Women’s Day Exclusive: क्या आप भारत की पहली महिला ग्रैफर को जानते हैं, पढ़िये

हेतल कहती हैं कि हां उनकी चाहत है कि वह और लड़कियों को इसमें आने के लिए प्रोत्साहित करें और सिखायें लेकिन लड़कियां आना नहीं चाहतीं।

By Manoj KhadilkarEdited By: Publish:Thu, 08 Mar 2018 01:19 PM (IST) Updated:Thu, 08 Mar 2018 01:19 PM (IST)
Women’s Day Exclusive: क्या आप भारत की पहली महिला ग्रैफर को जानते हैं, पढ़िये
Women’s Day Exclusive: क्या आप भारत की पहली महिला ग्रैफर को जानते हैं, पढ़िये

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। कितना दिलचस्प संयोग है कि हिंदी सिनेमा की एक ऐसी फिल्म जिसने हिंदी सिनेमा जगत में महिला प्रधान फिल्म के नए आयाम बनाये थे, उसी फिल्म के सेट पर एक 11 साल की लड़की एक और अलग परिभाषा गढ़ रही थी। कोई नहीं जानता था कि वह सेट पर अपने पापा के आगे पीछे घूमने वाली लड़की आगे चल कर लाइटिंग फिल्ड की मास्टर बन जाएंगी और बॉलीवुड की पहली महिला गैफर बनने का दर्जा हासिल करेगी।

विमेंस डे से अच्छा मौका क्या होगा। जिस रेड कार्पेट पर हमेशा खूबसूरत हसीनाओं पर स्पॉटलाइट होती हो क्यों न उस महिला पर भी रौशनी डाली जाय जो चुपचाप से बिना शोर शराब के कैमरे के पीछे कमाल दिखा रही हैं। स्टार्स के बेटे-बेटियां बचपन से सेट पर जाती हैं और उन्हें उसी वक्त से कैमरे से प्यार हो जाता है। इस लड़की ने भी एक ख्वाब देखा। अपने पिता को देख कर। उसे भी फिल्मी सेट पर पहुंच कर एक नया चस्का लगा। लेकिन कैमरे के आगे नहीं लाइटिंग की दुनिया में जाने का। वह अक्सर सेट पर आती और धीरे धीरे वह बन गयीं बॉलीवुड की पहली महिला गैफर( हेड ऑफ लाइटिंग, जो शूटिंग के लिए सबसे जरुरी होता है )। नाम है हेतल देधिया। एक ऐसी हस्ती, जिनका नाम अब लोग इंडस्ट्री में बेहद अदब से लेते हैं और ले भी क्यों न। जिस क्षेत्र में पुरुषों का एकाधिकार था. वहां सबको दरकिनार करते अपनी मेहनत से हेतल आज जहां पहुंची हैं।

 

हेतल को अब इंडस्ट्री में काम करते हुए कई साल बीत चुके हैं और एक्सपीरियंस से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। लोग विदेशों में जाकर लाइटिंग, सिनेमेटोग्राफी की महंगी ट्रेनिंग लिया करते हैं लेकिन हेतल के लिए तो उनका स्टूडियो ही उनका ट्रेनिंग इंस्टीटयूट बना। पापा के साथ जाते-जाते गजब की दिलचस्पी जगी। हेतल जागरण डॉट कॉम को बताया कि पापा के साथ जाती थी तो काफी मजा आता था। मेरे पापा मूलचंद देधिया बॉलीवुड के बेस्ट गैफर माने जाते हैं ( हेड आॅफ लाइटिंग और इलेर्क्टीकल)। ऐसा नहीं है कि हेतल ने अपने लिए ये स्पॉटलाइट आसानी से हासिल की है। शुरूआती दौर में उन पर खूब तंज कसे जाते थे। लोगों को हंसी आती थी उन्हें देख कर कि ये लड़की यहां क्या कर रही है। हेतल कहती हैं कि लाजिमी भी था। चूंकि आज तक किसी को ऐसे महिला को इस क्षेत्र में काम करते हुए देखने की आदत थी ही नहीं। जब भी महिला कुछ लीक से हट कर या भीड़ में अलग नजर आये तो उनका माखौल ही बनता है लेकिन हेतल ने भी लोगों को आदत लगायी। उन्होंने किसी की भी वजह से अपने पैशन का रुख नहीं बदला। मीरा नायर से लेकर दीपा मेहता जैसी तमाम बड़ी और इंटरनेशनल फिल्मों का हिस्सा बनने लगीं।

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हेतल कहती हैं कि उन्हें मीरा नायर के साथ काम करते हुए बहुत मजा आया है और उन्होंने हमेशा उन्हें अपना इंस्पीरेशन माना है। वजह यह है कि उनके पिता ने मीरा की पहली फिल्म सलाम बांबे से लेकर अब तक की सारी फिल्मों में काम किया है। सो, हेतल का जुड़ाव स्वाभाविक रूप से हो गया। हेतल बताती हैं कि उन्हें बॉलीवुड से अधिक बाहरी फिल्मों में काम करने में खुशी होती है। इसकी सबसे बड़ी वजह हेतल बताती हैं कि बाहर प्रोफेशनल तरीके से काम होता है. वहां तकनीशियंस को पैसे दिये जाते हैं और अच्छे पैसे वक्त पर। भारत में तो हालत खस्ता है। काम करने के बाद एक-एक साल तक अपनी मेहनत की कमाई हासिल करने के लिए दरवाजे खटखटाने होते हैं। ऐसे में मुश्किलें बढ़ जाती हैं कि इतनी मेहनत वाले काम के बाद क्या मिला। हेतल कहती हैं कि हमारे काम में लगातार खड़े रहना एक टफ बात है। शायद यही वजह है कि कई लड़कियां इस क्षेत्र में आती हैं लेकिन धीरे-धीरे वह सिनेमेटोग्राफी में ही शिफ्ट हो जाती हैं। कम के समय के बारे में न ही सोचें तो अच्छा है। 32 वर्ष की हेतल के नाम लक बाय चांस, कार्तिक कालिंग कार्तिक जैसी कई फिल्मों के नाम शामिल हैं. लेकिन मजा उन्हें मिशन इंपॉसिबल -घोस्ट प्रोटोकॉल और अन प्लस उने फिल्में रही हैं।

 

हेतल बताती हैं कि मिशन इंपॉसिबल की मुंबई में शूटिंग हुई थी। वह शूटिंग करना आसान नहीं था। उन लोगों ने मुंबई विक्टोरिया टर्मिनस में सेट लगाया था। वहां पर लाइटिंग का एक-एक मिनट खास था। वजह यह थी कि वहां रात में ही शूटिंग हो रही थी। जगह को बंद नहीं किया जा सकता था. जब जगह खाली होती थी शूट होता था. सुबह होते वहां से हटना होता था. तो काफी मशक्कत से सारे शॉट्स लिये गये थे। हेतल स्लमडॉग मिलेनियर का भी हिस्सा रही हैं। हेतल कहती हैं कि उन्हें अपने काम में इतना मज़ा आता है कि वह कभी इस बात की परवाह नहीं करतीं कि उनके लाइटिंग के सामान हल्के हैं या भारी । शुरुआती दौर में उन्हें भी दिक्कतें आई थीं, लेकिन उन्होंने इसे तील का ताड़ बनाने की बजाय असिस्टेंट की मदद से आगे बढ़ने का निर्णय लिया। हेतल कहती हैं कि यह सच है कि एजुकेशन बेहद जरूरी है लेकिन उनकी असली पूंजी फिल्म सेट ही है। उन्हें वहीं दुनिया लुभाती हैं। जब वह 11 साल की थीं तो उन्हें अपने पापा के साथ बैंडिट क्वीन के सेट पर जाने का मौका मिला और वहीं से लाइटिंग की दुनिया से इस कदर इश्क़ हुआ कि अब ज़िंदगी का हिस्सा बन गया ।

 

हेतल कहती हैं कि हां उनकी चाहत है कि वह और लड़कियों को इसमें आने के लिए प्रोत्साहित करें और सिखायें लेकिन लड़कियां आना नहीं चाहतीं। हेतल कहती हैं कि यह एक ऐसा यूनिक फील्ड है कि अगर लड़कियां आएं तो उनमें मजा भी आयेगा और वह लीक से हटकर कुछ करने में कामयाब भी होंगी। हेतल इन दिनों फ्रेंच फिल्मों पर काम कर रही हैं।

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