रामसे ब्रदर्स के लिए आसान नहीं था दर्शकों को डराना, नहीं रहे तुलसी

सेमी बोल्ड और फुल हॉरर जॉनर को एक अलग मुकाम तक ले जाने में तुलसी और उनके छह भाइयों ( कुमार, श्याम, केशु, अर्जुन, गंगू और किरण रामसे) ने बड़ी भूमिका निभाई.

By Manoj KhadilkarEdited By: Publish:Fri, 14 Dec 2018 01:33 PM (IST) Updated:Fri, 14 Dec 2018 05:15 PM (IST)
रामसे ब्रदर्स के लिए आसान नहीं था दर्शकों को डराना, नहीं रहे तुलसी
रामसे ब्रदर्स के लिए आसान नहीं था दर्शकों को डराना, नहीं रहे तुलसी

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई. हिंदी सिनेमा में हॉरर फिल्मों का पितामह माने जाने वाला कैम्प यानि रामसे ब्रदर्स के लिए आज एक दुःख की ख़बर आई जब जाने माने निर्माता निर्देशक तुलसी रामसे के निधन का समाचार मिला. गुरुवार की शाम को मुंबई में उनका निधन हो गया. वो 74 साल के थे .

तुलसी पिछले कई सालों से मुंबई के गोरेगांव इलाके में रह रहे थे. कुछ दिनों से वह स्वस्थ नहीं थे. शुक्रवार को दोपहर 2 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. एफ यू रामसे के सात बेटों में से एक तुलसी ने अपने परिवार के साथ मिल कर भारतीय सिनेमा को ‘हॉरर स्टोरी’ की एक अलग राह दिखाई l सेमी बोल्ड और फुल हॉरर जॉनर को एक अलग मुकाम तक ले जाने में तुलसी और उनके छह भाइयों ( कुमार, श्याम, केशु, अर्जुन, गंगू और किरण रामसे) ने बड़ी भूमिका निभाई और हर फिल्म के साथ अलग अलग मेकिंग का डिपार्टमेंट भी संभाला. एक ज़माने में उन्हें उनकी फिल्मों के कारण ‘मिनी कॉटेज इंडस्ट्री’ भी कहा जाता था.

दो गज जमीन के नीचे, घुँघरू की आवाज, सन्नाटा, महाकाली, वीराना जैसी कई हॉरर फिल्मों का निर्देशन और निर्माण कर चुके तुलसी रामसे ने हॉरर फिल्मों को ही अपना जॉनर बनाया और सफलता भी हासिल की. ऐसे दौर में जब दर्शकों को डराने के लिए स्पेशल इफेक्ट्स और तकनीक नहीं हुआ करती थी. रामसे ब्रदर्स ने अपनी बुद्धिमता और सूझ-बूझ से एक अलग ही स्तर पर पहचान बनायीं और डर और खौफ पैदा किया. भले बाद में हिंदी फिल्मों में कई निर्देशकों ने भूतिया फिल्में बनानी शुरू की हो, कामयाब भी रहे हों लेकिन शुरुआती दौर में इस जॉनर में अपनी महारथ हासिल करना और दर्शकों का मनोरंजन करना आसान नहीं था.

रामसे ब्रदर्स के रूप में विख्यात तुलसी रामसे के लंबे समय तक असोसिएट रह चुके गोविन्द यादव ने जागरण डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि रामसे ब्रदर्स की यह खूबी थी कि वह सभी भाई एक साथ इक्कठे बैठते थे और फिर पूरी कहानी पर बातचीत होती थी. फिर लोकेशन हंटिंग के लिए भी सभी साथ जाते थे. गोविन्द बताते हैं कि उस दौर में पूरा डरावना माहौल सिर्फ मेकअप से और लाइटिंग से ही क्रियेट किया जाता था. तुलसी भाइयों की चाहत होती थी कि ज्यादातर वह अभिशप्त जगहों पर शूटिंग करते थे. वैसे जगहों की तलाश करते थे. एक बार जब वीराना फिल्म की शूटिंग महाबलेश्वर में हो रही थी.

गोविन्द बताते हैं कि उन सभी के साथ कुछ होने का एक्सपीरिएंस हुआ था, जब सभी ने रास्ते में एक अनजानी महिला को देखा था. जो थोड़ी देर के बाद ही गायब हो गई थी. गोविन्द कहते हैं कि तुलसी का पूरा ध्यान कलाकारों के मास्क पर ही अधिक होता था, चूंकि उस वक़्त मास्क के माध्यम से ही कलाकारों को डरावना बनाने की कोशिश की जाती थी. तुलसी ब्रदर्स ने 80 से 90 के दशक में हॉरर फिल्में बना कर राज किया. भारत में अब भी ऐसे कई सिंगल स्क्रीन सिनेमा थियेटर्स हैं, जहां आज भी रामसे ब्रदर्स की फिल्में प्रदर्शित होती हैं.

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