबहार गीत है फिल्म 'ताजमहल' का, 'जो वादा किया वो निभाना पडे़गा..'। इस गीत में बादलों में छिपती मुमताज को देखकर दर्शकों का मन धक से रह जाता है, जैसे कोई अपना और जिगर का टुकड़ा दूर नहीं, बहुत दूर जा रहा हो। रजतपट पर ऐसी तस्वीर उकेरने वाली अदाकारा थीं बीना राय। वे कितनी खूबसूरत थीं, इस बारे में सभी जानते हैं। उस दौर का शायद ही कोई ऐसा दर्शक हो, जो उनकी खूबसूरती पर मुग्ध न हुआ हो। दर्शक उनकी फिल्मों के दीवाने भले ही ज्यादा न हुए हों, पर उनकी सुंदरता लोगों को जरूर लुभाती थी। लोग मुग्ध हो जाते और आह भरते थे मुमताज और अनारकली रुपी बीना राय को पर्दे पर देखकर।

अभिनेत्री बीना राय आज हमारे बीच भले ही नहीं हैं, लेकिन जब भी उनके द्वारा अभिनीत फिल्में और उनकी फिल्मों के कुछ चर्चित गीतों को हम देखते-सुनते हैं, वे याद आ जाती हैं। हमारी आंखों के आगे घूम जाता है उनका मोहक चेहरा। उनके अभिनय में शोखी तो थी ही, सादगी भरी सुंदरता भी उनके अभिनय में चार चांद लगाती थी।

बीना राय ने करीब सत्ताईस फिल्में की थीं। उन्हें लोग आज भी 'ताजमहल' की मुमताज और 'अनारकली' की अनारकली के रूप में याद करते हैं। इस किरदार को निभाकर वे अमर हो गई थीं। उनकी अंतिम फिल्म विजय भट्ट की 'राम राज्य' थी, जो 1967 में आई थी। उसके बाद वे पूरी तरह घर-परिवार की होकर रह गई। बीना राय की पहली फिल्म थी 'काली घटा' और यह फिल्म 1951 में आई थी। किशोर साहू निर्मित-निर्देशित इस फिल्म के संगीतकार थे शंकर-जयकिशन। अन्य कलाकार थे किशोर साहू, आशा माथुर, जीवन, उल्हास और कुक्कू।

बीना राय मूल रूप से लखनऊ की थीं। उनका जन्म 13 जुलाई 1931 को लखनऊ में ही हुआ था। उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई थी दिल्ली में, क्योंकि उनके पिता रेलवे में बड़े अधिकारी थे। उस समय के हिसाब से उनके पिता नहीं चाहते थे कि बेटी फिल्मों में काम करे, लेकिन बीना राय की इच्छा थी फिल्मों में काम करने की। यह बात सन 1950 की है। एक दिन घर में आए अखबार में उन्हें एक विज्ञापन दिखा, जिसमें किशोर साहू को फिल्म 'काली घटा' के लिए नई अभिनेत्रियों की जरूरत थी। बीना राय ने इस बारे में घर वालों से बात की और उसके बाद बंबई (अब मुंबई) के लिए रवाना हो गई। बंबई आकर वे किशोर साहू से मिलीं। कुछ समय बाद ही उन्हें फिल्म की मुख्य भूमिका के लिए चयन कर लिया गया। बीना तब तक कृष्णा सरीन कहलाती थीं। किशोर साहू ने उन्हें नया नाम दिया बीना राय। फिल्म 'काली घटा' के बाद आई 'सपना' (1953)। इस फिल्म में भी उनके हीरो थे एक बार फिर किशोर साहू। उनकी तीसरी फिल्म थी फिल्मिस्तान की प्रदीप कुमार के साथ 'अनारकली' (1953)। इस फिल्म के गीतकार थे राजेंद्र कृष्ण और संगीतकार सी. रामचंद्र यानी चितलकर। नंदलाल-जसवंतलाल निर्देशित और सुरीले गीत-संगीत से सजी इस फिल्म ने तहलका मचा दिया। फिल्म को ऐसी सफलता हासिल हुई कि लोग इस फिल्म को देखने के लिए हॉल की ओर भागने लगे। लिहाजा फिल्म की हीरोइन बीना राय रातोंरात स्टार हीरोइन हो गई। गीत 'ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का..' यादगार गीतों में शुमार हो गया। लोग इस गीत को पर्दे पर उन्हें गाते देख पागल हो जाते थे। हॉल से जो भी दर्शक निकलते, उनके मुंह से यही गीत सुनाई देता था।

फिल्म 'अनारकली' के बाद बीना राय की जो भी फिल्में आई, उनके नाम पर दर्शक फिल्म को देखने दौड़ पड़ते। एक के बाद एक उनकी सभी फिल्में लोग देखते। कुछ को देख लोग खुश होते तो कुछ को पसंद नहीं भी करते, लेकिन बीना राय के नाम पर लोग उसे देखने जरूर जाते थे। कुछ फिल्में सफल भी होती थीं। जब वे चर्चा में थीं तभी उन्होंने अभिनेता प्रेमनाथ से विवाह कर लिया।

(क्रमश:)

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