Election 2019: बंगाल के रोम-रोम में सियासत है, कोलकाता की फिजा में तैर रहे चुनावी जुमले

बंगाल के रोम-रोम में सियासत है। अगर इसे ठीक से समझना है तो कोलकाता के गली-मुहल्लों में स्थित चाय-पान की दुकानें आर क्लब घूमकर देखिए।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 23 Mar 2019 10:01 AM (IST) Updated:Tue, 26 Mar 2019 12:34 AM (IST)
Election 2019: बंगाल के रोम-रोम में सियासत है, कोलकाता की फिजा में तैर रहे चुनावी जुमले
Election 2019: बंगाल के रोम-रोम में सियासत है, कोलकाता की फिजा में तैर रहे चुनावी जुमले

कोलकाता, प्रकाश पांडेय। बंगाल के रोम-रोम में सियासत है। अगर इसे ठीक से समझना है तो कोलकाता के गली-मुहल्लों में स्थित चाय-पान की दुकानें आर क्लब घूमकर देखिए। सुबह कुल्हड़ की चाय की चुस्की से लेकर शाम को क्लबों में कैरम के खेल तक सियासी चर्चा होती रहती हैं। विभिन्न सियासी दल एवं उनकी चुनावी रणनीति पर चर्चा करता बंगाल का हरेक शख्स आपको किसी राजनीतिक विशेषज्ञ से कम नजर नहीं आएगा। इन सबके बीच बंगाल की सियासत की सबसे खास बात यह है कि यहां जाति कभी फैक्टर नहीं बन पाया।

राज्य की सियासी फिजां व चुनावी समीकरण पर बेबाक अंदाज में अपनी बातें रखते हुए उत्तर हावड़ा के सलकिया इलाके में स्थित अग्रदूत संघ के सक्रिय सदस्य विमल जायसवाल ने कहा कि राज्य में इस बार मुख्य तौर पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच लड़ाई है लेकिन वामदलों को कमतर आंकना सही नहीं होगा। अगर कांग्रेस-वाममोर्चा में गठबंधन हो जाता तो लड़ाई त्रिकोणीय होती लेकिन गठबंधन का नहीं होना माकपा के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। सलकिया के न्यू विजय संघ के सदस्य राजेश शर्मा भी राज्य की सियासी स्थिति पर अक्सर चर्चा करते नजर आते हैं और अपने इलाके में ‘बहस बाबू’ के नाम से लोकप्रिय हैं। उनकी मानें तो राज्य की सियासत में आज भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पकड़ बनी हुई है।

भाजपा सोशल मीडिया मैनेजमेंट के जरिए खुद को कुछ ज्यादा ही मजबूत साबित करने में लगी हुई है। 2016 के विधानसभा चुनाव में सारधा घोटाले के साए में तृणमूल चुनाव लड़ी व विजयी रही। नारदा कांड के बाद भी सभी उपचुनावों में ‘दीदी’ का दबदबा कायम रहा, हालांकि लोकसभा चुनाव में वामों-कांग्रेस गठबंधन के न होने का लाभ भाजपा को जरूर मिलेगा।

दक्षिण 24 परगना जिले के घोला बेतबेरिया स्थित मिताली संघ के सचिव अमिताभ शर्मा ने कहा-‘अक्सर राज्य के क्लबों को सत्ताधारी दल के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। हम हमेशा विकास और इलाके में शांति व्यवस्था की पहल करते हैं ताकि स्थानीय वाशिंदों को किसी तरह की समस्या न हो। ग्रामीण क्षेत्रों में जिस तरह से विकास कार्य हुए हैं, उन्हें नकारना मुश्किल है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को स्थापित करने का काम किया है।

रही बात भाजपा की बंगाल में बढ़ती सक्रियता की, तो पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हुई कार्रवाई ने देश के साथ ही राज्य के लोगों का भी दिल जीत लिया है हालांकि ये वोट में तब्दील होता है या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा। दक्षिण हावड़ा स्थित ईगल आर्गानाइजेशन के अध्यक्ष नरेश कुमार साव ने कुछ खास तो नहीं कहा लेकिन उनका भी मानना है कि इस बार लड़ाई कांटे की है।

चाय की चुस्की पर सियासी सुर

लंबे अरसे से कोलकाता में रह रहे पारसनाथ यादव की मानें तो आज तक कोई बंगाली देश का पीएम नहीं बन सका है। दिवंगत मुख्यमंत्री ज्योति बसु के समय एक बार मौका आया था, लेकिन उस वक्त उनकी पार्टी ने ‘ऐतिहासिक गलती’ करते हुए ज्योति बाबू को प्रधानमंत्री बनने की इजाजत नहीं दी और यह मौका हाथ से चला गया।

इस समय ममता इस दौड़ में हैं। उन्हें गंभीरता से लिया जा रहा है। वह विपक्षी एकता की संयोजक के तौर पर देखी जा रही हैं। ऐसे में बंगाल में ममता और मोदी के बीच कड़ी टक्कर होने वाली है। राज्य की सियासी हालत पर अपनी बात रखते हुए विमल कुमार सिंह ने कहा कि बंगाल में भाजपा के उदय ने कई सियासी पंडितों को गलत साबित किया है।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 17 प्रतिशत वोट मिले थे। दो साल बाद पार्टी का वोट शेयर गिरकर 10 फीसद हो गया, लेकिन कांथी के विस उपचुनाव में भाजपा को 32 प्रतिशत वोट मिले और वह दूसरे स्थान पर रही। इस सीट पर भाजपा की स्थिति कभी मजबूत नहीं रही थी, ऐसे में भाजपा का प्रभाव बढ़ना असाधारण बात है और जहां तक मौजूदा परिदृश्य का सवाल है तो अबकी बार लड़ाई कांटे की है। भाजपा बनाम तृणमूल की जंग से कांग्रेस और वामदल दरकिनार हो गए हैं।

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