एक ऑटोग्राफ के लिए आधे घंटे होटल के बाहर खड़े थे अमिताभ

बच्चन की हर फिल्म आज भी एक नई कहानी कह जाती है। शायद इसीलिए बिग बी ने अपनी फिल्मों की यादें बहुत संभाल कर रखी है

By ManojEdited By: Publish:Tue, 11 Oct 2016 02:39 AM (IST) Updated:Tue, 11 Oct 2016 09:46 AM (IST)
एक ऑटोग्राफ के लिए आधे घंटे होटल के बाहर खड़े थे अमिताभ

मुंबई। महानायक की अभिनय यात्रा , किस्सों -कहानियों और कई सारी गॉसिप्स और बहुत सारी अनसुनी बातों से भरी पड़ी है। बच्चन जब भी पुरानी यादों में खो जाते हैं , कुछ ऐसे किस्से सुनाते है जो ना सिर्फ दिलचस्प होते हैं बल्कि उन किस्सों से ये भी पता चलता है कि 'शहंशाह ' बनने के लिए इस ' जादूगर ' को कितने 'अग्निपथ ' पार करने पड़े हैं।

बेमिसाल बच्चन के इस फ़िल्मी सफ़र में कई बार बच्चन ने ' अमिताभ ' बन कर कुछ कहानियां सुनाई है।

मेरा सिर्फ 30 प्रतिशत लीवर ठीक है :-

सबसे ताजा खुलासा उन्होंने अभी हाल ही में किया था जब वो महाराष्ट्र सरकार के हेपिटाइटिस बी से जुड़े एक कार्यक्रम में आये थे। बच्चन ने कहा कि उनका लीवर 70 प्रतिशत ख़राब हो चुका है और वो सिर्फ 30 प्रतिशत लीवर फंग्शन के सहारे चल रहे हैं।उन्होंने बताया कि फिल्म 'कुली' के समय चोट लगने के बाद उन्हें 200 बोतल खून चढ़ाया गया था जिसमें से एक डोनर को हेपेटाइटिस था जिसका संक्रमण उन्हें हो गया।

सात हिन्दुस्तानी में जमीन पर सोता था :-

अमिताभ बच्चन को ख्वाजा अहमद अब्बास की अपनी पहली फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' सिर्फ इसलिए याद नहीं है क्यूंकि इसके लिए उन्हें अवार्ड मिला था बल्कि इसलिए क्योंकि तब बच्चन को कई दिनों तक पूरी यूनिट के साथ सरकारी गेस्ट हाऊस की ज़मीन पर सोना पड़ता था। यही नहीं वो बड़ी- बड़ी लाइटें और शूटिंग का सामान खुद उठा कर एक से दूसरे जगह तक जाते थे। शूटिंग के दौरान एक हफ्ते तक वो बिना नहाये, नकली दाढ़ी लगा कर घूमे क्यूंकि मेकअप मैन को देने के लिए पैसे नहीं थे और अब्बास साहब के पास सिर्फ 60 फ़ीट की रील बची थी शूटिंग के लिए।

पेट्रोल पम्प पर अपने हाथ से तेल डालते थे :-

सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'आनंद 'में काम करना बिग बी के लिए एक गिफ्ट था और उन्हें ये बात तब समझ में आई जब बच्चन के दीवाने उन्हें पागलो की तरह सड़क पर घेर लेते थे। बच्चन जिस पेट्रोल पम्प पर अपने हाथ से कार में तेल डालते थे , 'आनंद' की रिलीज के बाद वहां चाहनेवालो का हुजूम इकठ्ठा हो जाया करता था।

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प्यार के चलते 'गुड्डी' से बाहर हो गए थे :-

बहुत कम लोग जानते हैं कि बिग बी फिल्म 'गुड्डी' में १०-१२ दिन काम करने के बाद फिल्म से बाहर हो गए थे लेकिन बच्चन के लिए 'गुड्डी' इसलिए स्पेशल है क्यूंकि इस फिल्म के दौरान उन्हें जया भादुड़ी से प्यार हुआ....दुनिया को गुड्डी में जया की सादगी भा गई और बच्चन को जया। बच्चन कहते हैं " बड़ी कॉमन सी स्टोरी थी वो। एक फिल्म से लटकों झटकों वाली हीरोइन बदल गई और मुझे पसंद आ गई। "

ज़ंजीर रही हमेशा से पर्सनल फेवरिट : -

बच्चन बताते हैं " वो ऐसे समय के हीरो वाली फिल्म नहीं थी जब हीरो सिर्फ गाने गाता था।" सिस्टम से लड़ने वाले जिस पुलिस ऑफिसर विजय ने गुस्से को अपना हथियार बनाया था अमिताभ के लिए वो फिल्म "ज़ंजीर' हमेशा से ही पर्सनल फेवरेट रही है..और हो भी क्यूँ ना हिंदी सिनेमा को यही से तो मिला था 'एंग्री यंग मैंन' बच्चन आज भी मानते है कि वो समय की मांग थी...

अशोक कुमार की फिल्मों और पुरानी देवदास का मिक्सचर थी 'मुकद्दर का सिकंदर' :-

साल 1978 में आई 'मुकद्दर का सिकंदर' पुरानी देवदास और अशोक कुमार की शुरूआती फिल्मों को मिला कर पेश की गई एक नई तस्वीर थी..सिनेमा के इस सिकंदर का मुकद्दर भी इसी फिल्म से इमोशन का सैलाब ले आया था. बच्चन कहते हैं " ये दो तरह के सिनेमा का परफेक्ट ब्लेंड था। "

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जब बच्चन ने यश चोपड़ा को 'दीवार' बनाने पर मजबूर किया :-

अमिताभ बच्चन साल 1975 में आई यश चोपड़ा की 'दीवार' को हिंदी सिनेमा का बेस्ट स्क्रीनप्ले में से एक मानते हैं। दरअसल दीवार की कहानी पर 'मदर इंडिया' और 'गंगा जमुना' का प्रभाव था, लेकिन सलीम-जावेद की कहानी ने बच्चन को इतना सम्मोहित कर दिया था कि उन्होंने यश चोपड़ा को दीवार बनाने पर मजबूर कर दिया। बिग बी कहते हैं " वो इतना मजबूत सब्जेक्ट था कि जब यश जी दूसरी कोई फिल्म बनाने की सोच रहे थे तो मैंने उन्हें ये सब्जेक्ट दिया था। "

'शोले' में तीन बच्चन्स ने काम किया था :-

अमिताभ, शोले की भव्यता पर आज भी जितने मंत्रमुग्ध हैं उतने ही रमेश सिप्पी के परफेक्शन के भी कायल। शूटिंग को याद कर बताते हैं कि कैसे राधा के दीया जलाने के चंद मिनटों के सीन की शूटिंग में पूरे तीन साल लग गए क्योंकि सूरज के ढलने का फरफेक्ट सीन ही नहीं मिल रहा था। शोले में सिर्फ मिस्टर एंड मिसेज बच्चन ने ही काम नहीं किया था। शूटिंग के समय जया बच्चन गर्भवती थी। शूटिंग के बाद श्वेता पैदा हुई।

क्यों मनमोहन देसाई को पागल करार दिया :-

मनमोहन देसाई की फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' की बात करते ही बिग बी अक्सर चहक उठते हैं। 'लॉस्ट एन्ड फाउंड' फार्मूला की सबसे खूबसूरत मिसाल इस फिल्म में काम करने के लिए बच्चन राज़ी नहीं थे। जब एक ही बोतल से तीन भाइयों को खून चढाने का सीन हुआ तो सबने मनमोहन देसाई को पागल करार किया था लेकिन बाद में इसी सीन पर सिनेमाघरों में जमकर तालियाँ बजी।

दिलीप कुमार का आटोग्राफ लेने आधे घंटे खड़े थे बच्चन -

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ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार का एक आटोग्राफ लेने के लिए अमिताभ जब एक रेस्तरां के बाहर आधे घंटे खड़े थे तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो अपने इस हीरो के साथ कैमरे के सामने भी खड़े होंगे लेकिन शक्ति सामंता की 'शक्ति ' के मुहूर्त में जब बच्चन दिलीप कुमार के सामने हेलीकाप्टर से उतरे तो सातवें आसमान पर थे..दिलीप कुमार के सामने उनके पैर काँप रहे थे लेकिन "शक्ति" अटल हो गई।

आठ महीनों तक नेत्रहीनों की भाषा सीखी :-

अमिताभ कहते हैं "संजय लीला भंसाली की फिल्म..ब्लैक..जीनियस वर्क था। " फिल्म में अमिताभ बच्चन ने अपने अभिनय के इतने रंग भरे थे कि लगा ही नहीं कि काला रंग भी होता है..फिल्म के लिए बिग बी ने आठ महीनो तक नेत्रहीनो की साइन लैंग्वेज सीखी।

बच्चन की हर फिल्म आज भी एक नई कहानी कह जाती है। शायद इसीलिए बिग बी ने अपनी फिल्मों की यादें बहुत संभाल कर रखी है क्योंकि वो भी जानते है कि आने वाला ज़माना उनसे अक्सर इन्ही में से चंद यादें बांटने की गुजारिश करेगा।

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