मैं वल्गर इंसान हूं और गंदी फिल्में देखना चाहता हूं : विक्रम भट्ट

विक्रम भट्ट का कहना है कि भारत में सेंसर बोर्ड ने दर्शकों की पसंद की हिफाजत की जिम्मेदारी ली ली है, जो कि उसका काम नहीं है।

By Pratibha Kumari Edited By: Publish:Mon, 04 Apr 2016 11:26 AM (IST) Updated:Mon, 04 Apr 2016 11:36 AM (IST)
मैं वल्गर इंसान हूं और गंदी फिल्में देखना चाहता हूं : विक्रम भट्ट

मुंबई। जानेमाने फिल्मकार विक्रम भट्ट की अगली फिल्म 'लव गेम्स' है, जो जोड़ों के बीच पार्टनर की अदला-बदली पर आधारित है। ऐसे बोल्ड सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने वाले निर्देशक का कहना है कि जब दर्शक वल्गर फिल्में देखना चाहते हैं, तो फिर कोई अन्य यह फैसला क्यों ले कि क्या देखने लायक है और क्या नहीं?

विक्रम भट्ट का कहना है कि भारत में सेंसर बोर्ड ने दर्शकों की पसंद की हिफाजत की जिम्मेदारी ली ली है, जो कि उसका काम नहीं है। भट्ट इस बात से खुश नहीं हैं कि बोर्ड (सीबीएफसी) के सदस्य फिल्म के सीन और संवादों को हटा देते हैं और कई बार तो फिल्म को बैन भी कर देते हैं। भट्ट का कहना है, 'सेंसर बोर्ड अब बदतर हो गया है। कांग्रेस की सरकार काफी बेहतर थी..घटिया, वल्गर फिल्मों में क्या बुरा है? क्या मेरे पास ऐसी फिल्में देखने का अधिकार नहीं है? आप मेरी पसंद पर पहरा क्यों लगा रहे हैं?'

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निर्देशक का मानना है कि एक व्यक्ति की फिल्म की पसंद को किसी बाहरी इंसान के कारण प्रभावित नहीं होना चाहिए। बकौल भट्ट, 'मैं एक वल्गर इंसान हूं और वल्गर फिल्में देखना चाहता हूं और इसके लिए खर्च करने में सक्षम हूं। आप फिल्म पर बड़े अक्षरों में लिख दीजिए कि यह फिल्म गंदी है, मैं बुरा नहीं मानूंगा। लेकिन, यह मत बताइए कि मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत।'

भट्ट ने कहा, 'सेंसर बोर्ड एक पहरेदार की तरह है, जो एक ऐसे घर की पहरेदारी कर रहा है, जिसमें कोई रहता ही नहीं है। 'लव गेम्स' को केवल बालिगों के देखने के लिए उचित माना गया है। लोग इंटरनेट पर विदेशी फिल्मों की खोज कर रहे हैं, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि सेंसर बोर्ड किस चीज को बचा रहे हैं.. कौन-सी संस्कृति?'

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'राज', '1920' और 'हेट स्टोरी' जैसी फिल्में बनाने वाले भट्ट का मानना है कि बॉलीवुड में कामुक रोमांच वाली फिल्मों के निर्माण में उछाल आया है। जब उनसे पूछा गया कि इस शैली को भारत में क्यों सही नहीं माना जा रहा? तो भट्ट ने कहा, 'क्योंकि हम जिस तरह के लोग हैं जिस तरह के हमारे आलोचक हैं। उन्हें हर चीज में सौंदर्यशास्त्र चाहिए।'

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