Chak De! India के 10 साल: 'राज' और 'हैरी' नहीं, फ़ैंस मांगें 'कबीर ख़ान'

पिछले कुछ अर्से से शाह रुख़ को उनकी फ़िल्मों के कंटेंट के लिए क्रिटिसाइज़ किया जाता रहा है और जब भी ऐसी बात चलती है तो उनकी माइल स्टोन फ़िल्म 'चक दे! इंडिया' को याद किया जाता है।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Publish:Wed, 09 Aug 2017 05:40 PM (IST) Updated:Thu, 10 Aug 2017 08:29 AM (IST)
Chak De! India के 10 साल: 'राज' और 'हैरी' नहीं, फ़ैंस मांगें 'कबीर ख़ान'
Chak De! India के 10 साल: 'राज' और 'हैरी' नहीं, फ़ैंस मांगें 'कबीर ख़ान'

मुंबई। शाह रुख़ ख़ान की ताज़ा रिलीज़ फ़िल्म 'जब हैरी मेट सेजल' को लेकर दर्शकों की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, वो चौंकाने वाला है। ऐसा नहीं कि शाह रुख़ की फ़िल्म को पहली बार ऐसी तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा हो, मगर ये चिंता की बात तब हो जाती है, जब बॉक्स ऑफ़िस भी इन आलोचनाओं का साथ दे रहा हो।

पिछले कुछ अर्से से शाह रुख़ को उनकी फ़िल्मों के कंटेंट के लिए क्रिटिसाइज़ किया जाता रहा है और जब भी ऐसी बात चलती है तो उनकी माइल स्टोन फ़िल्म 'चक दे! इंडिया' को याद किया जाता है, जिसकी रिलीज़ को 10 अगस्त को 10 साल पूरे हो रहे हैं।

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'जब हैरी मेट सेजल' जैसी फ़िल्में जब निराश करती हैं, तो 'चक दे...' का नाम लेकर शाह रुख़ को दुहाई दी जाती है और उनके चाहने वाले यही उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर शाह रुख़ वैसी ही परफॉर्मेंस और फ़िल्म देकर साबित कर दें कि उनके दिन अभी चुके नहीं हैं। 

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यशराज बैनर की फ़िल्म 'चक दे! इंडिया' को शिमित अमीन ने डायरेक्ट किया था, जबकि कहानी जयदीप साहनी ने लिखी थी। शाह रुख़ ने फ़िल्म में कबीर नाम के हॉकी कोच का रोल निभाया था, जिस पर अपनी टीम और देश को धोखा देने का आरोप है। कबीर की कप्तानी में इंडियन टीम ने पाकिस्तान के हाथों एक अहम मैच हारा था और हालात के मद्देनज़र कबीर को इस हार के लिए ज़िम्मेदार माना गया। कबीर इस दाग़ को धोने के लिए बिखरी हुई खस्ता हाल महिला टीम को कोच करता है। उन्हें एकजुट करता है और टीम को वर्ल्ड कप जीत तक लेकर जाता है। 

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'चक दे! इंडिया' की ख़ासियत ये रही कि शाह रुख़ की संजीदा एक्टिंग के बावजूद एंटरटेनमेंट के मामले में फ़िल्म पीछे नहीं थी। नतीजतन, इसे शाह रुख़ के कट्टर फैंस के साथ आम दर्शक ने हाथों-हाथ लिया। शाह रुख़ जैसे सुपरस्टार से दरअसल ऐसी ही परफॉर्मेंस देखने की ख़्वाहिश की जाती है। 'चक दे! इंडिया' के बाद पिछले 10 सालों में किंग ख़ान की 13 फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं, मगर इनमें से एक भी नज़ीर नहीं बन सकी। 'कबीर ख़ान' का इंतज़ार किंग ख़ान के फैंस को आज भी है।

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2007 में ही 'ओम शांति ओम' रिलीज़ हुई, जिसने एंटरटेन तो ख़ूब किया, मगर शाह रुख़ की यादगार परफॉर्मेंसेज की लिस्ट में एंटर नहीं हो सकी। करण जौहर की 'माय नेम इज़ ख़ान' में शाह रुख़ की अदाकारी ने उम्मीद जगायी। इस फ़िल्म में उन्होंने ऑटिस्टिक किरदार निभाया था। मगर, 'चक दे! इंडिया' वाला रोमांच और भावनाओं का उतार-चढ़ाव इसमें मिसिंग था। 

'रा. वन' के ज़रिए शाह रुख़ पर्दे पर सुपरहीरो बने। तकनीकी बारीकियों के लिए तो ये फ़िल्म याद की जाएगी, मगर परफॉर्मेंसेज की नज़र से 'रा.वन' किंग ख़ान की यादगार फ़िल्मों में शामिल नहीं होगी। 

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इस बीच 'हैप्पी न्यू ईयर', 'चेन्नई एक्स्प्रेस' और 'दिलवाले' जैसी फ़िल्में भी आयीं, जिन्होंने बॉक्स ऑफ़िस पर शाह रुख़ की बादशाहत साबित की, मगर इन फ़िल्मों के कंटेंट के लिए उन्हें कोसा गया, चेताया गया। शाह रुख़ ने 'फ़ैन' के ज़रिए अपने ऐसे फै़ंस को साधने की कोशिश की, जो उनकी नेगेटिव साइड देखने में दिलचस्पी रखते हैं, मगर दर्शकों ने इसे भी खारिज़ कर दिया। 

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... और अब 'जब हैरी मेट सेजल'। इस फ़िल्म तक आते-आते जैसे दर्शकों का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने इसे पहले दिन से ही नकारना शुरू कर दिया। फ़िल्म को क्रिटिक्स धो दें या कुछ दर्शक खारिज़ कर दें तो स्टार भी नज़रअंदाज़ कर जाता है, मगर बॉक्स ऑफ़िस पर ही हालत खस्ता हो जाए तो स्टार को चौकन्ना हो जाना चाहिए। 'चक दे! इंडिया' की दसवीं सालगिरह के बहाने शाह रुख़ से यही उम्मीद है कि वो अपने फ़ैंस की चाहत को समझेंगे और एक बार फिर शानदार परफॉर्मेंस के ज़रिए चाक दिलों को 'चक दे' करेंगे। वैसे भी कहावत है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।

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